कोर्णाक डांस फेस्टिवल : झूमकर नाचिए और डूब जाइए भक्ति के रंग में

श्रृंखला पाण्डेय 18-02-2020 04:51 PM Culture
ठंड ने पूरी तरह से देश के अधिकतर हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इसी के साथ देश में कुछ ऐसे विंटर फेस्टिवल्स भी शुरू हो जाएंगे, जो लोक-संस्कृति और कलाओं के अनोखे उदाहरण पेश करते हैं। ग्रासहॉपर के इस अंक में हम आपको देश के कुछ प्रसिद्ध विंटर फेस्टिवल्स के बारे में बताएंगे, जहां जाकर आप विभिन्न संस्कृतियों और विधाओं के बारे में जान पाएंगे, साथ ही कुछ बेहतरीन पलों का भी मजा ले सकते हैं।

अद्भुत अनुभव: कोणार्क डांस फेस्टिवल

ओडिशा का नाम आते ही दिमाग में एक ऐसे राज्य की तस्वीर उभरती है जो धर्म नगरी होने के साथ ही सांस्कृतिक रूप से भी काफी समृद्ध है। यहां कि संस्कृति में विविधता के रंग हैं, जो ओडिशा के त्योहारों और उत्सवों में भी आसानी से जाहिर होते हैं। यहां के पुरी की भगवान जगन्नाथ रथयात्रा सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्तिभाव के साथ शामिल होते हैं। इसके अलावा पुरी में एक और आयोजन होता है, जिसका यहां के लोगों के साथ ही टूरिस्ट को भी बेहद बेसब्री से इंतजार रहता है। हम बात कर रहे हैं कोणार्क मंदिर के परिसर में लगने वाले कोणार्क डांस फेस्टिवल की। ओडिशा में होने वाला यह सबसे बड़ा डांस फेस्टिवल है।


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यह बात बनाती है खास

कोणार्क नृत्य महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1989 में की गई थी। वक्त के साथ ही साथ इसने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली है। इसका मकसद यहां के टूरिज्म को बढ़ावा देना भी था। कोणार्क नृत्य महोत्सव 1 से 5 दिसंबर तक आयोजित किया जाता है। इसमें पूरे देश से नामी-गिरामी डांसर भी शामिल होते हैं। यहां कलाकारों का नृत्य देखने के लिए दर्शक हमेशा उत्साहित रहते हैं। इस फेस्टिवल में कई तरह के नृत्य का अनूठा संगम देखने को मिलता है। कई तरह की नृत्य विधाएं जब मंच पर एक साथ उतरती हैं तो नजारा देखने लायक होता है। कोणार्क नृत्य महोत्सव में मुख्य रूप से ओडिशी, कथककली, कुचिपुड़ी, कथक, भरतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, छाऊ और मणिपुरी जैसे नृत्य देखने को मिलते हैं। संगीत, डांस के अलावा यहां की सांस्कृतिक गतिविधियां भी लाजवाब होती हैं, जो कई राज्यों की सांस्कृतिक विरासत को सहेजती हुई नजर आती हैं। 


कोणार्क का सूर्य मंदिर

देश में तमाम मंदिर हैं, लेकिन कोणार्क का सूर्य मंदिर इन सबमें अनोखा है। इतिहासकारों के अनुसार मंदिर 1253 से 1260 ईस्वी के बीच बनाया गया था। इसे यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज का भी दर्जा दिया है। मंदिर में सूर्यदेव की कई प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। पूरे मंदिर में आठ बड़े चक्र (पहिए) लगे हैं, जो दिन के आठ पहरों को प्रदर्शित करते हैं। इन चक्रों के साथ सात घोड़े मंदिर को खींचते हुए प्रतीत होते हैं, जिसके सारथी सूर्यदेव हैं। मौजूद समय में ज्यादातर मूर्तियां टूट चुकी हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर लाल बलुआ पत्थरों और ग्रेफाइट से बना हुआ है। इस मंदिर को लेकर तमाम किंवदंतियां भी प्रचलित हैं।

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आसान है पुरी पहुंचना

कोणार्क की ओडिशा के पुरी जिले से दूरी 33 किलोमीटर है। जहां से कोणार्क के लिए वाहन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। पुरी पहुंचने के लिए सीधी हवाई उड़ान नहीं है। नजदीकी एयरपोर्ट यहां से 60 किलोमीटर दूर भुवनेश्वर में है। जहां से आपको पुरी के लिए वाहन मिल जाएंगे। सड़क परिवहन से यहां पहुंचना बेहद आसान है। भुवनेश्वर और पुरी से कोणार्क के लिए टूरिस्ट कैब मिल जाती हैं। इसके अलावा इन्हीं जगहों से ओडिशा टूरिज्म विभाग की ओर से लग्जरी कोच बस चलाई जाती हैं। धार्मिक नगरी होने के चलते यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी पहुंचते हैं, जिसके चलते यह देशभर से रेलमार्ग के जरिए जुड़ा हुआ है, हरियाली से भरा यह सफर काफी रोमांचक भी है।

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