इको टूरिज्म

सतपुड़ा नेशनल पार्क में लें पैदल सफारी का मज़ा

सतपुड़ा नेशनल पार्क में लें पैदल सफारी का मज़ाजब आप पेड़ों, घास, पक्षियों, झाड़ियों और बाकी प्राकृतिक चीजों से घिरे होते हैं तो एक अलग तरह का मानसिक सुकून मिलता है। कुदरत न केवल हमारे शरीर को बल्कि मन को भी ठीक करती है। इस तरह की शांति आज के समय में मुश्किल है, लेकिन पूरी तरह से असंभव भी नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम भाग्यशाली हैं कि सतपुड़ा नेशनल पार्क जैसी प्राकृतिक जगहें हैं जहां आप वास्तव में प्रकृति के करीब रह सकते हैं। 

मोगली और शेरखान के अड्डे की सैर

नीरज अंबुजऐसा कहा जाता है कि रुडयार्ड किपलिंग की ‘जंगल बुक’ कान्हा नेशनल पार्क पर आधारित है। यहां दूर तक फैले घास के मैदान, साल और बांस के घनघोर जंगल,  उछलते-कूदते बारहसिंघे, ताल किनारे पानी पीते हिरण, पक्षियों के झुरमुट, जंगली भैंसे, अजगर, लंगूर, भालू, हाथी जंगल बुक के सारे किरदार आंखों के सामने उतर आते हैं।एक दिन अचानक नीरज पाहुजा जी का फोन आया। उन्होंने कान्हा नेशनल पार्क चलने को कहा। मैंने आधा घंटा मांगा और दस मिनट में ही हामी भर दी। पाहुजा जी पर्यटन अधिकारी हैं। अभी तक उनसे ख़बरों के सिलसिले में ही बात होती थी। पहली बार घूमने जा रहे थे। वन्यजीवों से उन्हें विशेष लगाव है। देश के ज्यादातर नेशनल पार्क घूम चुके हैं। दुधवा के तो लॉकडाउन में चार राउंड लगा चुके हैं। इनके पास जंगल की एक से बढ़कर एक दिलचस्प कहानियां हैं। लखनऊ से हम दोनों साथ में निकले। इलाहाबाद में एक साथी जितेन्द्र सिंह को लेना था। उम्र 50 साल, लेकिन चेहरे की रौनक से 35-40 से ज्यादा नहीं लगते हैं। बेहद सरल और सौम्य। वह हद दर्जे के सकारात्मक आदमी और बनारस के बड़े ट्रेवल एजेंट हैं। पिछले तीस वर्षों से फील्ड में सक्रिय हैं।हम लखनऊ से इलाहाबाद पहुंचे। रात होटल में गुजारी। जितेन्द्र सिंह से मिले। सुबह आठ बजे इलाहाबाद से रीवा, मैहर, कटनी, जबलपुर होते हुए कान्हा नेशनल पार्क पहुंचे। कान्हा मध्य प्रदेश के मंडला जिले में पड़ता है। यहां पर्यटकों की एंट्री के लिए मुक्की, किसली, सरही...गेट हैं। मुक्की गेट से हमारी चार सफारी बुक थीं। दो सुबह की थीं, दो शाम की। दिनभर के सफ़र  जब मुक्की पहुंचे तो वन विभाग की एक चौकी पड़ी। वहां एक पीली पर्ची काटी गई। पैसा एक ढेला नहीं लिया गया। पर, उस पर टाइम नोट कर दिया गया। ये माजरा कुछ समझ से परे था। जंगल में नौ किमी चलने के बाद मुक्की गेट आया। चौकी पर गाड़ी रुकवा ली गई। मैं नीचे उतरा। वनकर्मी ने पर्ची पर टाइम चेक किया। बोला, गाड़ी तेज चलाकर आए हो। चालान कटेगा। सड़क पर जगह-जगह मोड़ थे। स्पीड ब्रेकर थे। गाड़ी क्या आदमी भी यहां तेज क़दमों से नहीं चल सकता था। फिर चालान काहे का। वनकर्मी बोला, ये पीली पर्ची स्पीड टेस्ट के लिए है। नौ किलोमीटर में आधे घंटे लगने चाहिए थे। आप 27 मिनट में पहुंच गए। मैंने कहा, तीन मिनट के लिए क्या दो हजार का चालान काट दोगे? उसने कुछ सोचा, फिर बैरिकेड उठवा दिया। बोला, जाइए। गाड़ी धीमी चलाइयेगा।मुक्की गेट के बाहर ही मुक्की गांव है। यहीं पर शानदार बाघ रिजॉर्ट है। जिसमें लकड़ी का शानदार काम हुआ है। एथनिक लुक दिल मोह लेता है, फिर पक्षियों की भरमार भी है। रिजाॅर्ट के मालिक विष्णु सिंह गेट पर ही हमारा इंतजार कर रहे थे। उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने डिनर भी हमारे साथ किया। वह यारबाज किस्म के इन्सान थे। थकान के बावजूद देर रात तक उनसे बात होती रही। सुबह 6.45 पर हमारी पहली सफारी थी। हमने विष्णु जी से साथ में चलने को कहा। उन्होंने बताया कि भरतपुर से उनके बचपन के मित्र आए हैं। उनके साथ कान्हा जाना है।सुबह पांच बजे उठे। हल्की-हल्की ठण्ड थी। जिप्सी ड्राइवर कमलेश ने कम्बल रखे। रिजॉर्ट से निकलकर मुक्की गांव देखा। गांव के सारे घर नीले रंग (नील) से पुते हुए थे। कमलेश ने बताया, यह गोंड आदिवासियों का इलाका है। उनकी शिव जी में गहरी आस्था रहती है। नीलकंठ की तरह घर भी नीले रखते हैं। गांव के किसी भी घर में फाटक भी नहीं थे। सिर्फ दो बल्लियां ऐसे लगाई गई थीं कि जानवर न घुस सकें। चोरी-चकारी का सवाल ही नहीं था। रास्ते में ढेरों महुआ के पेड़ दिखे। वहां महिलाएं दुधमुंहे बच्चों को किनारे रखकर महुआ के फूल बीन रही थीं।

