एडवेंचर

देखने लायक है तीरथगढ़ झरने की खूबसूरती, जल्दी बना लीजिए प्लान

तीरथगढ़ झरना छत्तीसगढ़ में बस्तर जिले के सबसे खूबसूरत रत्नों में से एक है। जगदलपुर के जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर स्थित यह झरना भारत के सबसे शानदार झरनों में शामिल है। लगभग 300 फीट की ऊंचाई वाला तीरथगढ़ झरना कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में है। इस झरने से गिरता हुआ पानी सफेद रंग का दिखता है इसलिए इसे 'द मिल्की फॉल्स' के नाम से भी जाना जाता है। तीरथगढ़ झरना नीचे गिरता है तो तल पर एक पूल बनाता है। इस पूल में तैराकी, पैडल बोटिंग करते हुए और नहाते हुए लोग आपको दिख जाएंगे। यह मॉनसून में सबसे सुंदर लगता है क्योंकि इस समय पानी काफी तेजी से नीचे गिरता है। तीरथगढ़ साल के बाकी दिनों में भी शांत और सुंदर रहता है। पूल के किनारे भगवान शिव का एक छोटा सा मंदिर है जहां स्थानीय लोग प्रार्थना करते हैं। 

गर्मियों में करना है रोड ट्रिप, ये ऑप्शन्स करिए ट्राई

गर्मियों में करना है रोड ट्रिप, ये ऑप्शन्स करिए ट्राईअगर आप इस गर्मी में रोड ट्रिप का प्लान बना रहे हैं, तो हमारे पास आपके लिए कुछ बेहतरीन ऑप्शन्स हैं। ये रोड ट्रिप्स आपको किसी पोएट्री की तरह लगेंगी हैं और आपको ज़िंदगी भर का अनुभव देंगी! 

बच्चों की छुट्टियों में जाएं कूनो नेशनल पार्क घूमने, यहां मिलेगा सबकुछ

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जून के तीसरे सप्ताह के आझीर तक छह और चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में जंगल में छोड़ दिया जाएगा। जिनमें चार नर और दो मादा शामिल हैं, फिलहाल ये पार्क के भीतर तीन अलग-अलग शिकार बाड़ों में हैं। चीता संचालन समिति ने बुधवार को अपनी पहली बैठक में यह निर्णय लिया। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए 20 चीतों में से तीन और भारत में पैदा हुए तीन शावकों की दो महीने से भी कम समय में पार्क में मौत के बाद समिति का गठन 26 मई को किया गया था। देश में चीता प्रजाति को विलुप्त घोषित किए जाने के सात दशक बाद चीतों को भारत में फिर से लाया गया था। 1952 में भारत सरकार द्वारा चीता को आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। इन्हें देश में आखिरी बार 1948 में दर्ज किया गया था, जब छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के साल जंगलों में तीन चीतों को मार दिया गया था। मध्य प्रदेश का कूनो नेशनल पार्क वाइल्ड लाइफ लवर्स और एडवेंचर पसंद करने वाले लोगों के लिए एक बेहतरीन जगह है। यहां करधई, खैर और सलाई के जंगल और विशाल घास के मैदानों में दर्जनों वन्य जीवों को घूमते हुए देखना एक कभी न भूलने वाला एक्सपीरियंस साबित हो सकता है। यहां के कुछ घास के मैदान कान्हा या बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बड़े हैं। 

एशियाई शेरों का गांव सासन गिर

सासन गिर, गिर राष्ट्रीय उद्यान और जूनागढ़ शहर के बीच बफर जोन पर एक गांव है, जो भारत के सबसे अनोखे गांवों में से एक है। नेशनल पार्क के पास होने की वजह से इस गांव में अक्सर वो मेहमान आ जाते हैं जिनसे इंसान और जानवर सब डरते हैं। हम बात कर रहे हैं जंगल के राजा शेर की।हम में से कई लोग ऐसे होंगे जो यह सोच कर ही डर गए होंगे कि उनके घर के आस पास अगर शेर आ जाये तो वे क्या करेंगे। लेकिन इस गांव के निवासियों के लिए यह एक सामान्य घटना बन गई है। यहां के लोगों का शेर से बचने का बस एक ही मूल मंत्र है कि उससे सुरक्षित दूरी बनाए रखें।

