कल्चर

अद्भुत है वो जगह जहां बुद्ध को ज्ञान मिला था

बिहार के खूबसूरत शहर बोधगया में भव्य महाबोधि मंदिर स्थित है। आध्यात्मिक ज्ञान के इस प्रतिष्ठित प्रतीक का अत्यधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है क्योंकि यहीं पर बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। 

मोहनजो-दारो से जुड़े हैं बस्तर की इस कला के तार

भारत के दिल में बसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र बस्तर में, एक सदियों पुरानी परंपरा निहित है जो कला प्रेमियों और इतिहासकारों को समान रूप से आकर्षित करती रहती है। उस कला का नाम है ‘ढोकरा’। ढोकरा कला, धातु ढलाई का एक अनूठा रूप है, जो पीढ़ियों से इस आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित है। यह कला प्राचीन तकनीकों के इस्तेमाल व कुशल कारीगरों की मेहनत का बेहतरीन नमूना है। 

400 साल पुराना है सांगानेरी प्रिंट का इतिहास, एक बार यहां आना तो बनता है

अगर आप जयपुर में हों, तो शहर से सिर्फ 16 किमी दूर सांगानेर जरूर जाएं। सांगानेर कपड़ा और हस्तशिल्प उद्योगों में अपनी समृद्ध विरासत के लिए सबसे प्रसिद्ध है। क्या आपने सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग के बारे में सुना है? प्रसिद्ध हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग इसी शहर से आती है, एक ऐसा कौशल जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।

यमुना के किनारे पर कुछ खजानों का सफ़र

उत्तराखंड के चंपासर ग्लेशियर से निकलकर हरियाणा, दिल्ली से होती हुई 1367 किलोमीटर का सफर तय करते हुए यमुना नदी प्रयागराज के संगम में गंगा नदी में समाहित हो जाती है। गंगा की सहायक नदियों में सबसे लम्बी यमुना ही है। लाखों लोगों को जीवन देने वाली इस नदी का नाम अक्सर लोगों की जुबान पर चढ़ा रहता है। कभी इसमें बढ़ते प्रदूषण की चर्चा होती है तो कभी ये खुद को पर्यावरणीय चुनौतियों और शहरीकरण की बुराइयों से जुडी चर्चाओं में उलझा हुआ पाती है। फ़िलहाल यमुना में पानी का स्तर काफी ज़्यादा बढ़ने से दिल्ली और कई पड़ोसी शहरों और गांवों में तबाही मची हुई है।हालांकि, हम आपको इन बोझिल ख़बरों में नहीं उलझाएंगे और आपको इसके किनारों की सैर कराएंगे। यमुना नदी के किनारे पर ऐसी कई जगहें बसी और बनी हैं जो पूरी दुनिया में मशहूर हैं। हो सकता है कि आप इनके बारे में जानते हों लेकिन फिर भी एक बार हमारे साथ चलिए यमुना के किनारे-किनारे एक खूबसूरत से सफर पर…

सावन के महीने में करें भगवान शिव के इन मंदिरों में दर्शन

भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। वे अपने भक्तों को सुखी और आनंदमय वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देने के लिए जाने जाते हैं। भगवान शिव के भक्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उनकी उपासना करते हैं। हिंदुओं की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव सर्वोच्च शक्ति हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पौराणिक कथाओं में उन्हें कहीं भोले नाथ बताया गया है तो कहीं अपनी भक्तों की रक्षा के लिए उनके उग्र रूप को दर्शाया गया है। भारत के विभिन्न राज्यों में भगवान शिव की अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है। यही कारण है; भारत में भगवान शिव के कई मंदिर हैं। सावन के महीने को भगवान शिव का महीना माना जाता है और शिवलिंगम की पूजा की जाती है। इस विशेष महीने में लोग महादेव का अभिषेक करते हैं, उनके लिए व्रत रखते हैं। इस महीने में भगवान शंकर के दर्शन करने लिए भारत में कई शिव मंदिर हैं। इनमें से कुछ खास मंदिरों के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं। 

जागेश्वर मंदिर : जहां बसता है विश्वास और इतिहास

देवभूमि उत्तराखंड अपने प्राकृतिक वैभव और आध्यात्मिक आभा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस खूबसूरत से राज्य में सिर्फ हरियाली और पहाड़ ही नहीं कई अविश्वसनीय मंदिर भी हैं जो दुनिया भर से यात्रियों और भक्तों को आकर्षित करते हैं। उत्तराखंड कई प्राचीन मंदिरों का घर है जो किंवदंतियों और लोककथाओं को दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है जागेश्वर मंदिर। कुमाऊं की सुंदर पहाड़ियों में स्थित, परमात्मा का यह पौराणिक निवास अपनी मनोरम वास्तुकला और किंवदंतियों से भक्तों को आकर्षित करता है। इन किंवदंतियों ने भक्तों और इतिहास प्रेमियों सभी के दिलों में अपनी जगह बना ली है।आज हम बात कर रहे हैं जागेश्वर मंदिर की। यह मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में है और भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर परिसर में 100 से अधिक प्राचीन पत्थर के मंदिरों का एक समूह है जो 9वीं और 13वीं शताब्दी के बीच के हैं। कुछ तो इससे भी अधिक उम्र के हैं! आप मंदिर परिसर में नक्काशी देखकर हैरान हो जाएंगे, जिससे बीते दौर की अद्भुत शिल्पकला का पता चलता है।

देवी के मासिक धर्म से जुड़े अम्बुबाची मेले की अद्भुत है कहानी

22-26 जून को गुवाहाटी, असम में देवी कामाख्या मंदिर भक्तों और पर्यटकों से गुलजार रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बीच यहां वार्षिक अंबुबाची मेला होने वाला है। यह मेला हर साल होने वाला एक धार्मिक आयोजन है जो कामाख्या मंदिर में होता है। यह मेला आस्था, उर्वरता और दिव्य स्त्रीत्व का उत्सव है। जिन लोगों को कामाख्या मंदिर के रहस्यों में दिलचस्पी है, कामाख्या मंदिर के तांत्रिक प्रथाओं के साथ संबंध के बारे में जानना चाहते हैं, यह मेला उनके लिए एक बेहतरीन अवसर है। 

जगमगाते जुगनुओं का त्योहार देखा है आपने?

