फूड एंड ड्रिंक्स

चलिए हमारे साथ उत्तराखंड के देसी ज़ायके के सफर पर

भारतीय व्यंजन अपने मुंह में पानी ला देने वाले मसालों और जीभ पर आने वाले चटकारों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर हैं। यहां के खाने से निकलने वाली खुशबू ही इतनी कमाल की होती है कि लोग उसी से खिंचे चले आते हैं। यहां के ज़्यादातर राज्यों का अपना अनूठा खाना है। ये खाना वहां के लोगों के स्वाद, उपज और मौसम को देखते हुए खास होता है। कहीं खाने में खट्टे और मीठे को मिक्स किये बिना कोई डिश पूरी नहीं होती तो कहीं तीखा के बिना लोगों के गले से निवाला नहीं उतरता। कहीं बिना चावल के खाना पूरा नहीं होता तो कहीं रोटी के बिना किसी का पेट नहीं भरता। खैर, जितने राज्य उतनी ही यर्ह के स्वाद और उतनी ही तरह के पकवान मिलकर ही इस देश के खाने को सबसे खास बनाते हैं। ऐसा ही एक राज्य है उत्तराखंड, जहां का देसी खाना भी इतना लाजवाब होता है कि इसके आगे आप इस्टाग्राम से फेमस हुई पहाड़ों वाली मैगी भी भूल जाएंगे। उत्तराखंड पंच फोरन या पांच मसालों और अन्य मसालों की किस्मों के सही इस्तेमाल के लिए मशहूर है। तो चलिए हम आपको बताते हैं यहाँ के 10 देसी व्यंजनों के बारे में…

सफर में स्ट्रीट फूड को छोड़कर खाएं ये हेल्दी स्नैक्स

सफर में स्ट्रीट फूड को छोड़कर खाएं ये हेल्दी स्नैक्सट्रैवेल करना लगभग हर किसी को पसंद होता है। सफर में कुछ चीज़ें होती हैं जो इसे और भी ज़्यादा मज़ेदार बना देती हैं। उनमें से एक है खाना। अगर आपको सफर के दौरान अच्छा खाना मिल जाए तो इसका आनंद दोगुना हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप खाने में सिर्फ अपने स्वाद का ध्यान रखें और उसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू के बारे में सोचें ही न।

पश्चिम बंगाल की 10 फेमस डिशेज जो बढ़ा देंगी आपकी भूख

पश्चिम बंगाल कई चीजों के लिए मशहूर है। गंगा यहां बंगाल की खाड़ी में मिलती है, यहां की दार्जीलिंग की चाय पूरी दुनिया पीती है, सुंदरबन की न जाने कितनी कहानियां पढ़कर हम बड़े हुए हैं, अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी यहीं बनाई और न जाने क्या-क्या। इन सबके साथ एक और चीज़ है जिसके लिए पश्चिम बंगाल पूरी दुनिया में मशहूर है और वह है यहां का लजीज़ खाना। मुंह में पानी लाने वाले रसगुल्ले, चोमचोम, और रसमलाई, सुपर स्वादिष्ट सोर्शे इलिश, चिंगरी माचेर मलाई करी और भी बहुत कुछ। हम आपको बता रहे हैं वेस्ट बंगाल के 10 ऐसी ही डिशेस के बारे में जो आपकी भूख को बढ़ा देंगी। 

