अस्कोट : उत्तराखंड का छिपा हुआ खजाना

अनुषा मिश्रा 22-08-2022 07:21 PM Adventure
घूमने के शौकीन लोगों को सबसे ज़्यादा पहाड़ ही पसंद आते हैं। सर्दियों में लोगों को बर्फ देखनी हो या गर्मी में ठंडे मौसम का मज़ा लेना हो पहाड़ बेस्ट ऑप्शन होते हैं छुट्टियां बिताने के लिए। हालांकि अब तो ज़्यादातर हिल स्टेशन्स पर अच्छी खासी भीड़ होने लगी है लेकिन कुछ छुपे हुए ठिकाने ऐसे भी हैं जहां कुदरत की नेमत अभी भी बरसती है। इनमें से एक है, उत्तराखंड में नेपाल बॉर्डर पर बसा अस्कोट। 

अस्कोट उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में दीदीहाट तहसील में एक पुरानी रियासत है। दूर-दूर तक फैले जंगल और हरी-भरी घाटी के बीच, यह एक छोटा हिमालयी शहर है जो धारचूला और पिथौरागढ़ के बीच एक छोर पर बसा है। यह शहर पूर्व में नेपाल, पश्चिम में अल्मोड़ा, दक्षिण में पिथौरागढ़ और उत्तर में तिब्बत की सीमा में है। 
समुद्र तल से 1,106 मीटर की औसत ऊंचाई पर बसे अस्कोट पर नेपाल के दोती राजाओं, राजबरों, चांदों, कत्यूरी, गोरखाओं जैसे कई शासकों का शासन रहा है। हालांकि उस समय अस्कोट दो हिस्सों में बंटा था। एक को मल्ला अस्कोट के नाम से जाना जाता था और दूसरे को तल्ला अस्कोट के नाम से जाना जाता था। 1742 में यहां की ज़मीन गोरखा शासन के अधीन थी और 1815 में अंग्रेजों द्वारा उन्हें वापस नेपाल में धकेल दिया गया था। उत्तराखंड की एक लुप्तप्राय जनजाति, वन रावत अस्कोट के आसपास बस्ती है।

'असकोट' नाम 'असी कोट' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 80 किले जो कभी इस क्षेत्र में खड़े थे। अब यहां इनके कुछ अवशेष ही बचे हैं। लोकप्रिय कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा का शुरुआती केंद्र यही है। अस्कोट प्राकृतिक सुंदरता और झरनों से घिरा हुआ है। यह कस्तूरी हिरण के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण जगह है। यहां अस्कोट कस्तूरी हिरण अभयारण्य के भी है।
अस्कोट से पंचुली और चिपलाकोट चोटियाँ एकदम साफ दिखती हैं। यहां देवदार, शीशम, ओक और साल के पेड़ों के जंगल के बीच गोरी गंगा और काली नदियां बहती हैं। हिमालय के कुमाऊं क्षेत्र में 5,412 फीट ऊंची चोटी पर बस अस्कोट आश्चर्यजनक रूप से सुंदर है। यहां ऐसी कई जगहें हैं जहां आप अपना समय बिता सकते हैं। 

अस्कोट अभयारण्य

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यह अभयारण्य मुख्य रूप से कस्तूरी हिरन (मोस्कस ल्यूकोगास्टर) और इसके आवास की रक्षा के लिए बनाया गया था। 1986 में स्थापित, अभयारण्य लगभग 599.93 किमी² के क्षेत्र में फैला हुआ है। भारत-नेपाल सीमा में बर्फ से ढकी चोटियों, ग्लेशियरों, खूबसूरत घाटियों और प्राचीन जंगलों के बीच बसा है यह खूबसूरत अभयारण्य। दो मुख्य नदियाँ धौली और इकली यहां से निकलती हैं और अभयारण्य बीच से देवदार, शीशम, ओक और साल के पेड़ों के बीच गोरी गंगा बहती है। कुमाऊं हिमालय की चोटी पर, 5,412 फीट की ऊंचाई पर अस्कोट अभयारण्य बना है। पंचचुली, नियोधुरा, नौकाना, छिपलकोट और नजीरीकोट जैसी प्रसिद्ध चोटियों का शानदार दृश्य यहां से दिखता है। 


नारायण स्वामी आश्रम 

यह नारायण नगर में एक पहाड़ी की चोटी पर 2,734 मीटर की ऊंचाई है। श्री नारायण स्वामी ने इस आश्रम की स्थापना की थी । 1936 में स्वामी द्वारा स्थापित मूल आश्रम की यह शाखा है। उन्होंने प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर तीर्थयात्रियों की मदद करने के लिए इसकी स्थापना की थी। इस आश्रम में कई सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है जिसमें लगभग 40 लोगों को समायोजित करने की क्षमता होती है। सर्दियों के महीनों में भारी हिमपात की वजह से आश्रम बंद रहता है। 


जौलजीबी

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 अस्कोट सेसिर्फ 15 किमी दूर जौलजीबी है, जहां गोरी और काली गंगा मिलती है। अस्कोट की यात्रा के दौरान इस जगह को देखना न भूलें। अगर यहां आए हैं तो ओगला और तवालघाट भी जा सकते हैं। अस्कोट

 के पास पिथौरागढ़, मुनस्यारी और माउंट एबॉट जैसी कई खूबसूरत जगहें हैं। अस्कोट में देश की कुछ बेहतरीन स्कीइंग रेंज भी हैं। प्रसिद्ध स्कीइंग श्रेणियों में पंचुली और चिपलाकोट शामिल हैं।


कैसे पहुंचें अस्कोट

हवाई मार्ग से अस्कोट जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है जो लगभग 350 किमी दूर है। ट्निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है, जो अस्कोट से लगभग 280 किमी दूर है। यहां से अस्कोट पहुंचने के लिए टैक्सी और बसें मिल जाती हैं। सड़क के रास्ते टनकपुर - पिथौरागढ़ से 55 किलोमीटर की दूरी पर पिथौरागढ़ से या काठगोदाम से 150 (लगभग) किलोमीटर की दूरी पर हल्द्वानी - अल्मोड़ा के रास्ते अस्कोट पहुंचा जा सकता है।

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