बचपन में जुगनुओं के पीछे भागकर उन्हें जलते-बुझते देखने में शायद आप सबको मज़ा आता होगाज़ लेकिन तब हमें कभी दो-चार जुगनू ही देखने को मिलते थे। सोचो कि एक पूरा गांव सिर्फ जुगनुओं की रोशनी से ही रोशन हो जाए तो क्या नज़ारा होगा। अगर आप भी इस खूबसूरत सी कल्पना का हकीकत में हिस्सा बनना चाहते हैं तो महाराष्ट्र के पुरुषवाड़ी में होने वाले फायरफ्लाइज फेस्टिवल में शामिल होने की तैयारी कर लीजिए। यहां आपको चमकदार फायरफ्लाइज के बीच कुदरत के सुंदर और जीवंत रंगों का जश्न मनाने का मौका मिलेगा। यहां मानसून से पहले लाखों जुगनू खुले में निकलते हैं और देखने वालों के लिए एक जन्नत सा माहौल बनाते हैं। 

लद्दाख में होने जा रहा है एप्रीकॉट ब्लॉसम फेस्टिवल, अभी से कर लें तैयारी

वसंत का मौसम ऐसा होता है जो हर किसी को भाता है। इस समय न तो ज़्यादा सर्दी होती है और न ही ज़्यादा गर्मी। मौसम से लेकर पेड़-पौधों तक हर जगह बस बाहर ही बहार दिखती है। यहां आपको बता रहे हैं कि इस साल वसंत का जश्न मनाने का एक शानदार तरीका है। 4 से 17 अप्रैल तक लद्दाख में एप्रीकॉट ब्लॉसम फेस्टिवल होने जा रहा है जो आपकी आंखों के साथ मन के लिए भी किसी ट्रीट से कम नहीं होगा।इस वसंत के मौसम में, लद्दाख के कई क्षेत्रों को आप एप्रीकॉट के फूलों से गुलज़ार होते देख सकेंगे। यहां आपको कई जगह सुंदर से गुलाबी रंग के एप्रीकॉट के फूल दिखेंगे। आमतौर पर ये फूल ज़्यादा दिनों तक नहीं रहते, इसलिए अगर आप इन्हें देखना चाहते हैं तो इस फेस्टिवल में शामिल होने की तैयारी कर लीजिए। फूलों से लदे एप्रीकॉट के पेड़ों के साथ आपकी तस्वीरें और रील्स इंस्टाग्राम पर आपके फॉलोवर्स ज़रूर बढा देंगी।

'होला मोहल्ला' के लिए पूरी तरह तैयार है पंजाब

आनंदपुर साहिब होला मोहल्ला (8-10 मार्च) के तीन दिन के उत्सव की मेजबानी करने के लिए पूरी तरह तैयार है। होला मोहल्ला सिखों का एक त्योहार है जो हर साल मार्च के महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार आमतौर पर हिंदू त्योहार होली के एक दिन बाद मनाया जाता है। इस त्योहार की शुरुआत दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने की थी।होला मोहल्ला सिखों के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। इसे दुनिया भर के सिख समुदाय बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं। होला मोहल्ला नगर कीर्तन से शुरू होता है, जो पंज प्यारे (पांच प्यारे) के नेतृत्व में एक जुलूस है और इसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक प्रदर्शन शामिल होते हैं। जुलूस में पारंपरिक सिख मार्शल आर्ट फॉर्म गतका का प्रदर्शन भी शामिल है।आश्चर्यजनक मार्शल आर्ट प्रदर्शन, नकली लड़ाई और जी तरह के कार्यक्रम इस त्योहार के दौरान होते हैं। सिखों का मानना है कि होला मोहल्ला का मुख्य फोकस सेवा, बहादुरी और निस्वार्थता के सिख मूल्यों को बढ़ावा देना है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा, यहां छुपा है दुनिया के खत्म होने का राज़

दुनिया भर में ऐसी कई गुफाएं हैं, जो समय के साथ लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में बदल गई हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसी गुफाएं भी हैं जो इतनी रहस्यमयी हैं कि वे एक पहेली बनकर रह गई हैं। हम आपको भारत की एक ऐसी गुफा में ले चलते हैं, जो आपकी अंदर की जिज्ञासा को बढ़ा देगी। यह उत्तराखंड में स्थित है और इसे पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर के रूप में जाना जाता है। अगर आपने पुराणों को पढ़ा है तो उसमें इसका उल्लेख ज़रूर मिला होगा। माना जाता है कि इस गुफा के गर्भ में दुनिया के अंत का राज छुपा है।

इस महाशिवरात्रि आप इन मंदिरों में कर सकते हैं महादेव के दर्शन

महा शिवरात्रि आने वाली है। इस दिन का इंतज़ार भोले के भक्त पूरे साल करते हैं। अगर आप भी उनमें से हैं जो इस दिन किसी बड़े मंदिर में जाकर अपने आराध्य की पूजा करना चाहते हैं तो यहां हम आपके लिए उन मंदिरों की सूची लेकर आए हैं जहां आप शिवरात्रि के इस अवसर पर जाने की योजना बना सकते हैं।

रहस्यमयी हैं भारत के ये मंदिर, अपनी मान्यताओं के लिए हैं मशहूर

भारत के हर हिस्से में अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले लोग रहते हैं। इसीलिए इन लोगों के पूजा करने का ढंग भी अलग-अलग है और ये अपने भगवान को भी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। यहां कई धार्मिक शहर और पूज्य भगवानों के मंदिर हैं लेकिन उनमें से कुछ मंदिर ऐसे हैं जो बाकी से अलग हैं और अपनी किसी खास बात के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत के इन मंदिरों में से कुछ अपने अपरंपरागत देवताओं के कारण प्रसिद्ध हैं, कुछ अपने भूत-प्रेत संस्कार के कारण, और कुछ इसलिए कि वे 2000 वर्ष से अधिक पुराने हैं। 

इस बार गोवा में होने जा रहा है एक अनोखा फेस्टिवल

अपने हिप्पी कल्चर और बेमिसाल खूबसूरती के लिए गोवा पूरी दुनिया में जाना जाता है। सिर्फ भारत ही नहीं कई देशों के लोग सर्दियां शुरू होने का इंतज़ार करते हैं ताकि गोवा में होने वाले स्पेशल फेस्टिवल्स में हिस्सा ले सकें और इंडिया के बीच कल्चर को एन्जॉय कर सकें। वैसे तो गोवा में सनबर्न फेस्टिवल, मांडो फेस्टिवल, सुपरसोनिक फेस्टिवल, सैंट फ्रांसिस जेवीयर फीस्ट, गोआ सनस्प्लैश, टैटू फेस्टिवल जैसे कई फेस्ट सर्दियों में होते हैं लेकिन इस जनवरी गोवा में एक अनोखा फेस्टिवल होने जा रहा है। 

श्री राम के इस मंदिर पर हुआ था फिदायीन हमला

जम्मू में भगवान राम का एक बेहद मशहूर मंदिर है, रघुनाथ मंदिर।  रघुनाथ मंदिर में सात मंदिर हैं। इनमें हर मंदिर का अपना `शिखर` है। यह भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है। महाराजा गुलाब सिंह और उनके बेटे महाराज रणबीर सिंह ने 1853-1860 के दौरान इस मंदिर को बनवाया था। वैसे तो इस मंदिर में कई भगवानों की मूर्तियां हैं लेकिन मुख्य रूप से मंदिर भगवान श्री राम को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि महाराजा गुलाब सिंह को इस मंदिर को बनाने का विचार श्री राम दास बैरागी से मिला था। श्री राम दास बैरागी भगवान राम के पक्के भक्त थे और भगवान की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए अयोध्या से जम्मू आए थे। वह सुई सिंबली में एक छोटी सी झोपड़ी में रहते थे, जहां उन्होंने पहले राम मंदिर का निर्माण करवाया था। रणबीर सिंह के शासनकाल के दौरान, बड़ी संख्या में ब्राह्मण छात्रों को शिक्षित करने के लिए मंदिर को संस्कृत शिक्षा के केंद्र के रूप में भी इस्तेमाल किया जाने लगा। 