इस तरह करें गणेश चतुर्थी की तैयारी

गणेश चतुर्थी को ज्ञान के देवता गणेश जी के जन्मदिन के रूप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश जी की रचना पार्वती जी ने की थी। जब शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया, तो देवी पार्वती बहुत दुखी हुईं। उन्होंने शंकर जी से कहा कि उन्हें हर हाल में उनके पुत्र गणेश वापस चाहिए। शिव जी ने गणेश जी के कटे हुए सिर को हाथी के सिर से बदल दिया और गणेश जी को वापस जीवित कर दिया। गणेश जी के जन्मदिन को पुरे देश में 10 दिनों तक बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हालांकि, ये त्योहार सबसे स्तर पर महाराष्ट्र में मनाते हैं । कहा जाता है कि महान मराठा नेता छत्रपति शिवाजी ने स्वयं इस त्योहार को अपने लोगों के बीच संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए एक सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया था, जो जाति से विभाजित थे। इसे राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक द्वारा 19वीं शताब्दी के अंत में देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता के संदेश को फैलाने के लिए फिर से धूमधाम से मनाया जाने लगा।  इसलिए यह त्योहार न केवल आस्था और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि भारत के समृद्ध इतिहास का भी प्रतीक है।इसमें कोई शक नहीं कि गणेश चतुर्थी की भव्यता का अनुभव करने के लिए सबसे अच्छी जगह मुंबई है। यहां इस त्योहार की तैयारी करीब एक महीने पहले से शुरू हो जाती है। पूजा गणेश जी की सुंदर नक्काशीदार रंगीन मूर्तियों की स्थापना के साथ शुरू होती है। गणेश जी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करके यह अनुष्ठान शुरू किया जाता है। 'प्राणप्रतिष्ठ' का शाब्दिक अर्थ 'जीवन की स्थापना' होता है, इसीलिए कहते हैं कि मूर्ति में स्वयं भगवान गणेश स्वयम विराजमान रहते हैं। इस पूजा में 10 दिनों के दौरान संगीत, नृत्य, नाटक और सभी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरे मुंबई में होते हैं। इन समारोहों के दौरान मुंबई की हर गली जीवंत हो उठती है। गणेश जी को हर दिन मिठाई का भोग लगाया जाता है, जिसमें मुख्य मोदक होता है, जिसे उनकी पसंदीदा मिठाई माना जाता है। फूल, चावल, नारियल, गुड़ और सिक्के भी चढ़ाए जाते हैं। त्योहार के अंतिम दिन, अनंत चतुर्दशी पर मूर्ति को विसर्जित करने के लिए विशाल जुलूस निकलते हैं और मूर्ति को नदी या समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। इस दिन मुम्बई की हवा भी "गणपति बप्पा मोरया" के जाप से गूंजती है लोग इस दिन गणपति जी से ज़िन्दगी के सभी दर्द और दुखों को दूर करने और अगले वर्ष जल्द ही वापस आने का अनुरोध करते हैं। गणेश चतुर्थी को अन्य राज्यों जैसे गोवा (यह कोंकणी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है), आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।इस बार 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। अगर आप भी इस दिन गणेश जी को उनका प्रिय मोदक खिलाना चाहते हैं तो हम आपको बता रहे हैं कुछ अलग तरह के मोदक बनाने की रेसिपी…

आपको भा जाएगा महाराष्ट्र का तीखा, खट्टा, मीठा ज़ायका

महाराष्ट्र न केवल अपनी बॉलीवुड कल्चर के लिए जाना जाता है ये अपने कमाल के खाने के लिए भी फेमस है। बहुत सारे महाराष्ट्रीयन व्यंजन हैं जो पूरे भारत में खाए और पसंद किए जाते हैं। महाराष्ट्र का ज़्यादातर फेमस खाना वेजेटेरियन ही है। हालांकि, मालवणी क्षेत्र में आपको नॉनवेज बहुत ज्यादा मिल जाएगा। महाराष्ट्र के लोग खाना बनाने में गेहूं, चावल, ज्वार, मूंगफली, बहुत सारे मसले, जड़ी-बूटियों और नारियल के तेल का इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं। वैसे तो ये राज्य इतना बड़ा है कि यहां के एक क्षेत्र में रहने वालों को कुछ पसंद आता है तो दूसरे क्षेत्र में रहने वालों को कुछ और। लेकिन हम आपको बताएंगे यहां के ऐसे फेमस कुजिन्स के बारे में जिन्हें आप एक बार ट्राई करेंगे तो इनका स्वाद नहीं भूल पाएंगे।