पहाड़ों पर घूमने के लिए बेस्ट हैं ये 5 नेशनल पार्क्स

कहते हैं कि भारत में जितने तरह के पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, हर्ब्स पाए जाते हैं, पूरी दुनिया में और कहीं नहीं। यहां आपको कुदरत की सारी नेमतें मिलती हैं। उन्हीं में से एक है हिमालय। दुनिया की सबसे बड़ी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक। हिमालय के पहाड़ जैव विविधता का खजाना हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर कई दुर्लभ और लुप्तप्रायः जानवर और पौधे पाए जाते हैं। इसीलिए यहां कई नेशनल पार्क्स भी हैं। तो आज हम आपको ऐसे 5 नेशनल पार्क्स के बारे में बता रहे हैं, जो पहाड़ों पर हैं। 

स्लो ट्रैवेल है पसंद? ये 5 ऑप्शन्स कर सकते हैं ट्राई

स्लो ट्रैवेल आजकल ट्रेंड में है। लोग किसी जगह को सिर्फ देखकर आने के बजाय उस जगह को समझने की कोशिश कर रहे हैं। यूटूबर्स ने भी इस ट्रेंड को काफी आगे बढ़ाया है। स्लो ट्रैवेल करने वाले लोग जहां घूमने जाते हैं वहां के स्थानीय लोगों, संस्कृतियों, खाने, इतिहास और नृत्य-संगीत के बारे में भी इत्मीनान से जानने की कोशिश करते हैं। स्लो ट्रैवेल इस बात पर निर्भर करता है कि एक यात्रा लोकल कम्युनिटीस और पर्यावरण के हिट में हो, आपको कुछ नया सिखाए और आपकी ज़िंदगी पर कोई प्रभाव भी डाले। अगर आप एक ट्रैवलर हैं या बनना चाहते हैं तो भारत में आपकी बकेट लिस्ट में जोड़ने के लिए यहां हम पांच ऐसे ऑप्शन्स बता रहे हैं जो आप स्लो ट्रैवेल के दौरान ट्राई कर सकते हैं।

उत्तराखंड की ये झीलें मोह लेंगी आपका मन

आपको एक झील के किनारे वक़्त बिताना पसंद है? अगर हां, तो आप सही जगह हैं। उत्तराखंड में भारत की कुछ सबसे सुंदर झीलें हैं, जो आपको यादगार वक़्त बिताने की गारंटी देंगी। उत्तराखंड की इन झीलों में से ज़्यादातर बड़े और छोटे घास के मैदानों और पहाड़ियों से घिरी हुई हैं, और इनमें से कुछ ऊंचे पहाड़ों पर भी हैं। हालांकि, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहाँ हैं। असल बात यह है कि ये झीलें खूबसूरत हैं और आपकी छुट्टियां बिताने के लिए परफेक्ट हैं।

स्विमिंग के लिए परफेक्ट हैं भारत के ये समुद्र तट

क्या आपको समंदर के किनारों से प्यार है? अगर हां तो  आप सही जगह पर हैं क्योंकि हमारे पास समुद्र तट के अगले ट्रिप के लिए कुछ बेहतरीन टिप्स हैं। जब हम समुद्र तटों के बारे में बात करते हैं, तो हम हमेशा समुद्र, रेत, सर्फिंग और स्कूबा डाइविंग आदि की बात करते हैं। समंदर में तैरने की बात हम शायद ही कभी करते हों। समुद्र में स्विमिंग को लॉफ सुरक्षित नहीं मानते। और ये सही भी है। आप किसी भी समुद्र तट पर जाकर तैरना शुरू नहीं कर सकते। कुछ समुद्र तटों के सख्त नियम भी हैं जो आपको पानी से दूर रहने के लिए कहते हैं। आप इसे ज्यादातर उन क्षेत्रों में पाएंगे जहां पानी की लहरें तेज़ हैं, समुद्र तल चट्टानी और खतरनाक है और ज्वार आमतौर पर बहुत अधिक होता है। लेकिन हम यहां आपको उन समुद्र तटों के बारे में बताएंगे जहां आप बिना किसी समस्या के तैराकी कर सकते हैं। ये समुद्र तट साफ हैं, पानी शांत और सुरक्षित है और तैरने के लिए एकदम सही हैं।