इस बार कुछ खास होगा हार्नबिल फेस्टिवल, घूम सकते हैं नागालैंड की ये जगहें

नागालैंड के हॉर्नबिल फेस्टिवल के बारे में अपने ज़रूर सुना होगा। अगर आप इस बार इन फेस्टिवल को एन्जॉय करना चाहते हैं तो अभी से तैयारी कर लीजिए। 1 से 10 दिसंबर तक इस बार हॉर्नबिल फेस्टिवल किसामा के हेरिटेज विलेज में आयोजित किया जाएगा। पिछले दो साल से कोविड के चलते इस फेस्टिवल में रौनक कुछ कम थी लेकिन बार इसे काफी भव्य तरीके से मनाए जाने की तैयारियां हैं। नागालैंड के पर्यटन, कला व संस्कृति सलाहकार एच खेहोवी येप्थोमी ने बताया है कि यह उत्सव 1 से 10 दिसंबर तक किसामा के नागा विरासत गांव में आयोजित किया जाएगा, जो नागालैंड की राजधानी कोहिमा से लगभग 12 किमी दूर स्थित है।

दिवाली पर घूमने का बना रहे हैं प्लान? ये 5 जगहें हैं बेस्ट

भारत में कई संस्कृतियों का खजाना है। यहां सबसे ज़्यादा धर्मों को मानने वाले लोग हैं, इसीलिए यहां त्योहार भी सबसे ज़्यादा मनाए जाते हैं। और दिवाली तो दुनिया भर के सबसे खास त्योहारों में से एक है। रोशनी के इस त्योहार पर हमारे दिलों के साथ पूरा देश भी रोशन होता है। यूँ तो लोग अपने घर पर ही दीपावली मनाना पसंद करते हैं लेकिन आजकल ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो इस लंबी छुट्टी का मज़ा लेने के लिए किसी अच्छी घूमने वाली जगह की तलाश में रहते हैं। अगर आप दिवाली सेलिब्रेट भी करना चाहते हैं और घुमने की भी प्लानिंग कर रहे हैं तो हम आपको बता रहे हैं देश की 5 ऐसी जगहों के बारे में जहां ये त्योहार भव्य रूप से मनाया जाता है। 

अक्टूबर में करें देश के इन प्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन

भारत में यूं तो हर गली, हर गली हर मोहल्ले में मंदिर होते हैं लेकिन फिर भी यहां धार्मिक पर्यटन सबसे ज़्यादा लोग करते हैं। हमारे देश मंदिरों का घर है। एक से एक बड़े और भव्य मंदिर हैं यहां। लोगों की आस्था और उम्मीद का ठिकाना हैं ये मंदिर। बात जब कुछ मांगने और उस दुआ के पूरे होने पर विश्वास करने की अयाति है तो हम देश के एक कोने से दूसरे कोने तक का सफर करने से भी नहीं घबराते। घूमने के लिए सबसे बेहतरीन महीनों में से एक अक्टूबर आने वाला है। तो हम आपको बता रहे हैं देश के कुछ ऐसे प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जहां आप अक्टूबर में दर्शन करने जा सकते हैं।  

क्यों है बंगाल की दुर्गा पूजा पूरे देश से अलग और खास?

बंगाल में किसी भी साल को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक - दुर्गा पूजा के पहले का हिस्सा और दूसरा - दुर्गा पूजा के बाद का। जैसे ही साल की पूजा समाप्त होती है, लोग अगले साल की पूजा का इंतज़ार करने लगते हैं। यहां के लोगों के लिए दुर्गा पूजा सिर्फ धार्मिक ही नहीं एक सामाजिक त्योहार भी है। देवी दुर्गा, जिन्हें प्यार से माँ कहा जाता है, एक निश्चित अवधि के लिए घर आती हैं। हर कोई उन्हें देखना चाहता है, उनकी पूजा करना चाहता है और उनके घर आने का जश्न मनाना चाहता है। दुर्गा पूजा के त्योहार की शुरुआत महालय के दिन, देवी के आह्वान के साथ होती है। कुछ ऐसी बातें हैं जो बंगाल की दुर्गा पूजा को बाकी पूरे देश से अलग और खास बनाती हैं। 

अक्टूबर में आने वाले हैं कई त्योहार, अभी से कर लीजिए घूमने की तैयारी

अक्टूबर का महीना ज़िन्दगी का जश्न मनाने के लिए कई वजहें लेकर आता है। एक तो इस महीने से हवाओं में थोड़ी ठंडक घुल जाती है, यानी घूमने के लिए मौसम मुफीद होने लगता है। दूसरा, इस महीने भर-भर कर त्योहार होते हैं। और त्योहारों का मतलब है खाना-पीना, नाचना-गाना, मतलब ढेर सारी मस्ती। इस महीने छुट्टियां भी खूब हैं तो क्यों न इन सब कॉम्बिनेशन्स को मिलाकर एक ट्रिप प्लान कर लिया जाए। ऐसा ट्रिप जहां आप मौसम और त्योहार दोनों का मज़ा एक साथ ले पाएं। इस बार अक्टूबर में कौन-कौन से त्योहार हैं और उन्हें सेलिब्रेट करने आप कहाँ जा सकते हैं, हम बताते हैं आपको। नवरात्रिभारत में सबसे पसंदीदा त्योहारों में से एक है दुर्गा पूजा। यह हर साल बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस दौरान भव्य पंडालों में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय की आदमकद प्रतिमाएं रखी जाती हैं। दुर्गा पूजा की तैयारी बहुत पहले शुरू हो जाती है जहां विशेषज्ञ कारीगरों द्वारा देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई जाती हैं। पूजा के बाद 10वें दिन देवी को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। इस बार नवरात्रि 26 सितम्बर से शुरू होकर 4 अक्टूबर तक हैं। आप इस त्योहार पर घूमने का प्लान कर सकते हैं।कहां जाएं कोलकाता एक ऐसी जगह है जहां आप इस त्योहार को सबसे भव्य तरीके से देखने के लिए जा सकते हैं। यहां की तरह भव्य पंडाल आपको पूरे देश में और कहीं नहीं मिलेंगे। हालांकि, नवरात्रि में डांडिया और गरबे का लुत्फ लेना है तो गुजरात या राजस्थान का रुख करना होगा।दशहरा (5 अक्टूबर)यह त्योहार लंका के राक्षस राजा रावण पर भगवान राम की जीत के जश्न के तौर पर मनाया जाता है। पूरा देश इस दिन को अपने तरीके से मनाता है। कहीं रामलीला का मेला लगता है तो कहीं रावण के बड़े-बड़े पुतले। कुल मिलाकर नज़ारा देखने लायक होता है।कहां जाएं दक्षिण भारत में मैसूर का दशहरा देखने लायक होता है। मैसूर दशहरा में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। हिमाचल में कुल्लू दशहरा भी शामिल होने के लिए एक अच्छी जगह है। 