फलों की राजधानी के नाम से जाना जाता है इन शहरों को

दुकानों पर बिकते ताजे फल देखकर ही उन्हें लेने का मन कर जाता है। अब जरा सोचिए कि आप सीधे अपने पसंदीदा फलों के बगीचे में पहुंच जाएं तो यकीनन उस बाग की तरह आपका मन भी बाग-बाग हो जाएगा। तो चलिए हमारे साथ, हम आपको सैर कराते हैं देशभर के उन मशहूर शहरों की जिनकी पहचान वहां होने वाले फलों से ही होती है। फलों से तो शायद हर किसी को प्यार होता है। हो भी क्यों न? आखिर हमारे शरीर की आधे से ज़्यादा ज़रूरतें फल पूरी कर देते हैं। हेल्दी शुगर का भी बेस्ट ऑप्शन फल ही होते हैं। फाइबर और मिनरल्स से भरे फलों के बारे में साइंटिस्ट्स भी कहते हैं कि जो लोग स्नैक्स की जगह फ्रूट्स खाकर पेट भरते हैं, उनका मेटाबोलिज्म बाकी लोगों की तुलना में बेहतर होता है। ये तो बातें हुईं फलों के फायदे की। अब हम आपको बताते हैं कि हमारे देश के वो कौन से वे शहर हैं जो फलों के नाम से मशहूर हैं…नागपुर के संतरेमहाराष्ट्र का नागपुर शहर, संतरों के शहर के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत का सबसे बड़ा संतरे का उत्पादक शहर है और विश्व में संतरे के कुल उत्पादन का लगभग 3 फीसदी हिस्सा नागपुर में ही पैदा होता है। 2014 में जियोग्राफिकल इंडिकेशन विभाग से इसे जीआई टैगिंग भी मिल चुकी है। नागपुर में जगह-जगह आपको कई हेक्टेयर क्षेत्र में फैले संतरे के बाग दिख जाएंगे। अगर आपको संतरे पसंद हैं तो नागपुर का रुख करिए।नागपुर में घूमने लायक जगहेंसंतरों के साथ-साथ ये शहर अपने खूबसूरत मंदिरों, झीलों, हरे भरे बगीचों के लिए जाना जाता है। अगर आप यहां आए हैं तो डॉ. अम्बेडकर की याद में और उनके बौद्ध धर्म अपनाने की घटना पर बनवाया गया दीक्षाभूमि स्तूप, समृद्ध पौराणिक इतिहास समेटे रामटेक किला, ड्रैगन पैलेस बौद्ध मंदिर (जिसे नागपुर के लोटस टेम्पल के रूप में भी जाना जाता है), लता मंगेशकर म्यूजिकल गार्डन, अक्षरधाम मंदिर, रमन विज्ञान केंद्र आदि भी घूम सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के सेबयूं तो कश्मीर के भी सेब मशहूर हैं, लेकिन रस से भरे हिमाचली सेबों का कोई जोड़ नहीं। कहते हैं कि एक सेब जो रोज है खाता डॉक्टर को वह दूर भगाता, और अगर यह सेब हिमाचल का हो तब तो डॉक्टर भी दूर भागेगा और स्वाद भी जबरदस्त मिलेगा। हिमाचल में किन्नौर, शिमला, रोहड़ू, कोटगढ़ के साथ कई शहरों की ढलानों पर सेब के बागान हैं। सेब से लदे पेड़ों के पास फ़ोटो खिंचाइये या इन्हें डाल से खुद तोड़कर खाइए, मज़ा न आए तो पैसे वापस। अगर आप यहां जाना चाहते हैं, तो जून और सितंबर के बीच जा का समय बेस्ट है।हिमाचल प्रदेश में घूमने लायक जगहेंयूं तो हिमाचली सेब के बाग इतने सुंदर होते हैं कि यहां आकर आपका कहीं और जाने का मन ही नहीं करेगा। भई, पूरा हिमाचल ही घूमने लायक है। कुल्लू, मनाली, शोघी, शिमला, स्पीति, कसौल, कसौली कहीं भी चले जाइये। 