अस्कोट : उत्तराखंड का छिपा हुआ खजाना

घूमने के शौकीन लोगों को सबसे ज़्यादा पहाड़ ही पसंद आते हैं। सर्दियों में लोगों को बर्फ देखनी हो या गर्मी में ठंडे मौसम का मज़ा लेना हो पहाड़ बेस्ट ऑप्शन होते हैं छुट्टियां बिताने के लिए। हालांकि अब तो ज़्यादातर हिल स्टेशन्स पर अच्छी खासी भीड़ होने लगी है लेकिन कुछ छुपे हुए ठिकाने ऐसे भी हैं जहां कुदरत की नेमत अभी भी बरसती है। इनमें से एक है, उत्तराखंड में नेपाल बॉर्डर पर बसा अस्कोट। अस्कोट उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में दीदीहाट तहसील में एक पुरानी रियासत है। दूर-दूर तक फैले जंगल और हरी-भरी घाटी के बीच, यह एक छोटा हिमालयी शहर है जो धारचूला और पिथौरागढ़ के बीच एक छोर पर बसा है। यह शहर पूर्व में नेपाल, पश्चिम में अल्मोड़ा, दक्षिण में पिथौरागढ़ और उत्तर में तिब्बत की सीमा में है। समुद्र तल से 1,106 मीटर की औसत ऊंचाई पर बसे अस्कोट पर नेपाल के दोती राजाओं, राजबरों, चांदों, कत्यूरी, गोरखाओं जैसे कई शासकों का शासन रहा है। हालांकि उस समय अस्कोट दो हिस्सों में बंटा था। एक को मल्ला अस्कोट के नाम से जाना जाता था और दूसरे को तल्ला अस्कोट के नाम से जाना जाता था। 1742 में यहां की ज़मीन गोरखा शासन के अधीन थी और 1815 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें वापस नेपाल में धकेल दिया गया था। उत्तराखंड की एक लुप्तप्राय जनजाति, वन रावत अस्कोट के आसपास बस्ती है।'असकोट' नाम 'असी कोट' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 80 किले जो कभी इस क्षेत्र में खड़े थे। अब यहां इनके कुछ अवशेष ही बचे हैं। लोकप्रिय कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा का शुरुआती केंद्र यही है। अस्कोट प्राकृतिक सुंदरता और झरनों से घिरा हुआ है। यह कस्तूरी हिरण के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण जगह है। यहां अस्कोट कस्तूरी हिरण अभयारण्य के भी है।अस्कोट से पंचुली और चिपलाकोट चोटियाँ एकदम साफ दिखती हैं। यहां देवदार, शीशम, ओक और साल के पेड़ों के जंगल के बीच गोरी गंगा और काली नदियां बहती हैं। हिमालय के कुमाऊं क्षेत्र में 5,412 फीट ऊंची चोटी पर बस अस्कोट आश्चर्यजनक रूप से सुंदर है। यहां ऐसी कई जगहें हैं जहां आप अपना समय बिता सकते हैं। 

ज्वालामुखी के ऊपर बसे हैं ये खूबसूरत शहर

आज से लगभग 14.5 करोड़ साल पहले जुरासिक युग के अंत के पांच प्रमुख कारणों में से एक ज्वालामुखियों में हुए विस्फोट को भी माना जाता है। ज्वालामुखियों में विस्फोट कई बार परमाणु बम जितने शक्तिशाली और विनाशकारी भी होते हैं। क्या आपको लगता है ऐसे विनाशकारी खतरों के बीच कोई शहर बस सकता है? अगर आपका जवाब न है, तो आपको जानकार आश्चर्य होगा कि दुनिया के कई ऐसे शहर हैं जो ज्वालामुखियों के नज़दीक आबाद हैं। यहां की रौनक तो देखते ही बनती है।आखिर लोग ज्वालामुखी जैसी खतरनाक जगहों पर क्यों बसे हुए हैं?  "हम अक्सर ज्वालामुखियों को एक खलनायक के रूप में देखते हैं, पर उनको देखने का ये सही नजरिया नहीं है।" ये शब्द हैं अमेरिका के भूवैज्ञानिक सर्वे की रिसर्चर सारा मैकब्राइड के। सिर्फ इसलिए कि एक ज्वालामुखी मौजूद है, ये जरुरी नहीं कि ये विनाशकारी ही हो। यहां तक कि बहुत से लोग सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए ज्वालामुखियों पर निर्भर हैं। ज्वालामुखी के भूतापीय ऊर्जा से आस-पास के समुदायों अपने तकनीकी सिस्टम को आसानी से ऑपरेट कर पाते हैं। माना जाता है कि सक्रिय ज्वालामुखियों के पास की मिट्टी अक्सर खनिज से भरपूर होती है जो खेती के लिए फायदेमंद होती है। आइए आपको हम कुदरत के इसी खजाने की सैर पर ले चलते हैं। 