टुकड़े होकर फिर जुड़ जाता है इस मंदिर का शिवलिंग, अद्भुत है कहानी

हिमाचल प्रदेश कुदरती खूबसूरती, समृद्ध संस्कृति, सुंदर घरों से लेकर प्राचीन परंपराओं तक कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है। जो पर्यटक एक बार यहां एक बार उसका मन यहीं रह जाता है। हिमाचल की सुंदरता और यहां आने वाली भीड़ के किस्से आपने खूब सुने होंगे लेकिन आज हम आपको कुल्लू जिले के एक अनोखे और रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसकी धार्मिक मान्यता बहुत ज़्यादा है। यह मंदिर बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर कुल्लू घाटी के सुंदर गांव काशवरी में है। 2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बना यह मंदिर शिव जी को समर्पित है। इसे भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में भी गिना जाता है। तो चलिए हम बताते हैं आपको कि क्या बात इस मंदिर को इतना अनोखा और खास बनाती है?

कसार देवी, माचू पिच्चू और स्टोनहेंज में है कुछ एक जैसा

क्या आपको लगता है कि कि पेरू के माचू पिच्चू और यूके के स्टोनहेंज जैसी जगहों का संबंध भारत के कुमाऊं क्षेत्र के एक छोटे से गांव से हो सकता है? अगर आपको लगता है कि ऐसा कैसे हो सकता है तो फटाफट इस स्टोरी को पढ़ डालिए और जान लीजिए कि आखिर इन तीनों में क्या सम्बंध है। हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के कसार देवी की। टूरिस्ट्स के बीच भले ही यह जगह पॉपुलर न रही हो लेकिन लंबे समय से कलाकारों, मनीषियों, दार्शनिकों और आध्यात्मिक साधकों को लुभाती रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि स्वामी विवेकानंद, बॉब डायलन, रवींद्रनाथ टैगोर, हार्वर्ड मनोवैज्ञानिक टिमोथी लेरी, डीएच लॉरेंस जैसी प्रसिद्ध हस्तियां किसी न किसी वजह से यहां आ चुकी हैं। इतिहास की मानें तो 1890 में, स्वामी विवेकानंद ने यहीं एक गुफा में ध्यान लगाया था।तो चलिए मुद्दे पर आते हैं। जो बात इस जगह को खास बनाती है वह है पृथ्वी की वैन एलन बेल्ट पर इसका स्थित होना। ऐसा माना जाता है कि कसार देवी मंदिर के आसपास धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। यही कारण है कि माना जाता है कि कसार देवी में ब्रह्मांडीय ऊर्जा है जो पेरू के माचू पिच्चू और यूके के स्टोनहेंज के समान है।पिछले कुछ साल से नासा के वैज्ञानिक इस बेल्ट के बनने की वजह पता लगाने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इन चुम्बकीय पिंडो की उपस्थिति के कारण, यहां एक परम शांति का अनुभव होता है। जिन्होंने यहां ध्यान किया है, उनका दावा है कि वे यहां एक अनोखी तरह की शांति महसूस कर सकते हैं, हालांकि इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। 

कश्मीर के 5 हैंडीक्राफ्ट्स बढ़ाएंगे आपकी शान

भारत की सबसे सुंदर जगह के बारे में जब भी बात होती है तो सबसे पहले कश्मीर ही याद आता है। समंदर को चाहने वाले जितना गोआ से प्यार करते हैं पहाड़ों को पसंद करने वालों को कश्मीर से उतनी ही मोहब्बत है। यहां का मौसम, नज़ारे, संस्कृति, परंपराएं, लोग सब खास हैं। लेकिन इस बार हम यहां के हैंडीक्राफ्ट्स की बात करेंगे। अगर आप कश्मीर घूमने जा रहे हैं तो इन हैंडीक्राफ्ट्स को लाना बिल्कुल मत भूलिएगा। आप इन्हें खुद इस्तेमाल कर सकते हैं या अपने किसी करीबी को तोहफे में दे सकते हैं। 

इस तरह करें गणेश चतुर्थी की तैयारी

गणेश चतुर्थी को ज्ञान के देवता गणेश जी के जन्मदिन के रूप में पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश जी की रचना पार्वती जी ने की थी। जब शिव जी ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर काट दिया, तो देवी पार्वती बहुत दुखी हुईं। उन्होंने शंकर जी से कहा कि उन्हें हर हाल में उनके पुत्र गणेश वापस चाहिए। शिव जी ने गणेश जी के कटे हुए सिर को हाथी के सिर से बदल दिया और गणेश जी को वापस जीवित कर दिया। गणेश जी के जन्मदिन को पुरे देश में 10 दिनों तक बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हालांकि, ये त्योहार सबसे स्तर पर महाराष्ट्र में मनाते हैं । कहा जाता है कि महान मराठा नेता छत्रपति शिवाजी ने स्वयं इस त्योहार को अपने लोगों के बीच संस्कृति और एकता को बढ़ावा देने के लिए एक सार्वजनिक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया था, जो जाति से विभाजित थे। इसे राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक द्वारा 19वीं शताब्दी के अंत में देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता के संदेश को फैलाने के लिए फिर से धूमधाम से मनाया जाने लगा।  इसलिए यह त्योहार न केवल आस्था और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि भारत के समृद्ध इतिहास का भी प्रतीक है।इसमें कोई शक नहीं कि गणेश चतुर्थी की भव्यता का अनुभव करने के लिए सबसे अच्छी जगह मुंबई है। यहां इस त्योहार की तैयारी करीब एक महीने पहले से शुरू हो जाती है। पूजा गणेश जी की सुंदर नक्काशीदार रंगीन मूर्तियों की स्थापना के साथ शुरू होती है। गणेश जी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करके यह अनुष्ठान शुरू किया जाता है। 'प्राणप्रतिष्ठ' का शाब्दिक अर्थ 'जीवन की स्थापना' होता है, इसीलिए कहते हैं कि मूर्ति में स्वयं भगवान गणेश स्वयम विराजमान रहते हैं। इस पूजा में 10 दिनों के दौरान संगीत, नृत्य, नाटक और सभी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम पूरे मुंबई में होते हैं। इन समारोहों के दौरान मुंबई की हर गली जीवंत हो उठती है। गणेश जी को हर दिन मिठाई का भोग लगाया जाता है, जिसमें मुख्य मोदक होता है, जिसे उनकी पसंदीदा मिठाई माना जाता है। फूल, चावल, नारियल, गुड़ और सिक्के भी चढ़ाए जाते हैं। त्योहार के अंतिम दिन, अनंत चतुर्दशी पर मूर्ति को विसर्जित करने के लिए विशाल जुलूस निकलते हैं और मूर्ति को नदी या समुद्र में विसर्जित कर देते हैं। इस दिन मुम्बई की हवा भी "गणपति बप्पा मोरया" के जाप से गूंजती है लोग इस दिन गणपति जी से ज़िन्दगी के सभी दर्द और दुखों को दूर करने और अगले वर्ष जल्द ही वापस आने का अनुरोध करते हैं। गणेश चतुर्थी को अन्य राज्यों जैसे गोवा (यह कोंकणी लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है), आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।इस बार 31 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। अगर आप भी इस दिन गणेश जी को उनका प्रिय मोदक खिलाना चाहते हैं तो हम आपको बता रहे हैं कुछ अलग तरह के मोदक बनाने की रेसिपी…