चाय की चुस्कियों में खो जाएंगे यहां

सौ गम भुला देगी और खुशियां बढ़ा देगी एक चाय की चुस्की को ये कमाल आता हैहो यारों की टोली या मेहमानों का जमघटमहफ़िल में हर तरह से रौनक बढ़ा देगीएक चाय की चुस्की को ये कमाल आता हैहो समंदर का किनारा या पहाड़ों की चोटीसफर को ये पहले से खूबसूरत बना देगीएक चाय की चुस्की को ये कमाल आता हैजी हां, एक चाय की चुस्की में वाकई ये कमाल है कि वो हर किसी को अपना दीवाना बना लेती है। खासकर जब हम सफर कर रहे होते हैं तब तो चाय ही हमारा पक्का हमसफ़र बनती है। तो चलिए आज हम आपको ले चलते हैं चाय के साथ, चाय के सफर पर। अरे, मेरा मतलब है चाय के बागानों के सफर पर...आपका तो पता नहीं, लेकिन मेरा कोई जानने वाला अगर ये कह देता है कि उसे चाय पसंद नहीं तो मुझे वही पसंद आना बंद हो जाता है। सुबह आंख खुलने से लेकर रात में सोने तक जब भी कोई पूछे - चाय पिओगी? हमारा जवाब 'न' हो ही नहीं सकता। गली का नुक्कड़ हो या घर का कमरा, दूर तक फैली वादियां हों या घने जंगल का कोई कोना, बेड पर बिस्तर में घुसकर या खुले आसमान में सितारों के नीचे, जगह कोई भी हो, मौसम कोई भी हो, मूड कैसा भी, हो चाय उसे अच्छा बना देती है। तो ज़्यादा बातें किए बिना मैं आपको ले चलती हूं देश के सबसे अच्छे चाय बागानों की यात्रा पर। आखिर आपको भी तो पता होना चाहिए कि आपकी रग-रग को ताज़गी से भर देने वाली चाय आखिर आती कहां से है।दार्जीलिंग, पश्चिम बंगालशैम्पेन ऑफ टी के नाम से मशहूर है दार्जीलिंग शहर। दार्जिलिंग में चाय के 87 बागान हैं जिनमें हर साल लगभग 85 लाख किलो चाय पैदा होती है। यहां के हर बागान में अपने तरह की अनूठी, शानदार खुशबू वाली चाय तैयार की जाती है। दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा की ढलानों पर बसी हैं दार्जीलिंग की पहाड़ियां और इन पहाड़ियों पर हैं यहां के चाय बागान। वैसे तो यहां की हर चाय खास है, लेकिन दार्जीलिंग से 33 किलोमीटर दक्षिण की तरफ दुनिया की सबसे पुरानी चाय की फ़ैक्ट्रियों में से एक है जिसमें एक दुर्लभ किस्म की चाय की पत्ती और कली मिलती है। इसे सिल्वर टिप्स इम्पीरियल के नाम से जाना जाता है। इस चाय की कलियों को कुछ खास लोग ही तोड़ते हैं जिनका ताल्लुक मकाईबाड़ी चाय बागान से होता है। सिल्वर टिप्स इम्पीरियल चाय को पूर्णमासी की रात में ही तोड़ा जाता है। इस चाय की कीमत लगभग 37,000 रुपये किलो है। कोई बात नहीं अगर आप इतनी महंगी चाय नहीं पीना चाहते। यहां के किसी भी बागान में हरियाली के बीच बैठकर चाय पीजिए आपको मज़ा आ ही जाएगा। कैसे पहुंचें दार्जीलिंगदार्जीलिंग पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट बागडोगरा है जो यहां से 67 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते ढाई घंटे में आप एयरपोर्ट से दार्जीलिंग पहुंच सकते हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है जो यहां से 70 किलोमीटर दूर है। आप चाहें तो गंगटोक, कलिम्पोंग, सिलीगुड़ी जैसे शहरों से सड़क मार्ग के जरिए भी दार्जीलिंग जा सकते हैं।जोरहाट, असमआसाम का जोरहाट सबसे बड़ा चाय उत्पादक क्षेत्र माना जाता है। यहां और इसके आसपास के इलाकों में चाय के लगभग 135 बागान हैं। यहां के सिन्‍नामोरा चाय बागान की खूबसूरती बेमिसाल है। बागान में चाय की छोटी - छोटी झाड़ियों से गुजरते हुए सैर की जा सकती है। अगर आप जानना चाहते है कि चाय कैसे बनाई जाती है, उसे कैसे उगाया जाता है तो सिन्‍नोमोरा चाय बागान सबसे अच्छी जगह है। यहां आप ये सब देख सकते हैं। इसके अलावा यहां का टोकलाई चाय अनुसंधान केंद्र, दुनिया का सबसे पुराना चाय संस्‍थान है जो जोरहाट की सुंदरता को बढ़ाता है। यहां हर वर्ष चाय महोत्सव मनाया जाता है। यानी चाय के दीवानों के लिए एकदम परफेक्ट दिन। यही वजह है कि हर साल इस दिन भारी तादाद में पर्यटकों की भीड़ यहां पहुंच जाती है। कैसे पहुंचें जोरहाट, असमजोरहाट, असम के अन्‍य भागों से अच्‍छी तरह जुड़ा हुआ है और देश के अन्‍य हिस्‍सों में भी यहां से होकर गुजरने वाले राष्‍ट्रीय राजमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। जोरहाट में निजी हवाई अड्डा और रेलवे स्‍टेशन भी है।मुन्नार, केरलघूमने के शौकीन और कुदरत के चाहने वाले केरल को 'God's own country' कहते हैं। यूं तो केरल में हर जगह खास और घूमने लायक है, लेकिन मुन्नार की बात ही कुछ और है। तकरीबन 1700 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस हिल स्टेशन की घुमावदार गोल-गोल पहाड़ियों पर एक ही ऊंचाई के चाय के पौधों को देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने पूरे इलाके में हरे रंग की मखमली कालीन बिछा दी हो। अंग्रेजों ने 1857 में मुन्नार में चाय बागान की नींव रखी थी। जॉन डेनियल मुनरो जब केरल पहुंचे तो उन्हें इस जगह से प्यार हो गया। बस तभी से केरल चाय बागानों का घर बन गया। यहां - एवीटी चाय, हैरिसन मलयालम, सेवनमल्ले टी एस्टेट, ब्रुक बॉन्ड जैसे कई चाय बागान हैं। खास बात यह है कि आप इन चाय बागानों में रुक भी सकते हैं। केरल का राज्य पर्यटन विभाग यात्रियों को ये सुविधाएं देता है। यहां टाटा टी ने एक म्यूजियम भी बना रखा है, जहां चाय उगाने से लेकर उसे प्रॉसेस करने की पूरी प्रक्रिया देख सकते हैं। यहां पुरानी तस्वीरों के साथ एक वीडियो के जरिए चाय के इतिहास की पूरी जानकारी मिलेगी।