पेरियार नेशनल पार्क : कुदरती खूबसूरती का खजाना
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
थेनी से केरल जाने के लिए तमिलनाडु वाली गाड़ियों को स्टेट परमिट लेना पड़ता है। यहां से परमिट लेकर हम आगे बढ़े मुंथल की ओर। मुंथल यहां से 22 किलोमीटर है और हल्का सा पहाड़ी रास्ता भी। मुंथल के बाद से ये पहाड़ी रास्ता बढ़ जाता है। पहले से ज्यादा घुमावदार हो जाता है। यहां हर 10 - 15 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक छोटा सा कस्बा मिलेगा, लेकिन यहां के कस्बों की बाजार उत्तर भारत के शहरों से बेहतर होती है और कस्बा खत्म होते ही वही खूबसूरत से पहाड़ी रास्ते। जहां एक तरफ-छोटी-छोटी खाई होंगी जिनमें सीढ़ी नुमा खेतों में फसल लगी होगी और दूसरी तरफ कहीं नारियल, कहीं केले तो कहीं पपीते के पेड़। हां, यहां आपको पहाड़ों के किनारे कहीं-कहीं कटहल के पेड़ भी लगे हुए दिख जाएंगे। उत्तर भारतीयों के लिए एक और चीज यहां खास है। वह है हर एक किलोमीटर की दूरी पर एक चर्च होना। और चर्च भी कोई मामूली सा नहीं, एकदम शानदार। इतना खूबसूरत कि आपका मन करेगा, यहां रुककर एक फोटो तो खिंचा ही लें। कही-कहीं केरल की पारंपरिक शैली में बने घर भी। यहां का लगभग हर घर मुझे मेरे ड्रीम हाउस जैसा लग रहा था। बड़े से एरिया के बीच में बना एक घर, जिसमें झोपड़ी वाली छत होती है और ज्यादातर काम लकड़ी का होता। बाहर लकड़ी का ही एक खूबसूरत सा झूला रखा होता है और हर तरफ हरियाली होता है। घरों में नारियल, केले, आम, जायफल आदि के पेड़ लगे होते हैं। सड़कें तो मानो इतनी साफ जैसे वहां इंसानों की बहुत कमी हो। हर तरफ सफाई। गांव और शहरों के घर में, सफाई और सड़कों में कोई फर्क ही नहीं। आपको बस भीड़-भाड़ और दुकानों से पता चलेगा कि कौन सा गांव है और कौन सा शहर।
ऐसे ही घुमावदार, खूबसूरत, संकरे रास्तों से होते हुए हम कुमिलि पहुंच गए। पेरियार नेशनल पार्क कुमिलि में ही है। यहां छोटा सा एक बाजार है, जिसमें केले के चिप्स और मसालों की तमाम दुकाने हैं। हमने अपनी गाड़ी यहीं की पार्किंग में लगवा दी और पेरियार नेशनल पार्क के अंदर जाने के लिए हमने यहां चलने वाली बस की सेवा ली। कुमिलि से हर आधे घंटे में एक बस पेरियार नेशनल पार्क जाती है। बस स्टॉप से पार्क की दूरी महज 1 किलोमीटर होगी। ये बस यहां के वन विभाग की हैं। पार्क के अंदर किसी भी आम गाड़ी को जाने का परमिट नहीं मिलता। या तो आप इन बस से जाइए या फिर जीप से। यहां कई जीप वाले भी खड़े दिख जाएंगे जो आपसे पार्क घुमाने और एलिफेंट बाथ दिखाने के लिए कहेंगे, अगर आपको हाथियों को नहाते हुए देखना है और उनके साथ खुद भी नहाना है तो आप इस जीप को बुक कर सकते हैं, लेकिन अगर आपको सिर्फ पेरियार नेशनल पार्क की सैर करनी है तो आप बस से ही जा सकते हैं। एक व्यक्ति का बस का किराया सिर्फ 50 रुपये है।