प्राकट्य से उपसंहार तक, श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े मंदिर

एक मार्गदर्शक, एक दार्शनिक, एक नटखट बच्चा, एक छोटा सा भगवान, एक सखा, एक चमकते तारे की आभा वाला, एक शूरवीर, ज़िन्दगी के हर पहलू में, हर रूप में कृष्ण हैं। वो राधा का प्रेम है तो रुक्मिणी का जीवन, यशोदा का लाल है तो देवकी का दुलार, गोपियों का श्रृंगार है तो सबका तारनहार। कृष्ण प्रेम भी हैं और प्रतिशोध भी, कृष्ण विराट हैं और बाल भी। वह एक अद्भुत संन्यासी, एक अद्भुत गृहस्थ और साथ ही एक शक्तिशाली नेता थे। भगवान कृष्ण के जीवनकाल में हुई सभी घटनाओं से जुड़े कई मंदिर भारत के विभिन्न कोनों में हैं। तो हम बताते हैं आपको कि इस जन्माष्टमी पर आपके कान्हा की ज़िंदगी से जुड़े कुछ मशहूर मंदिरों के बारे में…

हनुमान जी की सबसे ऊंची मूर्ति है यहां, दिलचस्प है इतिहास

शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की जीवंत सुंदरता के बीच बना, जाखू मंदिर एक प्राचीन हनुमान मंदिर है जो पवन पुत्र हनुमान के भक्तों के बीच बेहद प्रसिद्ध है। शिमला के मशहूर दर्शनीय स्थलों में से एक इस मंदिर में  भगवान हनुमान की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति है। लोग यहां प्रभु के दर्शन के लिए तो आते ही हैं, शिमला आने वाले हर धर्म और संप्रदाय के टूरिस्ट्स इस विशाल मूर्ति को देखने भी आते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 8048 फीट की ऊंचाई पर है। 2010 में हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने यहां 108 फीट की हनुमान प्रतिमा स्थापित की थी। इस मूर्ति को पूरे शिमला से देखा जा सकता है। श्रद्धालु यहां पैदल, निजी कार या रोपवे से जाते हैं। शिमला में रिज नामक जगह से यहां जाने के लिए रोप वे लिया जा सकता है। जाखू मंदिर से पास के शहर संजौली का व्यू भी बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का के अद्भुत नज़ारे को देखने के लिए कई ट्रेकर्स भी यहां आते हैं। सिर्फ मंदिर ही नहीं, यहां तक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है। 

कोटिलिंगेश्वर : जिस मंदिर में एक करोड़ से ज़्यादा शिवलिंग हैं

सावन का महीना यानी बारिश का महीना, हर तरफ हरियाली बिखेरने का महीना, त्योहारों का महीना, झूलों का महीना, गीतों का महीना… और इन सब से बढ़कर भगवान शिव का महीना। यूँ तो ईश्वर की पूजा के लिए न कोई दिन में बंध सकता है और न रात में, न वक़्त में और में और न हालात में, न महीने में और न साल में लेकिन इस महीने में ऐसा लगता है जैसे हर तरफ महादेव की भक्ति हो, हवा में भी हर-हर शम्भू गूंजता सुनाई देता है। अब जब बात शिवार्चन और आस्था की चल ही रही है तो हम आपको कर्नाटक के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां आप जिधर भी नज़र घुमाएंगे आपको सिर्फ शिवलिंग ही नज़र आएंगे। हम बात कर रहे हैं कोटिलिंगेश्वर मंदिर की। कर्नाटक के कोलार जिले का कोटिलिंगेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है, जो बहुत पुराना नहीं है लेकिन फिर भी बहुत सारे भक्तों और पर्यटकों का जमावड़ा यहां लगा रहता है। कोलार वैसे तो अपनी सोने की खदानों के लिए मशहूर है, लेकिन आप उन्हें देखने नहीं जा सकते। हालांकि, बंगलुरु से 70 किलोमीटर की दूरी पर बसे में आप कोटिलिंगेश्वर मंदिर के दर्शन ज़रूर कर सकते हैं।  बंगलुरु से यहां तक आने के लिए सड़क के दोनों ओर हरे- भरे खेत देखते हुए आप मंदिर पहुंच जाएंगे। 

चित्रकूट में इन 5 जगहों को देखना न भूलें

चित्रकूट में घूमने के लिए कई दिलचस्प जगहें हैं। घंटियों की आवाज से गुलजार नदी घाटों से लेकर गर्व और अखंडता के प्रतीक ऊंचे किले और महल तक, झरनों से लेकर जंगल तक यहां सबकुछ है। वैसे तो यहां कई ऐसी जगहें हैं जो आपका दिल जीत लेंगी लेकिन हम आपके लिए चित्रकूट की 5 ऐसी जगहों की जानकारी लाए हैं जिन्हें देखे बिना आपकी यात्रा पूरी नहीं होगी।कामदगिरी कामदगिरी एक जंगली पहाड़ी है जो चारों तरफ से कई हिंदू मंदिरों से घिरा हुई है। इसे चित्रकूट का दिल माना जाता है। तीर्थयात्री इस पहाड़ी के चारों ओर इस विश्वास के साथ परिक्रमा करते हैं कि उनके सभी दुखों का अंत हो जाएगा और ऐसा करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। कामदगिरी का नाम भगवान राम के दूसरे नाम कामद नाथ जी से लिया गया है, इसका मतलब सभी इच्छाओं को पूरा करना है। इस पहाड़ी की परिक्रमा के 5 किलोमीटर के रास्ते पर कई मंदिर हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध भरत मिलाप मंदिर है। यह उसी जगह पर बना है जहां भरत ने भगवान राम से मुलाकात की और उन्हें अपने राज्य में वापस आने के लिए मना लिया था। कामदगिरी पर्वत का कुछ भाग उत्तर प्रदेश में तो कुछ मध्य प्रदेश में पड़ता है।गुप्त गोदावरीगुप्त गोदावरी दो गुफाओं का समूह है। यहां अंदर जाने के लिए एक पतला सा रास्ता है जिसमें अमूमन हर कोई फंस जाता है। दूसरी गुफा से पानी की धाराएं निकलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान राम और लक्ष्मण ने अपनी गुप्त बैठकें कीं, गुफा में इस बात की पुष्टि करते हुए सिहांसन नुमा कुछ रचनाएँ हैं। हालांकि चित्रकूट में ज़्यादातर धार्मिक यात्रा करने वाले लोग ही आते हैं लेकिन आजकल एडवेंचर पसंद करने वाले लोगों का भी यह पसंदीदा ठिकाना बन गया है। गुप्त गोदावरी भी ऐसे लोगों को काफी पसंद आती है।  एलीफेंटा की गुफाओं, अजंता और एलोरा की गुफाओं से मिलती जुलती यह गुफा कई लोगों को रहस्यमयी लगती है। 