कैसे पहुंचें मुन्नार, केरलमुन्नार से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट कोचीन है। जहां से पर्यटक आसानी से बस या टैक्सी द्वारा मुन्नार पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग से पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन एर्नाकुलम है। बस मार्ग से भी आप केरल आसानी से पहुंच सकते हैं। ऊटी, तमिलनाडुदक्षिण भारत में पहाड़ों की रानी कही जाने वाली ऊटी हर तरह की खूबसूरती अपने आप में समेटे हैं। यहां पहाड़ों की ठंडक है, बगीचों की हरियाली और झीलों की ताज़गी भी, इसके साथ ही यहां कई एकड़ों में फैले चाय के बागान भी हैं जिनकी खुशबू लोगों पर अपना जादू चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती। नीलगिरी की पहाड़ियों पर ऊंचे-नीचे चाय के बागान देखकर आपका मन करेगा कि यहीं इन हरी पत्तियों के झुरमुट के बीच बैठकर एक प्याली चाय तो पी ही लेनी चाहिए। ऊटी में पैदा होने वाली चाय की भारत में तो खपत है ही, ये अमेरिका और ब्रिटेन में भी निर्यात की जाती है। ऊटी से 17 किलोमीटर की दूरी पर कुनूर टी एस्टेट यहां का सबसे मशहूर चाय का बागान है। यहां आपको कई तरह की चाय की खुशबू के साथ जंगली फूलों की सुंदरता भी देखने को मिलेगी। इसके अलावा लैम्ब्स रॉक टी एस्टेट भी देखने लायक है। यहां से कोयम्बटूर के प्लेन्स भी साफ दिखाई देते हैं। खास बात ये है कि लैम्ब्स रॉक में आप चाय के साथ कॉफ़ी प्लान्टेशन भी देख पाएंगे। ऊटी का स्विट्जरलैंड कही जाने वाली केटी वैली का एक ट्रिप भी आप चाय के बागानों को देखने के लिए कर सकते हैं। कैसे पहुंचें ऊटी, तमिलनाडुऊटी का नजदीकी एयरपोर्ट कोयम्बटूर एयरपोर्ट है जो ऊटी से 85 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद समेत देश के प्रमुख शहरों से नियमित फ्लाइट्स कोयंम्बटूर आती हैं। ऊटी से 40 किलोमीटर दूर स्थित मेट्टूपलयम ऊटी का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। चेन्नई, मैसूर, बेंगलुरु समेत कई नजदीकी शहरों से नियमित ट्रेनें मेट्टूपलयम आती हैं। यहां से आपको ऊटी के लिए ट्वॉय ट्रेन मिल जाएगी। ट्वॉय ट्रेन का सफर आपकी ट्रिप को यादगार बना देगा। ट्रेन की कई जगह बगानों से होकर गुजरती है। आप चाहें तो तमिलनाडु स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन की बस सर्विस के जरिए भी ऊटी पहुंच सकते हैं। इसके अलावा बेंगलुरु, चेन्नई और मैसूर जैसे पड़ोसी शहरों से भी सरकारी औऱ प्राइवेट बसें ऊटी के लिए चलती हैं।पालमपुर, हिमाचल प्रदेशउत्तर पश्चिमी भारत की चाय की राजधानी के रूप में जाना जाता है हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी का पालमपुर। कई एकड़ क्षेत्र में फैले चाय के बागान ही यहां के लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन हैं। यहां के इतिहास की मानें तो 1849 में उत्तर - पश्चिम सीमांत प्रांत में बॉटनिकल गार्डन के अधीक्षक डॉ. जेम्सन ने यहां चाय के बागानों की शुरुआत की थी। 1883 में चाय के कारण ही इसे पूरी दुनिया में पहचान मिली। बाजार में जो दरबारी, बागेश्वरी, बहार और मल्हार नाम से चाय बिकती है, वह यहीं की कांगड़ा किस्म की चाय होती है। ये सभी ब्रांड्स के नाम संगीत के रागों के नाम पर हैं। कांगड़ा की हवा, मिट्टी और बर्फ ढके पहाड़ों की ठंडक, ये सब मिलकर यहां की चाय को खास बनाते हैं और आपकी चाय के कप में जादू घोल देते हैं। पालमपुर आए हैं तो चाय के बागानों की सैर कभी भी मिस न करिएगा। आप यहां चाय बनाने का पूरा तरीका भी देख सकते हैं। चाय बागानों में एक झोपड़ी में गर्म कांगड़ा चाय के एक कप का स्वाद लेना भी आपके लिए बेहद खास साबित हो सकता है। और हां, इसकी एक तस्वीर लेना बिल्कुल मत भूलिएगा।कैसे पहुंचें पालमपुर, हिमाचल प्रदेशपालमपुर का निकटतम हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है। जो यहां से 25 किमी की दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो यहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर है। पालमपुर हिमाचल प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए सीधी बसें धर्मशाला, मनाली, कांगड़ा, चंडीगढ़ और शिमला से चलती हैं।टेमी टी एस्टेट, सिक्किमसिक्किम के टेमी चाय बागान की स्थापना यहां के राजा चोग्याल के शासनकाल में 1969 में हुई थी। कुछ समय बाद 1977 में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन शुरू हो गया। यहां चाय बागान के रोजमर्रा के कामकाज को ठीक ढंग से रखा व किया जा सके, इसलिए 1974 में चाय बोर्ड की बनाया गया। कुछ समय बाद टेमी टी एस्टेट सरकारी उद्योग विभाग की सहायक कम्पनी बन गई। खास बात यह है कि यहां 440 एकड़ से भी ज़्यादा क्षेत्र में जैविक खेती करके लगभग 100 टन चाय उगाई जाती है। यदि बड़े चाय बागानों से मुकाबला किया जाए, तो यह पैदावार बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुगंध ने भारत और दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया है। जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका और जापान टेमी चाय के प्रमुख खरीदार हैं। टेमी चाय को भारतीय चाय बोर्ड की तरफ से साल 1994 और 1995 के लिए "अखिल भारतीय गुणवत्ता पुरस्कार" भी मिल चुका है। यहां से कंचनजंगा की ऊंची चोटियां भी साफ दिखती हैं। वैसे तो यहां नवम्बर के महीने में चेरी के फूल भी देखने लायक होते हैं, लेकिन सालभर यहां का मौसम अच्छा ही रहता है। कैसे पहुंचें सिक्किमयहां का निकटतम हवाईअड्डा बागडोगरा है जो यहां से 118 किलोमीटर की दूरी पर है। देश के लगभग सभी बड़े हवाईअड्डों से यहां के लिए फ्लाइट मिल जाती हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है, जिसकी दूरी 114 किलोमीटर है। आगे की दूरी आप टैक्सी से तय कर सकते हैं। 