मोगली और शेरखान के अड्डे की सैर

नीरज अंबुजऐसा कहा जाता है कि रुडयार्ड किपलिंग की ‘जंगल बुक’ कान्हा नेशनल पार्क पर आधारित है। यहां दूर तक फैले घास के मैदान, साल और बांस के घनघोर जंगल,  उछलते-कूदते बारहसिंघे, ताल किनारे पानी पीते हिरण, पक्षियों के झुरमुट, जंगली भैंसे, अजगर, लंगूर, भालू, हाथी जंगल बुक के सारे किरदार आंखों के सामने उतर आते हैं।एक दिन अचानक नीरज पाहुजा जी का फोन आया। उन्होंने कान्हा नेशनल पार्क चलने को कहा। मैंने आधा घंटा मांगा और दस मिनट में ही हामी भर दी। पाहुजा जी पर्यटन अधिकारी हैं। अभी तक उनसे ख़बरों के सिलसिले में ही बात होती थी। पहली बार घूमने जा रहे थे। वन्यजीवों से उन्हें विशेष लगाव है। देश के ज्यादातर नेशनल पार्क घूम चुके हैं। दुधवा के तो लॉकडाउन में चार राउंड लगा चुके हैं। इनके पास जंगल की एक से बढ़कर एक दिलचस्प कहानियां हैं। लखनऊ से हम दोनों साथ में निकले। इलाहाबाद में एक साथी जितेन्द्र सिंह को लेना था। उम्र 50 साल, लेकिन चेहरे की रौनक से 35-40 से ज्यादा नहीं लगते हैं। बेहद सरल और सौम्य। वह हद दर्जे के सकारात्मक आदमी और बनारस के बड़े ट्रेवल एजेंट हैं। पिछले तीस वर्षों से फील्ड में सक्रिय हैं।हम लखनऊ से इलाहाबाद पहुंचे। रात होटल में गुजारी। जितेन्द्र सिंह से मिले। सुबह आठ बजे इलाहाबाद से रीवा, मैहर, कटनी, जबलपुर होते हुए कान्हा नेशनल पार्क पहुंचे। कान्हा मध्य प्रदेश के मंडला जिले में पड़ता है। यहां पर्यटकों की एंट्री के लिए मुक्की, किसली, सरही...गेट हैं। मुक्की गेट से हमारी चार सफारी बुक थीं। दो सुबह की थीं, दो शाम की। दिनभर के सफ़र  जब मुक्की पहुंचे तो वन विभाग की एक चौकी पड़ी। वहां एक पीली पर्ची काटी गई। पैसा एक ढेला नहीं लिया गया। पर, उस पर टाइम नोट कर दिया गया। ये माजरा कुछ समझ से परे था। जंगल में नौ किमी चलने के बाद मुक्की गेट आया। चौकी पर गाड़ी रुकवा ली गई। मैं नीचे उतरा। वनकर्मी ने पर्ची पर टाइम चेक किया। बोला, गाड़ी तेज चलाकर आए हो। चालान कटेगा। सड़क पर जगह-जगह मोड़ थे। स्पीड ब्रेकर थे। गाड़ी क्या आदमी भी यहां तेज क़दमों से नहीं चल सकता था। फिर चालान काहे का। वनकर्मी बोला, ये पीली पर्ची स्पीड टेस्ट के लिए है। नौ किलोमीटर में आधे घंटे लगने चाहिए थे। आप 27 मिनट में पहुंच गए। मैंने कहा, तीन मिनट के लिए क्या दो हजार का चालान काट दोगे? उसने कुछ सोचा, फिर बैरिकेड उठवा दिया। बोला, जाइए। गाड़ी धीमी चलाइयेगा।मुक्की गेट के बाहर ही मुक्की गांव है। यहीं पर शानदार बाघ रिजॉर्ट है। जिसमें लकड़ी का शानदार काम हुआ है। एथनिक लुक दिल मोह लेता है, फिर पक्षियों की भरमार भी है। रिजाॅर्ट के मालिक विष्णु सिंह गेट पर ही हमारा इंतजार कर रहे थे। उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने डिनर भी हमारे साथ किया। वह यारबाज किस्म के इन्सान थे। थकान के बावजूद देर रात तक उनसे बात होती रही। सुबह 6.45 पर हमारी पहली सफारी थी। हमने विष्णु जी से साथ में चलने को कहा। उन्होंने बताया कि भरतपुर से उनके बचपन के मित्र आए हैं। उनके साथ कान्हा जाना है।सुबह पांच बजे उठे। हल्की-हल्की ठण्ड थी। जिप्सी ड्राइवर कमलेश ने कम्बल रखे। रिजॉर्ट से निकलकर मुक्की गांव देखा। गांव के सारे घर नीले रंग (नील) से पुते हुए थे। कमलेश ने बताया, यह गोंड आदिवासियों का इलाका है। उनकी शिव जी में गहरी आस्था रहती है। नीलकंठ की तरह घर भी नीले रखते हैं। गांव के किसी भी घर में फाटक भी नहीं थे। सिर्फ दो बल्लियां ऐसे लगाई गई थीं कि जानवर न घुस सकें। चोरी-चकारी का सवाल ही नहीं था। रास्ते में ढेरों महुआ के पेड़ दिखे। वहां महिलाएं दुधमुंहे बच्चों को किनारे रखकर महुआ के फूल बीन रही थीं।