वनवास के समय इन जगहों में रहे थे श्री राम

भगवान श्री राम ने सीता जी और लक्ष्मण जी सहित अपने जीवन के 14 साल वनवास में गुजार दिए। अयोध्या से जब तीनों निकले तो उन्हें नहीं पता कि कहां जाना है, कहां रहना है और क्या करना है। उनके मन में उस वक्त यह विचार था कि उन्हें अपने पिता के वचन को किसी भी हाल में पूरा करना है और जीवन के आने वाले 14 साल वन में बिताने के बाद ही वापस अयोध्या लौट कर आना है। भले ही घर से निकलते वक्त उन्हें नहीं पता था कि उन्हें कहां जाना है, लेकिन अपने इन 14 वर्षों के काल खंड में वे जहां भी गए, जहां भी रुके, सभी जगहें पवित्र और अविस्मरणीय बन गईं। कहते हैं कि अपने वनवास के दौरान श्री राम लगभग 200 जगहों पर गए और रुके। हम आपको बताएंगे उन कुछ प्रमुख जगहों के बारे में जहां वनवास के दौरान प्रभु श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी गए थे…श्रृंगवेरपुर वाल्मीकि रामायण के अनुसार, अपने वनवास के लिए अयोध्या से निकलने के बाद राम जी सबसे पहले अयोध्या से 20 किलोमीटर दूर तमसा नदी के तट पर पहुंचे थे। इसके बाद नदी पार करके वे प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर निषादराज गुह के राज्य श्रृंगवेरपुर पहुंचे। यहीं गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। रामायण काल में सिंगरौर को ही श्रृंगवेरपुर कहा जाता था। प्रयागराज से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग 35 किलोमीटर दूर यह जगह है। कहते हैं कि जब श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी यहां घाट पर पहुंचे थे तब वहां नाव वालों ने उन्हें नदी पार कराने से मना कर दिया था। इसके बाद स्वयं निषादराज गुह वहां आए और उन्होंने श्रीराम से कहा कि अगर वे उन्हें अपने पैर धोने का अवसर देंगे तो वह उन्हें नदी पार करा देंगे। श्रीराम ने उनका निवेदन मान लिया और निषादराज से वनवास की वापसी में उनके घर आने का वादा करके वह तीनों यहां से आगे चले गए। इस घटना से जोड़ने के लिए इस स्थान का नाम 'रामचुरा' रखा गया है। इस जगह पर एक छोटा सा मंदिर भी है। हालांकि इस मंदिर का कोई ऐतिहासिक या सांस्कृतिक महत्व नहीं है, लेकिन यह जगह अब पर्यटकों को भा रही है।कुरई श्रृंगवेरपुर की नदी के दूसरी छोर पर कुरई गांव है। मान्यताओं के अनुसार, श्रृंगवेरपुर से नदी पार करने के बाद राम जी इसके दूसरे छोर पर कुरई में नाव से उतरे थे और आगे के सफर की ओर बढ़े थे। इस गांव में एक छोटा-सा मन्दिर भी है, जो स्थानीय श्रुति के अनुसार उसी जगह पर है जहां गंगा को पार करने के बाद राम, लक्ष्मण और सीता जी ने कुछ देर विश्राम किया था। कुरई में नाव से उतरने के बाद श्रीराम प्रयागराज पहुंचे और वहां से यमुना को पार कर उन्होंने अपना अगला पड़ाव चित्रकूट को बनाया। चित्रकूटराजा दशरथ की मृत्यु के बाद जब भरत अपनी सेना लेकर भगवान राम से मिलने जिस जगह पहुंचते हैं, वह चित्रकूट थी। यहीं से वह श्रीराम से उनकी चरण पादुकाएं मांगते हैं और उन्हें ही सिंहासन पर रखकर राज्य चलाने की प्रतिज्ञा लेते हैं। मान्यताओं के अनुसार, चित्रकूट में कामदगिरि भव्य धार्मिक स्थल है जहां भगवान राम रहा करते थे। इस स्थान पर भरत मिलाप मंदिर भी है। तुलसीदास ने भी अपनी रचना में चित्रकूट का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है - चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़तुलसीदास चंदन घिसत, तिलक देत रघुबीर

जुलाई में बारिश के साथ लें देशभर के इन फेस्टिवल्स का मज़ा

विविधता से भरे अपने देश में हर महीने पर्वों की खुशबू तैरती रहती है। हमारे त्यौहार साल भर अपने रंगों से पूरे भारत को रोशन किए रहते हैं। जुलाई का महीना पर्वों के साथ ही साथ मॉनसून वाला भी होता है। इस महीने जहां चारों तरफ हरियाली फैलना शुरू हो जाती है, वहीं जुलाई में कई त्यौहार भी होते हैं जो इस मौसम को और खास बना देते हैं।  मॉनसून में भला किसका घूमने का मन नहीं करेगा। जुलाई में मॉनसून काफी खुशनुमा एहसास दिलाता है और तभी घूमने में आनंद आता हैं। जी हां! अगर आप भी मॉनसून के इस खास महीने में अपनी फैमिली के साथ भारत में कहीं घूमने जाना चाहते हैं, तो फिर आपका इंतजार देश के खूबसूरत ठिकाने कर रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां पर हर धर्म और समुदाय के लोग अपनी संस्कृति का जश्न मनाते हैं। जुलाई महीने के विविध त्यौहार भी पर्यटकों के लिए भारतीय संस्कृति को देखने का सबसे अच्छा तरीका पेश करते हैं। जुलाई महीने में मॉनसून अपने पूरे रंग में रहता है, तो ऐसे में सुहाना मौसम इन फेस्टिवल्स की रौनक को दोगुना कर देता है। 

जहां धड़कता है श्री कृष्ण का दिल

कहते हैं कि जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया और उनका अंतिम संस्कार किया गया तो एक हिस्से को छोड़कर उनका पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। उनका हृदय जो उनके इस दुनिया से विदा लेने के बाद भी धड़कता रहा। कहते हैं कि वह दिल आज भी सुरक्षित है और भगवान जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति के अंदर है। ओडिशा के पुरी शहर में बना भगवान जगन्नाथ का मंदिर अपने अंदर हज़ारों रहस्य समेटे है। इस बार हम आपको बताएंगे इसी मंदिर का इतिहास। 

श्राद्ध पक्ष में इन जगहों का है विशेष महत्व, पिंडदान के लिए जाते हैं लोग

भारत में भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। पितृपक्ष 15 दिन चलता है यानी अश्विन महीने की अमावस्या तक। इस साल यह 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलेगा और 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो जाएंगे। पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। देश में ऐसी कई जगहें हैं जो पूर्वजों जहां जाकर लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। आप भी जानिए इन जगहों के बारे में...