हम बस से पार्क के अंदर दाखिल होने के लिए निकल चुके थे। इस रास्ते में एक तरफ दुकाने थीं और दूसरी ओर कुछ दूरी तक बांस का जंगल। इसके आगे बेहद की खूबसूरत रेस्त्रां और होटल्स, जिन्हें देखकर आपका मन करेगा कि एक दिन तो यहां रुक ही जाना चाहिए। इसके बाद पेरियान नेशनल पार्क का गेट आ जाता है और हम अंदर दाखिल हो जाते हैं। पतली सड़क और दोनों और जंगल। कहीं-कहीं छोटे-छोटे कॉटेज बने हुए और शुरुआत में स्टाफ के क्वॉटर्स भी। कुछ ही देर में हमारी बस अपने ठिकाने पर पहुंच चुकी थी। बस वाले ने हमें एक कॉटेज के बाहर उतार दिया। हम वहां उतरे तो सामने जो नजारा था, उसमें कुछ ऐसा था, जिसमें आ खो जांएगे। मीलों तक फैली तक झील और बीच-बीच में पेड़ों से भरे छोटे-छोटे टीले। इस झील में 3-4 डबल डेकर बोट पड़ी थीं। जो हर लगभग 2 से ढाई घंटे में पर्यटकों को लेकर झील की सैर कराती थीं। हमारी बोट का नंबर हमारे वहां पहुंचने के लगभग 2 घंटे बाद आने वाला था। हमने उसका टिकट लिया। बोटिंग का टिकट एक व्यक्ति का 240 रुपये का। इसके बाद हम पार्क की खूबसूरती को देखने और फोटो लेने के लिए चल पड़े।
357 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैला यह पार्क एलिफेंट और टाइगर रिजर्व भी है। यहां जानवरों की 62 विभिन्न प्रजातियां भी हैं। पेरियार बाघों और हाथियों के संरक्षण के लिए कई उपाय कर रहा है। यहां हाथियों की सैंकड़ों प्रजातियां हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ पूरे साल रहती है। इसके अलावा 320 किस्म की चिड़िया, 45 तरह के रेपटाइल्स, अलग-अलग तरह की मछलियां, मेंढक और कीड़े-मकौड़े भी देखे जा सकते हैं। पेरियार नेशनल पार्क को 1950 में वन्यजीव अभयारण्य के बनाया गया था। 1992 में यह हाथियों का भी आरक्षित क्षेत्र बन गया। नए रिकॉर्ड के मुताबिक, टाइगर रिजर्व में 53 बाघ संरक्षित हैं। गौर, सांभर (घोड़ा हिरण), नेवला, लोमड़ियों, माउस डीयर, ढ़ोल्स (भारतीय जंगली कुत्तों) और तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं। पार्क के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर्स पहाड़ों से ढके हैं। इस पश्चिमी बॉर्डर पठारी है। यहां से नीचे की तरफ पंबा वैली है। पार्क की सबसे ऊंची चोटी कोट्टामलाई है, जिसकी ऊंचाई 2,091 मीटर है।
ये सारी जानकारी लेने तक हमारा बोटिंग का नंबर आ चुका था और हम उस डबल डेकर बोट पर सवार हो गए जो हमें पूरी झील घुमाने वाली थी। झील में घूमने का ये सफर अद्भुत था। बीच-बीच में पक्षियों के बैठने के लिए पेड़ों के सूखे तने लगाए गए थे, जिनमें कई पक्षी अपने पूरे परिवार के साथ बैठे थे, इन पर घोसले भी रखे थे। किनारे जंगल था, जिनमें कई जानवरों को घूमते हुए देखा जा सकता था। कहीं-कहीं पर छोटे-छोटे टीले थे जिनमें घने पेड़ लगे थे। पानी में पनडुब्बी चिड़ियां तैराकी करती दिख रही थीं। जिधर भी नजर घुमाओ कुदरत की खूबसूरती उधर ही हमें खींचती सी लग रही थी। लगभग आधे घंटे की बोटिंग में हमने इसकी पूरी सुंदरता को अपने अंदर समेटने की कोशिश कर ली।