जहां हर जगह पक्षियों की चहचहाहट है...

कुदरत के करीब कुछ सुकून के पल बिताना, पक्षियों के कलरव के साथ कोई गीत गुनगुनाना, नदी के बहते पानी की आवाज सुनना, ये सब किसे अच्छा नहीं लगता। अगर आप भी ऐसी ही किसी जगह कुछ वक्त बिताना चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश के पक्षी विहार आपके इंतजार में हैं। यहां कई पक्षी विहार हैं जिन्हें प्रकृति ने अपनी खूबसूरती से संवारा तो। आप भी चलिए हमारे साथ इनके सफर पर। 

ये मनमौजी डॉल्फिन मोह लेगी आपका मन...

वैसे तो दुनिया के कई हिस्‍सों में डॉल्फिन पाई जाती है, इनमें नदियां और समंदर दोनों ही शामिल हैं। भारत में पाई जाने वाली मीठे पानी की डॉल्फिन को गंगा डॉल्फिन के नाम से जाना जाता है और इसे लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव भी है। वैसे तो नदियों में प्रदूषण और शिकार के कारण इनकी संख्‍या काफी कम है, इसी बात को ध्‍यान में रखते हुए केंद्र सरकार इसके संरक्षण के लिए प्रयास कर रही है। बिहार, उत्‍तर प्रदेश और असम की गंगा, चम्बल, घाघरा, गण्डक, सोन, कोसी, ब्रह्मपुत्र में पाई जाने वाली गंगा डॉल्फिन को सुसु भी कहा जाता है। कई जगहों पर स्‍थानीय लोग इसे सोंस और गंगा की गाय के नाम से भी पुकारते हैं। 

वाइल्ड लाइफ के रोमांच को महसूस करना चाहते हैं तो आइए इटावा सफारी

इटावा लॉयन सफारी आने वाले टूरिस्ट बब्बर शेर के अलावा लेपर्ड, हिरण, भालू, सांभर आदि जानवरों को देख सकते हैं। इस सफारी पार्क में 4 तरह की सफारी के इंतजाम किए गए हैं, जिसमें 50 हेक्टेयर में बनी लॉयन सफारी, 21 हेक्टेयर में बनी लेपर्ड सफारी, 31 हेक्टेयर में बनी डियर सफारी और 20 हेक्टेयर में बनी बियर सफारी का लुत्फ उठा सकते हैं। इसके अलावा यहां फेसिलिटेशन सेंटर भी है। यहां टूरिस्ट को घुमाने के लिए जीप का भी इंतजाम है। इटावा का लॉयन सफारी पार्क कई मायनों में बेहद खास है। 350 हेक्टेयर में फैले इस लॉयन सफारी पार्क का हाल ही में उद्घाटन हुआ है। अब इसे इटावा लॉयन सफारी की जगह इटावा सफारी पार्क का नाम दिया गया है। इटावा में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस पार्क की स्थापना की गई थी। यह एशिया का सबसे बड़ा सफारी पार्क भी है।

वाइल्ड लाइफ के शौकीनों के लिए महाराष्ट्र है बेस्ट

घूमने के शौकीनों की भी अलग-अलग पसंद होती है किसी को पहाड़ पसंद हैं तो किसी को समंदर, किसी को ऐतिहासिक धरोहरें अपनी ओर खींचती हैं तो किसी को जंगल और वाइल्ड लाइफ। महाराष्ट्र इस मामले में बाकी राज्यों से ज्यादा धनी है क्योंकि यहां कई सारे टाइगर रिजर्व हैं, पार्क हैं, जंगल हैं, जो वाइल्ड लाइफ के शौकीनों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं हैं। टाइगर, चिंकारा, भालू, नीलगाय, सांभर, चीतल समेत कई सुंदर पक्षी आपको यहां विचरते दिख जाएंगे। खूबसूरत झीलों के किनारे बड़े-बड़े पेड़ों के झुरमुट पर रंग-बिरंगे पक्षियों का कलरव सुनते हुए कब ठंडी हवा के थपेड़े आपको छूकर निकल जाएंगे, आपको पता नहीं चलेगा बस महसूस करके अच्छा लगेगा, तो चलिए कर लेते हैं प्लानिंग इस बार महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्व्स को एक्सप्लोर करने की और एडवेंचर के साथ खूबसूरती को निहारने की।  