खूबसूरत नक्काशी और गर्वीला इतिहास है इस जगह की पहचान

दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में एक छोटा सा शहर है हम्पी। विजयनगर का यह शहर भले ही छोटा सा है, लेकिन इसका नाम यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है। कभी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी रहा हम्पी आज भी अपनी कमाल की नक्काशी वाले मंदिरों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। 

यहां माथा टेककर पूरी होगी मन की हर मुराद

क्यों सर जी! कोरोना ने गर्मी की छुट्टियों का कबाड़ा कर दिया न। आप ही नहीं, हर किसी के साथ ऐसा ही हुआ है। लोगों ने जो कुछ भी प्लान बनाया था, वह रेत के टीले की तरह भरभरा कर ढह गया। अब तो सारी कोशिशें जान बचाने की हैं। खैर जैसे यह वक्त आया है, देर-सवेर चला भी जाएगा। इस दौर के गुजरने के बाद आपको कहीं निकलना हो तो हमारे पास आपके लिए कुछ खास है। आज हम आपको उन जगहों पर ले चलेंगे जो खास हैं। विज्ञान व तर्क की कसौटी पर इन जगहों को अंधविश्वास से जोड़ा जाता है, लेकिन कुछ तो है जिससे करोड़ों लोग हर साल यहां खिंचे चले आते हैं। लोग आते हैं, अपनी अर्जियां लगाते हैं और मनौतियां पूरी होने पर मत्था टेकने भी आते हैं। अब अगर आप इन जगहों को खारिज करना चाहते हैं तो टेस्ट लेना सबसे मुनासिब तरीका होगा। आउटिंग की आउटिंग भी हो जाएगी और सच्चाई का पता भी चल जाएगा।

लीजिए डिजिटल रोमांटिक टूर का मजा

बेहतरीन लाइट्स, शानदार म्यूजिक और कमाल की कारीगरी का सेलिब्रेशन, फ्रैंकफर्ट ल्यूमिनाले इस साल लॉकडाउन की वजह से अभी तक नहीं हो पाया था। यह उत्सव 2002 से हर दो साल में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में होता है जिसमें लगभग 250,000 लोग हिस्सा लेते हैं। इस साल कोरोना वायरस की वजह से यहां की रोशनी भी फीकी होती दिख रही थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।ल्यूमिनाले 2020 इस बार डिजिटल होगा क्योंकि इसमें शामिल होने वाले कलाकारों ने कोरोना वायरस के महामारी घोषित होने से पहले ही अपने प्रोजेक्ट्स बना लिए थे। आप भले ही करीब जाकर इन प्रोजेक्ट्स का मजा नहीं ले सकते लेकिन डिजिटली आप अभी भी इस साल के प्रोजेक्ट्स का पूरा मजा ले सकते हैं। #Luminaledigital एक वर्चुअल टूर है जिसमें आप बिहाइंड द सीन्स का टूर भी कर सकते हैं।इस साल के ल्यूमिनाले उत्सव की थीम डिजिटल रोमांटिक है जिसमें कला के रोमांटिक दौर और डिजिटल रिवॉल्यूशन के बारे में प्रोजेक्टस बनाए गए हैं। वास्तविक दुनिया से परे पहुंचने के लिए इसमें लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है। यह इन जगहों को डिजिटल दुनिया में ले जाता है और बहस छेड़ता है कि क्या इनकी वाकई में जरूरत है? ल्यूमिनाले पूछता है, क्या डिजिटल वाकई एनॉलॉग कंटेंट को समझाने का बेहतर समाधान है? क्या लगातार आने वाली चीजों की बाढ़ का सामना करने के लिए दिमाग में नई तस्वीरें बनाई जा सकती हैं? क्या रोशनी की कला एक स्टेज इवेंट तक आकर खत्म हो जाती है? या क्या यह सच्चे, सुंदर, अच्छे के लिए एक तड़प को पूरा करती है? अगर आप भी रोशनी और संवाद के एक बेहतरीन अनुभव में खुद को खोना चाहते हैं और इस आभासी दुनिया में शामिल होना चाहते हैं तो ल्यूमिनाले की वेबसाइट पर जाइए और इसका मजा लीजिए।

फिजाओं में चार चांद लगाता राजस्थान का माउंट आबू फेस्टिवल

राजस्थान जितना खूबसूरत है, यहां की गर्मी उतनी ही खतरनाक भी है। कई टूरिस्ट तो यहां कि गर्मी के चलते घूमने का प्लान बनाने से पहले सौ बार सोचते हैं, लेकिन आपको बता दें रेत से घिरे इस रंग-रंगीले राज्य में एक हिल स्टेशन भी है। यह राजस्थान के सिरोही जिले में है, जिसे माउंट आबू नाम से जाना जाता है। माउंट आबू बेहद ही आकर्षक जगह है, जो टूरिस्ट को अपनी ओर खींच ही लेती है। यहां आने की एक खास वजह और है जिसके चलते देश-दुनिया से यहां टूरिस्ट पहुंचते हैं। दिसंबर के महीने में माउंट आबू विंटर फेस्टिवल आयोजित होता है। इस दौरान आपको यहां राजस्थान की संस्कृति के विविध रंग दिखाई देंगे। यह फेस्टिवल यहां राजस्थान सरकार, पर्यटन विभाग, म्युनिसिपल बोर्ड आदि की ओर से आयोजित किया जाता है। इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा खेलकूद, कठपुतली नृत्य, डॉग शो, बोट रेस, योग और ध्यान जैसी गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।माउंट आबू अपने प्राचीन इतिहास और ऐतिहासिक महत्व वाली जगहों के चलते टूरिस्ट के आकर्षण का केन्द्र है। माउंट आबू विंटर फेस्टिवल में यहां का माहौल बिलकुल बदला नजर आता है। दरअसल, यह फेस्टिवल यहां के स्थानीय पर्वतीय लोगों के सामूहिक जश्न का प्रतीक है। इसमें होने वाले रंगारंग कार्यक्रम यहां की फिजाओं में चार चांद लगा देते हैं। रंग-बिरंगे पारम्परिक राजस्थानी परिधानों में यहां की स्थानीय जनजातियां सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जान फूंक देती हैं। करीने से सजाए गए ऊंट, घोड़े, हाथी पर्यटकों को रोमांच से भर देते हैं। आबू रोड बस स्टैंड से लेकर नक्की झील तक यहां जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। यहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं जैसे मटका फोड़, रंगोली, म्यूजिकल चेयर, रस्साकशी होती रहती हैं। शाम को विशेष रंगारंग कार्यक्रम होते हैं, जिसमें दर्शकों की बड़ी तादाद उमड़ती है। माउंट आबू राजस्थान की एक अलग झलक पेश करता है।

