ये मनमौजी डॉल्फिन मोह लेगी आपका मन...
वैसे तो दुनिया के कई हिस्सों में डॉल्फिन पाई जाती है, इनमें नदियां और समंदर दोनों ही शामिल हैं। भारत में पाई जाने वाली मीठे पानी की डॉल्फिन को गंगा डॉल्फिन के नाम से जाना जाता है और इसे लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव भी है। वैसे तो नदियों में प्रदूषण और शिकार के कारण इनकी संख्या काफी कम है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार इसके संरक्षण के लिए प्रयास कर रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश और असम की गंगा, चम्बल, घाघरा, गण्डक, सोन, कोसी, ब्रह्मपुत्र में पाई जाने वाली गंगा डॉल्फिन को सुसु भी कहा जाता है। कई जगहों पर स्थानीय लोग इसे सोंस और गंगा की गाय के नाम से भी पुकारते हैं।
देख नहीं सकती है गंगा डॉल्फिन
दुनिया भर में मीठे पानी में रहने वाली डॉल्फिन की कुल चार प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत के अलावा चीन में यांग्त्जी नदी में, पाकिस्तान की सिंधु नदी में और दक्षिण अमेरिका में अमेजन नदी में डॉल्फिन पाई जाती हैं। भारत में मिलने वाली गंगा डॉल्फिन का वैज्ञानिक नाम प्लेटेनिस्टा गेंगेटिका है। इसकी खासियत है कि यह आंखों से देख नहीं सकती है। दरअसल, इसकी आंखों में लेंस नहीं होता है जिस वजह से उनसे इसे सिर्फ रोशनी का एहसास होता है। हालांकि, शायद इसी वजह से इसके सुनने की काफी तीव्र होती है। यह अल्ट्रासोनिक तरंगों के आधार पर चलती है। इसी कारण इसे ब्लाइंड डॉल्फिन भी कहा जाता है। पानी में रहने के कारण गंगा डॉल्फिन के बारे में भ्रांति है कि यह मछली है जबकि यह स्तनधारी जलीय जीव है। यह मांसाहारी होती है और छोटी मछलियां इसका प्रिय भोजन। सलेटी-मटमैली दिखने वाली गंगा डॉल्फिन का शिकार उसके तेल के लिए किया जाता है जो दूसरी मछलियों के चारे के रूप में प्रयोग होता है। उत्तर भारत में बिहार की राजधानी पटना, भागलपुर और यूपी के बिजनौर, गढ़मुक्तेश्वर व बुलंदशहर के नरौरा और आसपास के क्षेत्र में गंगा नदी का पानी स्वच्छ होने के कारण यही इनका घर है। वहीं, असम में काजीरंगा नेशनल पार्क के पास भुमुरागुरी में ब्रह्मपुत्र में भी इन्हें देखा जा सकता है।
10 करोड़ वर्षों से है पृथ्वी पर
जंतु विशेषज्ञों के मानना है कि जिस प्रकार बाघ जंगल की सेहत का प्रतीक है उसी प्रकार डॉल्फिन गंगा की सेहत की प्रतीक है। डॉल्फिन करीब 10 करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर पाई जा रही है। इसकी औसत आयु लगभग 27 वर्ष होती है। यह इंसानों को हानि नहीं पहुंचाती हैं, बल्कि मनमौजी होने के कारण यह हमेशा से उनके करीब रही है और इंसानों से इसकी दोस्ती भी हो जाती है। यह कई तरह की आवाजें भी निकालती हैं। गंगा डॉल्फिन या गंगेटिक रिवर डॉलफिन भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम में शामिल है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने इसे लुप्तप्राय प्रजाति घोषित कर रखा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, देश में इस समय लगभग 3500 डॉल्फिन होंगी। डॉल्फिंस का आकार कई बार अलग-अलग होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऐसा उनके आवास स्थान पर निर्भर करता है।
विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन आश्रयणी
पटना के फतुहा में भी पुनपुन गंगा संगम के नजदीक और गंगा व उसकी सहायक कोसी, गंडक व घाघरा में सैकड़ों डॉल्फिन देखी सकती हैं। इसके संरक्षण के लिए बिहार के भागलपुर में स्थित विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन आश्रयणी देश का ही नहीं बल्कि एशिया एक मात्र डॉल्फिन अभयारण्य क्षेत्र है। सुल्तानगंज से कहलगांव तक 60 किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य क्षेत्र में लगभग 200 डॉल्फिन हैं। दरअसल, भागलपुर और उसके आसपास के क्षेत्र में अधिक पाई जाती हैं इसलिए यहीं इसका संरक्षण के लिए अभयारण्य बनाया गया है। वैसे यहां पर मीठे पानी के कछुओं समेत 135 प्रजाति के जीव पाए जाते हैं।
कैसे पहुंचें
वैसे तो आप सड़क या ट्रेन दोनों ही माध्यमों से सीधे भागलपुर पहुंच सकते हैं। भागलपुर सीधा नेशनल हाइवे नंबर 80 और 31 से कनेक्ट है। वहीं, भागलपुर रेलवे स्टेशन के लिए आपको दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू, कानपुर, सूरत समेत देश अन्य शहरों से सीधे ट्रेन मिल सकती है। हालांकि, भागलपुर में कोई एयरपोर्ट नहीं है। सबसे नजदीक पटना एयरपोर्ट है। यहां लोकल कनवेंस भी आपको आसानी से मिल जाता है। भागलपुर में घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच होता है।
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