भारत में हैं ये जंगल ट्रैक, एडवेंचर के शौकीनों के लिए जन्नत से कम नहीं

ढेर सारी हरियाली, हवा के साथ आती पत्तों की आवाजें, चिड़ियों की चहचहाहट और बीच में से कभी हाथी की चिंघाड़ तो कभी बाघ की दहाड़। ये सब शायद हर किसी को पसंद होता है। अगर आप वाइल्ड लाइफ प्रेमी हैं, तब तो सोने पर सुहागा। हमारे देश में ऐसे कई जंगल हैं जहां पर आप कुदरत की इन नेमतों का जी भर कर मजा ले सकते हैं। साथ में एडवेंचर का डोज तो होगा ही। भारत के जंगलों के बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं। यहां ट्रैकिंग का मजा ही कुछ और होता है। एडवेंचर के शौकीन लोगों को हाइकिंग और ट्रैकिंग का लुत्‍फ उठाने का मौका भी इन जंगलों में ही मिलता है। हम आपको बताने जा रहे हैं देश के ऐसे ही कुछ जंगलों के बारे में जहां आप खूब मजे कर सकते हैं। 

लॉकडाउन के बाद: घर पर हो गए हैं बोर तो लीजिए इन रोड ट्रिप्स का मजा

दुनियाभर में लोग कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी से परेशान हैं। इस महामारी के पहले वाली जिंदगी दोबारा जीने की हर कोई उम्मीद लगाए बैठा है, लेकिन अब लोगों ने धीरे-धीरे इस महामारी के साथ जीने की आदत डाल रहे हैं और वापस अपनी पुरानी जिंदगी की ओर लौटने लगे हैं। कई ऐसे लोग हैं जो इस बीच घर पर बैठे-बैठे बोर हो गए हैं। अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो हम लेकर आए हैं कुछ ऐसी नजदीकी जगहों की लिस्ट जहां की सैर आप अपनी कार में ही बैठकर पूरी सुरक्षा के साथ कर सकते हैं।