100 साल से भी पुराने, खाने के ठिकाने

भारत के किसी किस्से से कम पुरानी नहीं है ज़ायके की कहानी और  इन व्यंजनों की खुशबू उतनी ही ताजी है जितनी बगीचे में लगे पुदीने में आती है। सदियों पुराने ज़ायके और खाने की ताज़ी-ताज़ी खुशबू को आप तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं भारत में कई दशकों से चले आ रहे कैफे और रेस्त्रां। पुराने दौर के ज़ायके को आप तक पहुंचाने वाले कुछ रेस्त्रां तो नए पुरानी यादों को खुद में समेटे नए अंदाज़ में ढल गए हैं, यानी यहां आपको विंटेज वाली फीलिंग तो आएगी ही, नए ज़माने वाली लग्जरी भी मिलेगी, वहीं इनमें से कुछ खाने के ठिकाने ऐसे हैं जो आज भी लोगों को सिर्फ अपने स्वाद और नाम से ही अपनी ओर खींचने में कारगर हैं। यहां आपको न तो लग्जरी फीलिंग मिलेगी और न ही कोई विंटेज थीम, हां स्वाद ऐसा होगा कि आप सड़क पर लाइन लगाकर भी इनके यहां खाना लेने को तैयार रहेंगे। तो चलिए हमारे साथ भारत के पुराने ज़ायके के सफर पर…