अगर आपको है वाइल्ड लाइफ से प्यार तो आइए श्री लंका

अगर आपको वाइल्ड लाइफ से प्यार है और श्री लंका घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं तो ये आपके लिए यहां बहुत कुछ है। श्री लंका बहुत तेजी से इको टूरिज्म के हॉट स्पॉट के की तरह डेवलेप हो  रहा है। यहां ऐसे बहुत से वाइल्ड लाइफ स्पॉट्स हैं जिनमें कई जानवरों और चिड़ियों की कई खास प्रजातियां हैं। यहां मैमल्स की 120 से ज्यादा, रेप्टाइल्स की 171, एम्फीबीयंस की 106 और चिड़ियों की 227 प्रजातियां पाई जाती हैं। यही नहीं, श्री लंका में ब्लू व्हेल और स्पर्म व्हेल भी पाई जाती हैं। जानिए यहां की बेहतरीन वाइल्ड लाइफ के बारे में: 

पेरियार नेशनल पार्क : कुदरती खूबसूरती का खजाना

दक्षिणी भारत के केरल राज्य में एक खूबसूरत सा पार्क है, पेरियार वाइल्ड लाइफ सेंचुरी। केरल को ऐसे ही 'God's own country' यानि भगवान का अपना देश नहीं कहते। आप एक बार यहां आएंगे तो आपको लगा कि वाकई इसके हर हिस्से को भगवान ने खुद इत्मिनान से खूबसूरती बख्शी है। पेरियार वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी एक ऐसी ही जगह है। केरल के इडुक्की जिले से कुछ दूर थेक्कडी में बसी ये सेंचुरी हर दिन हजारों टूरिस्ट्स को अपने पास बुलाती है। लगभग 485 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला ये पार्क प्राकृतिक खूबसूरती का खजाना है। इसमें जंगल है, झील है, छोटे-छोटे पहाड़ हैं, तमाम तरह के पेड़, पौधे, जानवर, पक्षी और रेप्टाइल्स हैं। कुदरत की बेइंतहा खूबसूरती को समेटे है ये अपने अंदर। हमारा पेरियार का का ये सफर तमिलनाडु के मदुरै से शुरू हुआ। हमने वहां से टैक्सी बुक की और निकल पड़े इस खूबसूरत जगह की सैर पर। मदुरै से थेनी तक तमिलनाडु राज्य है और थेनी के आगे से केरल की सीमा शुरू हो जाती है, और रास्ता भी थेनी तक ही समतल है। हालांकि यहां भी आपको दूर-दूर कहीं पहाड़ों से ऊंचे टीले दिख जाएंगे। इन ऊंचे टीलें पर कई जगह आपको कोई घर जैसा भी कुछ बना दिखेगा और आप कुछ समय तक तो यही सोचते रहेंगे कि बिना रास्ते वाले इस पहाड़ पर जाकर किसी ने कोई इमारत क्यों बनवाई होगी और वह वहां जाता-आता कैसे होगा। इन्हीं सारे ख्यालों के साथ हमारा सफर आगे बढ़ता जा रहा था। सड़क के एक तरफ कहीं केले दूर-दूर तक फैले थे तो दूसरी तरफ नारियल के पेड़ों की लंबे कतारीं। लगभग 2 घंटे का सफर तय करके हम थेनी पहुंचे।

अतीत का हाथ थामे वर्तमान संग दौड़ लगाता अपोस्टल आइलैंड

झील किनारे गीली रेत पर दौड़ने का अहसास कैसा होता है? हवाओं की चट्टनों पर की गई कारीगरी कैसी दिखती है? अतीत को समेटे हुए वर्तमान के साथ चलने का हुनर कैसे आता है? या फिर हवाओं के साथ बह जाने की खुशी मन की किन गहराइयों को छूती है? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब अगर खोजने को आप बेताब हैं, तो अपोस्टल आइलैंड दोनों बाहें खोलकर आपका स्वागत करने के लिए तैयार है। जरूरत है तो बस बेतहाशा भाग रही जिंदगी से कुछ ऐसे पल चुराने की जो सिर्फ आपके लिए खुशियां बुनें और जीवन को ताजगी से भर दें। अमेरिका के विसकॉन्सिन प्रांत के उत्तरी भाग और लेक सुपीरियर के दक्षिण पश्चिम में बसा अपोस्टल आइलैंड नैशनल लेकशोर एक ऐसी जगह है, जहां बेतरतीब बिखरी हरियाली की चादर मन को खुश कर देती है। यहां हवाओं के झोंके बलुआ पत्थरों पर खूबसूरत आकृतियां बनाते हैं, पानी, जमीन से मिलता है और एक संस्कृति दूसरी संस्कृति से आपको मिलाती है।

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