कोरोना में चिड़ियों से अंखियां लड़ाना

क्या चल रहा है इन दिनों? कहने का मतलब, क्वारंटीन में आप किस तरह दिन बिताते हैं। क्वारंटीन के वक्त आप बाहर के लोगों से नहीं मिल रहे होंगे। पर क्या आपने ध्यान दिया इन सबके बीच कुछ मेहमान ऐसे भी हैं, आपके द्वारा तय की गई इन बंदिशों का नहीं मानते और रोज घर का मुआयना करने चले आते हैं। मुमकिन है आपको इन मेहमानों से मुलाकात पसंद आएगी क्योंकि कई दिनों से घर में रहते हुए अलग-अलग खिड़कियों से दिखने वाला नजारा अब याद हो गया होगा, लॉन में टहलते हुए चिड़ियों का झुंड दिखता होगा, छत पर शाम को टहलते हुए अगर आसमान में नजर गई होगी, तो नीड़ की ओर लौटती पक्षियों की कतार अभी भी जेहन में ताजा होगी।

स्कूबा डाइविंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन हैं भारत की ये जगहें

कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें पानी देखकर ही डर लगता है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समंदर और नदियों के अंदर की दुनिया को जानने और समझने के लिए उत्सुक रहते हैं। अगर आपको भी समुद्री जीवन को जानने और समझने का शौक है तो स्कूबा डाइविंग आपके लिए बेस्ट एडवेंचर एक्टिविटी है। 

अगर आपको भी है बंजी जंपिंग का शौक? ये जगहें हैं बेस्ट

घूमने का शौक लगभग हर किसी को होता है। कोई सिर्फ सुकून के लिए घूमता है तो कोई मस्ती के लिए। पहाड़ हों या समंदर हर कोई अपने-अपने तरीके की एक्टिविटीज ढूंढ ही लेता है। तेजी से पॉप्युलर होती एडवेंचर एक्टिविटीज में बंजी जंपिंग का भी नाम शामिल है। अगर आपने अभी तक इसे ट्राई नहीं किया तो भारत में कई ऐसी जगहें हैं जहां जाकर आप बंजी जंपिंग का मजा ले सकते हैं। 

रिवर राफ्टिंग का है शौक तो एक्सप्लोर करें ये 5 जगहें

रिवर राफ्टिंग हमारे देश के सबसे पॉप्युलर एडवेंचर स्पोर्ट्स में से एक है। खतरों से खेलने वाले युवा इस तरह की एडवेंचर एक्टिविटीज के लिए मौके ढूंढते रहते हैं। इसीलिए यहां कई ऐसी जगह हैं जहां की रिवर राफ्टिंग काफी फेमस है। वैसे तो ज्यादातर लोग इस खतरे का खेल बताकर इससे दूर रहने को कहते हैं, लेकिन यकीन मानिए रिवर राफ्टिंग में इतना मजा आता है कि कब आप राफ्ट पर बैठकर नदियों की लंबी दूरी नाप लेते हैं पता ही नहीं चलता।  हालांकि रिवर राफ्टिंग में थोड़ा खतरा तो रहता है, लेकिन थोड़‍ी सी सावधानी बरत कर इसे जी भरकर एंजॉय किया जा सकता है। चलिए हम आपको बताते हैं भारत में रिवर राफ्टिंग की पांच सबसे बेहतरीन जगहों के बारे में। 

पैराग्लाइडिंग के लिए बेस्ट है हिमाचल की ये जगह

एडवेंचर को पसंद करने वाले लोग कितने साहसी होते हैं, इस बात का अंदाजा तो इसी से लग जाता है कि कभी वे हजारों फीट ऊपर से सिर्फ एक रस्सी बांधकर नीचे कूद जाते हैं तो कभी असमान में उड़ने को तैयार रहते हैं। वैसे तो ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि भारत में एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए कुछ खास नहीं है, लेकिन ये अब ऐसा नहीं है।

यहां आकर लीजिए एडवेंचर स्पोर्ट्स का मजा

एडवेंचर स्पोर्ट्स के शौकीनों के लिए भारत में कई जगह हैं। अगर आप भी मानते हैं कि डर के आगे ही जीत है और नई-नई एक्टिविटीज करने का शौक रखते हैं तो ये जगहें आपके लिए ही हैं। 

एडवेंचर स्पोर्ट्स का है शौक, ये जगहें ये बेस्ट

एडवेंचर स्पोर्ट्स का शौक है और नई-नई जगह एक्सप्लोर करना चाहते हैं तो घूमना और भी ज्यादा मजेदार हो जाता है। भारत में ऐसी बहुत सी जगह हैं जहां आप इन दोनों शौकों को एक साथ पूरा कर सकते हैं। जानिए इन जगहों के बारे में...

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