आपको भा जाएगा नवाबी लखनऊ का शाही ज़ायका

नवाबों का शहर और अवधी खाने का गढ़ खाने के शौकीन लोगों के लिए जन्नत से कम नहीं है। यहां के टुंडे के कबाब हों या लखनवी ​बिरयानी, प्रकाश की कुल्फी फालूदा हो या रुई से भी हल्का मलाई मक्खन, इन्हें देखकर ही आपके मुंह में पानी आएगा। लखनऊ के स्वाद, खुशबू और हवा में ही जादू है। स्वाद से लबरेज़ लखनऊ की डिशेज़ आपको इस शहर का दीवाना बना देंगी। अगर आप लखनऊ घूमने आ रहे हैं तो यहां की ये फेमस डिशेज़ खाना न भूलें...

‘मसालों की रानी’ की कहानी

कभी एक छोटी सी इलायची पूरे खाने का स्वाद बदल देती है तो कभी इसका बस एक दाना ही मुंह को महकाने के लिए काफी होता है। मीठा हो या तीखा, ये हर खाने को लजीज बनाने में काम आती है। इलायची वाली चाय के तो क्या कहने। सर्दियों में जो मजा अदरक वाली चाय में आता है, इलायची उसी चाय को गर्मियों में भी खास बना देती है। हो सकता है कि आपकी यादों में भी इलायची से जुड़ी कोई कहानी हो लेकिन आज हम आपको बताएंगे इसकी खुद की कहानी। कितनी पुरानी है इलायची, कहां सबसे ज्यादा पैदा होती है और कैसे ये पूरी दुनिया में पहुंची, सब कुछ...

किस्सा-ए-संतरा…

ज्यादा पीला और कुछ हिस्सा हरा, संतरा ऐसा ही होता था। होता था क्या, होता है। हालांकि अब इसकी कई वैराइटीज बाजार में आ गई हैं, लेकिन इस पीले और हरे वाले संतरे की बात ही अलग है। हो सकता है कि आप में से ज्यादातर लोगों का पसंदीदा फल आम हो, लेकिन बचपन में हमने संतरे के साथ जितनी मस्ती की है उतनी किसी और फल के साथ नहीं की। इसके छिलके को किसी की आंख के सामने ले जाकर दबाने पर सामने वाले को आंखें मलते देखने में जो मजा आता था उसकी बात ही कुछ और थी। आप में से भी कई लोगों ने शायद इसके छिलके के रस को हाथ पर निकाल कर स्केल से जाला भी बनाया होगा। आपकी जिंदगी में संतरे से जुड़े किस्से तो बहुत होंगे आज हम आपको बताते हैं किस्सा-ए-संतरा…

इन फेमस खाने की थालियों को अकेले खत्म करना बड़ा टास्क

भई किसी दूर शहर घूमने फिरने जाओ और बिना वहां की बाजार देखे और खाने का स्वाद चखे लौट आओ तो ये भी कोई बात। मैं तो कहीं भी घूमने जाती हूं तो वहां के देखने लायक जगहों के बाद दूसरा सवाल यही होता है कि यहां खाने में फेमस क्या है। भारत के अलग-अलग राज्य अपने आप में एक अलग स्वाद भी समेटे हैं कहीं सादा खाना खाया जाता है तो कहीं चटपटा। कहीं खट्टे का पलड़ा भारी है तो कहीं मीठे की मिठास ज्यादा है। कई ऐसी भी फेमस जगहें हैं जहां की थाली देखकर ही आप हैरान हो जाएंगे। रंग-बिरंगे स्वादिष्ट खानों से सजी इन थालियों को देखकर मुंह में पानी तो आयेगा ही लेकिन खत्म करने के लिए बहुत हिम्मत भी होनी चाहिए। तो आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही खास थालियों के बारे में जिसका स्वाद और रूप आपको अपना मुरीद बना देगा।

गुजराती खाना : नाम पर नहीं स्वाद पर जाइए

आपको 'थ्री इडियट्स' फिल्म में करीना कपूर का डायलॉग याद है? जिसमें वह कहती हैं - तुम गुजराती लोगों का खाना इतना खतरनाक क्यों होता है? ढोकला, फाफड़ा, हांडवो, थेपला... जैसे मिसाइल है। हो सकता है कि आप में से भी कई लोगों को कई गुजराती डिशेज का नाम मिसाइल जैसा ही लगता हो (मुझे भी लगता है) लेकिन, इसके शानदार स्वाद से आप मुंह नहीं मोड़ सकते। इसीलिए इस बार हम आपके लिए लेकर आए हैं, कुछ ऐसे ही लाजवाब गुजराती व्यंजनों की लिस्ट, जिन्हें एक बार खाकर आप इनके मिसाइल जैसी होने की बात भूल जाएंगे।