और भी बहुत कुछ है देखने को
इस झील और तमाम तरह के पेड़ों के अलावा यहां और भी बहुत कुछ देखने के लिए है।
मंगला देवी मंदिर
पार्क में बहुत पुराना मंगला देवी मंदिर बना है। आप बाहर से इसके सामने फोटो खिंचा सकते हैं, लेकिन इसके अंदर जाने की अनुमति साल में सिर्फ एक बार विशेष त्योहार के दौरान मिलती है।
पुल्लुमेडु
तीर्थयात्रियों के लिए यह महत्वपूर्ण जगह है। घास के इस मैदान में सबरीमाला के अयप्पा स्वामी का मंदिर है। जनवरी में पुल्लुमुडु में आसमान में चमकती रोशनी को देखने बहुत से लोग आते हैं। ऐसा कहते हैं कि इस तरह उनके देवता उन्हें आध्यात्मिक रूप में दर्शन देते हैं।
कार्डमम हिल्स
यह पार्क की एक बेहद खूबसूरत जगह है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहां इलायची की खेती होती है। यहां आप जीप के जरिए गाइड के साथ जा सकते हैं। ज्यादातर यात्री पार्क के बाहर से ही जीप बुक करके यहां जाते हैं।
पहाड़ी क्षेत्र
यहां के उत्तरी और पूर्वी बॉर्डर पर जो पहाड़ हैं, वहां कई लोग ट्रेकिंग करते हैं, लेकिन ट्रेकिंग के लिए पहले से परमिशन लेनी पड़ती है। यहां बिना गाइड के जाना भी अलाउड नहीं है।
कब जाएं
पेरियार नेशनल पार्क आप कभी भी जा सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर समय है अक्टूबर से फरवरी तक। मानसून के दौरान वहां की हरियाली और भी आकर्षक लगती है। मार्च-अप्रैल में हाथियों को झील में नहाते देखा जा सकता है। वीकेंड में यहां न ही जाएं तो बेहतर है क्योंकि भीड़-भाड़ में वन्य जीवों को आप नहीं देख सकते।
बोट क्रूज का समय
7:25 AM, 9:15 AM, 11:15 AM, 1:30 PM, 4:00 PM
जीप सफारी
रात में - रात 11 बजे से सुबह 3 बजे तक
दिन में - सुबह से 3 बजे तक ही एंट्री होती है
हाथी की सफारी
सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक आप हाथी की सफारी कर सकते हैं। हां, इसके लिए आपको बस आधा घंटे का ही समय मिलेगा।
कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग - तमिलनाडु का मदुरै यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। ये यहां से 141 किलोमीटर दूर है। अगर आप सिर्फ केरल आए हैं तो कोचि तक फ्लाइट से आ सकते हैं। पेरियार से कोचि की दूरी 200 किलोमीटर है।
रेल मार्ग - पेरियार से 114 किलोमीटर दूर कोट्टायम सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग - पेरियार से सबसे नजदकी शहर कुमिलि है। यहां तक आप कोट्टायम, एर्नाकुलम और मदुरै कहीं से भी आ सकते हैं। यहां आने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा है।
आपके पसंद की अन्य पोस्ट
मोगली और शेरखान के अड्डे की सैर
मुक्की गेट के बाहर ही मुक्की गांव है। यहीं पर शानदार बाघ रिजॉर्ट है।
ये मनमौजी डॉल्फिन मोह लेगी आपका मन...
भारत में पाई जाने वाली मीठे पानी की डॉल्फिन को गंगा डॉल्फिन के नाम से जाना जाता है और इसे लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।