हिमाचल का 5000 साल पुराना त्योहार रौलान, जहां सचमुच आती हैं परियां
हिमाचल के किन्नौर में जैसे ही सर्दी आती है, चारों तरफ बर्फ की चादर बिछ जाती है। हवा इतनी तेज चलती है कि चाकू की तरह लगती है। घाटियां बिल्कुल शांत हो जाती हैं। लेकिन यहां के लोग डरते नहीं। उन्हें यकीन है कि बर्फीले रास्तों पर परी देवियां चलती हैं। इन्हें सौनी कहते हैं। ये देवियां अपने महलों से उतरती हैं, लोगों का मार्गदर्शन करती हैं और पूरे सर्दी के मौसम में साथ रहती हैं। इन्हीं परी देवियों के लिए किन्नौर में रौलान उत्सव मनाया जाता है। यह त्योहार आस्था, एकता और इंसान-देवता के रिश्ते की मिसाल है।
5000 साल पुरानी परंपरा
रौलान उत्सव 5000 साल पुराना है। किन्नौर दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। यहां की संस्कृति ने बर्फीले तूफान, हमले और पलायन सब झेले हैं, फिर भी जिंदा है। यहां कोई प्लास्टिक की सजावट नहीं, कोई चमक-दमक वाली लाइट्स नहीं। सब कुछ सादा है – ऊन के कपड़े, लोक संगीत, भक्ति और विश्वास। यह त्योहार बताता है कि कुछ परंपराएं इतनी पवित्र होती हैं कि इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता।
कहां और कब मनता है यह त्यौहार?
यह उत्सव किन्नौर जिले के गाँवों में होता है। सबसे बड़ा अनुष्ठान नागिन नारायण मंदिर में होता है। यह मंदिर सदियों पुराना है और गाँव वालों के लिए बहुत खास है। यह उत्सव सर्दियों में मनाया जाता है, जब पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है।
क्यों मनाते हैं परी देवियों के सम्मान में यह त्यौहार
रौलान उत्सव सौनी परी देवियों के लिए है। गाँव वाले मानते हैं कि ये देवियां उनकी रक्षा करती हैं। सर्दी में रास्ता दिखाती हैं और गर्मी लौटने तक साथ रहती हैं। यह त्योहार परिवार, पशु, फसल, पूर्वजों और पूरे गाँव के लिए होता है। कहते हैं कि यह पृथ्वी और स्वर्ग के बीच का ब्रिज है।
कैसे मनाते हैं? दूल्हा-दुल्हन का नाच
इस त्यौहार का सबसे मजेदार हिस्सा है दो पुरुषों का प्रतीकात्मक विवाह। एक बनता है रौला (दूल्हा), दूसरा रौलान (दुल्हन)। यह असली शादी नहीं, बल्कि आत्माओं को रूप देने का तरीका है। दोनों के चेहरे किन्नौरी ऊन के मोटे कपड़े से ढके होते हैं। हाथों में मोटे दस्ताने, सिर पर जेवरों वाली शॉल और टोपी। वे इंसान और देवता के बीच की आकृति लगते हैं।
फिर दोनों धीरे-धीरे मंदिर की ओर चलते हैं। वहां वे धीरे-धीरे डांस करते हैं। कोई उछल-कूद नहीं, कोई फैंसी स्टेप्स नहीं। बस शांत, भक्ति भरा नृत्य। यह देखकर लगता है कि सचमुच कोई आत्मा नाच रही है। गाँव वाले इकट्ठा होकर देखते हैं। यह कोई शो नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति है।
गाँव की एकता
यह उत्सव समुदाय का त्योहार है। कोई शोर नहीं, कोई चिल्लाना नहीं। सिर्फ शांति और समर्पण। गाँव वाले मंदिर में जमा होते हैं और नाच देखते हैं। यह उनकी परंपरा है, पर्यटकों के लिए नहीं। लेकिन अगर आप जाएं, तो दूर से ही इसे देखें और उनका सम्मान करें।
पर्यटकों के लिए टिप्स
- सर्दी में भारी गर्म कपड़े ले जाएं, ठंड बहुत है।
- स्थानीय गाइड की मदद लें।
- उत्सव में दखलंदाजी न करें, सिर्फ देखें। किन्नौर की बर्फीली वादियां और शांत घाटियां खुद में खूबसूरत हैं।
रौलान उत्सव सिखाता है कि कुछ परंपराएं कभी नहीं मरतीं। यह हिमालय की गोद में छिपी जादुई दुनिया है, जहां परी देवियां आज भी जीवित हैं। अगर आप प्रकृति, आस्था और शांति के करीब जाना चाहते हैं, तो किन्नौर जरूर आएं। यह त्योहार सिर्फ देखने का नहीं, महसूस करने का है।
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