डेल्ही बेली : दिल्ली में हैं तो मत भूलिए चखना इनके स्वाद

राजधानी दिल्ली पूरे देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को खुद में समेटे है। देश का ऐसा कोई राज्य नहीं होगा जहां के लोग दिल्ली में न रहते हों। इसीलिए यहां हर जगह की मिट्टी, खुशबू और रंग मिल गए हैं, ऐसे में दिल्ली खाने के मामले में कैसे पीछे रह जाती। दिल्ली की गलियों में आपको जो खाना मिलेगा, वो शायद देश के बाकी हिस्सों में भी मिलता हो लेकिन यहां के जैसा स्वाद आपको कहीं और नहीं मिलेगा...और हां, कुछ स्पेशल डिशेज भी हैं जो आपको सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की बाजारों में ही मिलेंगी...

देश चखता है इन लजीज नाश्तों का स्वाद

इंडिया अपने संस्कृति, कला, खूबसूरत इमारतों के साथ-साथ खान-पान के लिए भी जाना जाता है। बोलचाल, रहन-सहन की तरह ही यहां के हर राज्य में आपको खाने में भी विविधता मिलेगी। कहीं के खाने की खुशबू आपके मुंह में पानी ला देगा तो कहीं का स्वाद आपकी जुबान पर देर तक अपना असर छोड़ेगा। राजस्थान के खाने में आपको मसाले की खुशबू मिलेगी तो वहीं साउथ इंडियन जायके लाइट और स्वाद से भरपूर होते हैं। हम बात करने जा रहे हैं फेसम नाश्तों की जो कुछ राज्यों की पहचान हैं, जब भी इन जगहों पर कभी घूमने का प्लान बनें तो सुबह के नाश्ते में वहां की स्पेशलिटी को चखना न भूलें। 

दुनिया की पुरानी रेसिपी, जो उतारेगी आपका हैंगओवर

अगर हम पूछें कि आपकी प्लेट में रखा खाना कितना पुराना है? मुमकिन है आप हैरत में पड़ जाएंगे और जवाब देंगे कि ताजा है, आधे घंटे पहले ही तो बना है या फिर प्रोसेस्ड फूड है, जिसे फ्रिज से निकाला है। आपका जवाब सही हो सकता है लेकिन जनाब, हमारा तो सवाल है कि क्या आप जानते हैं आपकी प्लेट में रखा केक, मफींस, ग्रिल्ड आइटम या फिर स्टू पहली बार कितने साल पहले पकाया गया था। सवाल जरा टेढ़ा है लेकिन बेहद मजेदार है। दरअसल, यह सवाल पैदा हुआ हाल ही में 4000 साल पुरानी रेसिपी को बनाने की कोशिशों से। इंटरनेशनल स्कॉलर्स की टीम इसे बनाने की कोशिश में लगी हुई है। दुनिया की इस सबसे पुरानी डिश को लैंब स्टू कहा जा सकता है। हम आपको इस बार दुनिया की कुछ ऐसी पुरानी डिशेज और पेय पदार्थों के बारे में बताएंगे, जिनका इतिहास हजारों साल पुराना है।

एक चाय की चुस्की.....एक कहकहा

दूर-दूर तक फैली खूबसूरत वादियां हों, ठंडी हवाएं आपको छूकर तरोताजा कर रहीं हों, झीलें एक मीठी सी धुन सुनाकर बह रहीं हों और आप हाथों में चाय का कप लिए इस खूबसूरती को बस देर तक निहार रहे हों। चाय के दीवानों को इससे ज्यादा और क्या चाहिए कि मनपसंद सफर हो और साथ में अदरक वाली चाय की गर्म चुस्कियां। उत्तर भारत के ज्यादातर लोगों का फेवरेट ड्रिंक चाय ही माना जाता है और कई तो इस कदर चाय के शौकीन हैं कि उन्हें किसी भी मौसम और दिन-रात से मतलब नहीं होता बस किसी ने चाय का नाम भर लिया और इन्हें तलब हो उठती है। इसमें कोई शक नहीं कि ये आपके सफर को दोगुना मजेदार बना देती है तो ग्रासहॉपर के इस अंक में हम बात करने जा रहे हैं चाय की अलग-अलग वैरायिटीज की और अगर आप खुद को टी लवर मानते हैं तो जरूरी है कि इन सभी अलग-अलग किस्म की चायों के स्वाद का मजा जरूर लें। 

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