कोर्णाक डांस फेस्टिवल : झूमकर नाचिए और डूब जाइए भक्ति के रंग में

ठंड ने पूरी तरह से देश के अधिकतर हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इसी के साथ देश में कुछ ऐसे विंटर फेस्टिवल्स भी शुरू हो जाएंगे, जो लोक-संस्कृति और कलाओं के अनोखे उदाहरण पेश करते हैं। ग्रासहॉपर के इस अंक में हम आपको देश के कुछ प्रसिद्ध विंटर फेस्टिवल्स के बारे में बताएंगे, जहां जाकर आप विभिन्न संस्कृतियों और विधाओं के बारे में जान पाएंगे, साथ ही कुछ बेहतरीन पलों का भी मजा ले सकते हैं।

पुष्कर: उत्सवों को उत्साह से मनाती भगवान ब्रह्मा की ये नगरी

अरावली की पहाड़ियों से तीन ओर से घिरे राजस्थान के ह्रदय पुष्कर में एक अलग ही रंग का हिंदुस्तान बसता है। एक ऐसा हिंदुस्तान जिसे सैलानी सिर्फ देखने नहीं बल्कि उसे महसूस करने, जीने और इसकी आध्यात्मिकता में डूब जाने के लिए आते हैं। आपके लिए ये बेस्ट मौका है पुष्कर घूमने का, क्योंकि 15 नवंबर से 23 नवंबर तक यहां पूरी दुनिया में अपनी तरह का इकलौता पुष्कर मेला लगने जा रहा है। हां उछलते हुए ऊंट दौड़ लगाते हों, जहां राजस्थानी बांकुरे मूंछों पर ताव देते हुए डूबते सूरज के धुंधलके को आंखों में समेट लेते हों और जहां सिर पर रंग-बिरंगा साफा बांधे थिरकते सैलानी महोत्सव को जश्न में बदल देते हों, उस खूबसूरत नगरी का नाम है पुष्कर। श्रृष्टि रचयिता, सभी वेदों के निर्माता, स्वयंभु और परमपिता ब्रह्मा की यह नगरी मन में उत्साह का नया संचार करती है। यूं तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड ही परमपिता का घर है लेकिन पृथ्वी के बारे में कहा जाता है कि यहां एक जगह ऐसी भी है, जिसे भगवान ब्रह्मा का पृथ्वी का घर कहा जाता है, उस जगह का नाम है तीर्थराज पुष्कर। वही पुष्कर जिसे विश्व में एकमात्र ब्रह्मा मंदिर होने का सौभाग्य प्राप्त है। तो चलिए ग्रासहॉपर के साथ दिल्ली से लगभग 414 किमी और जयपुर से 130 किलोमीटर दूर बसे इस शहर की खुशबू को समेटने...

सेंट वैलेनटाइन का गांव जिसे कहते हैं 'विलेज ऑफ लव'

हफ्ता मोहब्बत वाला जिसका जश्न मनाने के लिए लाखों दिल धड़कते हैं। वैलेनटाइंस डे पर अनगिनत प्रेम कहानियां शुरू होती हैं और वक्त के साथ परवान चढ़ती हैं। लेकिन जिसकी वजह से मोहब्बत वाले इस हफ्ते में युवाओं का दिल धड़कता है क्या उसके बारे में आप जानते हैं? क्या उसके गांव के बारे में जानते हैं और क्या उसके त्याग के बारे में जानते हैं। तो आइए हम आपको बताते हैं सेंट वैलेनटाइन और उनके गांव के बारे में जो हर साल 12 से 14 फरवरी के बीच सैंकड़ों कपल्स के प्रेम का गवाह बनता है।यह गांव लॉयर वैली में स्थित है, जिसका नाम है सेंट वैलेनटाइन। यदि आपको लगता है कि पेरिस दुनिया के सबसे रोमांटिक शहरों में से है तो एक बार लॉयर वैली के सेंट वैलेनटाइन गांव जरूर घूम आइए। यहां हवाओं में प्यार आप जरूर महसूस कर पाएंगे। खैर अब आते हैं सेंट वैलेनटाइन के इतिहास पर। दरअसल, सम्राट क्लॉडियस का मानना था कि अविवाहित पुरुष विवाहित पुरुषों की तुलना में ज्यादा अच्छे सैनिक बन सकते हैं। यही वजह है उसने अपने राज्य में सैनिकों व अधिकारियों के शादी करने पर पाबंदी लगा दी थी। उसी दौरान संत वैलेनटाइन एक चर्च में पादरी थे और उन्होंने इस आदेश को मानने से मना कर दिया और इसका विरोध किया। संत वैलेनटाइन ने सम्राट के आदेश के खिलाफ कई सैनिकों और अधिकारियों के गुप्त विवाह भी करवाए। इस बात के बारे में जब क्लॉडियस को पता चला तो उन्होंने संत वैलेनटाइन को फांसी पर चढ़ा दिया। यह फांसी 14 फरवरी 269 के दिन दी गई। तभी से यह दिन वैलेनटाइंस डे के रूप में प्रचलित हो गया। बताया जाता है कि वैलेनटाइन ने अपनी मौत के समय जेल की अंधी बेटी जैकोबस को अपनी आंखें दान कर दी थीं। साथ ही उन्होंने जैकोबस को एक चिट्ठी भी दी, जिसके आखिर में लिखा था Your Valentine. यही से लोगों में अपने प्रिय लोगों के प्रति वैलेनटाइन कहने की परंपरा की शुरुआत हुई। 

दुर्गा पूजा: शक्ति व शौर्य का उत्सव

आस्था, भक्ति, शक्ति व शौर्य का प्रतीक त्योहार यानि दुर्गा पूजा। उत्सव भले एक हो लेकिन इसका रंग हर राज्य में थोड़ा अलग देखने को मिलेगा। कहीं इन नौ दिनों में उपवास रखा जाता है तो कहीं नाच गाकर मां दुर्गा को खुश करने की कोशि। आस्था और उल्लास दोनों का मेल है दुर्गा पूजा। यूपी, झारखंड, गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र और सबसे खास बंगाल में ये त्योहार बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। तो इस बार आप भी इस उत्सव के भक्ति रंग में खुद को सराबोर करने के लिए निकल पड़िए इनमें से ही किस एक राज्य में।

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