प्राकट्य से उपसंहार तक, श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े मंदिर

अनुषा मिश्रा 11-08-2022 05:04 PM Culture
एक मार्गदर्शक, एक दार्शनिक, एक नटखट बच्चा, एक छोटा सा भगवान, एक सखा, एक चमकते तारे की आभा वाला, एक शूरवीर, ज़िन्दगी के हर पहलू में, हर रूप में कृष्ण हैं। वो राधा का प्रेम है तो रुक्मिणी का जीवन, यशोदा का लाल है तो देवकी का दुलार, गोपियों का श्रृंगार है तो सबका तारनहार। कृष्ण प्रेम भी हैं और प्रतिशोध भी, कृष्ण विराट हैं और बाल भी। वह एक अद्भुत संन्यासी, एक अद्भुत गृहस्थ और साथ ही एक शक्तिशाली नेता थे। भगवान कृष्ण के जीवनकाल में हुई सभी घटनाओं से जुड़े कई मंदिर भारत के विभिन्न कोनों में हैं। तो हम बताते हैं आपको कि इस जन्माष्टमी पर आपके कान्हा की ज़िंदगी से जुड़े कुछ मशहूर मंदिरों के बारे में…

कृष्ण जन्मस्थली, मथुरा

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सबसे पहले हम आपको बता रहे हैं उस मंदिर के बारे में जहां प्रभु श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। यह ठीक उसी जगह पर बना है, जहां कभी भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। ये है मथुरा का केशव देव मंदिर। स्थानीय लोगों के अनुसार, केशव देव मंदिर को राजा वीर सिंह बुंदेला ने बनवाना शुरू किया था, जिन्हें कृष्ण का परपोता कहा जाता था। इसे कई बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया। मुख्य मंदिर में कृष्ण, राधा और बलराम की छोटी मूर्तियों के साथ-साथ भगवान कृष्ण की संगमरमर की मूर्ति है। इसके पीछे एक छोटा कमरा है, जो उस जेल का कमरा है जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। मंदिर में जन्माष्टमी, होली जैसे त्योहार खूब धूमधाम से मनाए जाते हैं। 

मंदिर का समय: सुबह 05:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 04:00 बजे से शाम 08:00 बजे तक।

कैसे पहुंचें मथुरा

मथुरा का प्रमुख निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, दिल्ली है। आप किसी भी भारतीय या अंतरराष्ट्रीय शहर से दिल्ली के लिए उड़ान भर सकते हैं और फिर मथुरा पहुंचने के लिए बस, टैक्सी या ट्रेन किराए पर ले सकते हैं। मथुरा जंक्शन मध्य और पश्चिम रेलवे का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। इसलिए कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, इंदौर, आगरा, भोपाल, ग्वालियर, वाराणसी, लखनऊ सहित प्रमुख शहरों से मथुरा के लिए ट्रेन मिल जाती हैं। रोडवेज का एक अच्छा नेटवर्क मथुरा को दिल्ली, आगरा, मुरादाबाद, जयपुर, बीकानेर, कोलकाता के साथ-साथ यूपी और आसपास के राज्यों के अन्य छोटे शहरों से जोड़ता है। 


बांके बिहारी मंदिर, वृन्दावन

बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन भारत में कृष्ण के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। कहते हैं कि श्री स्वामी हरिदास को बांके बिहारी जी निधिवन में मील थे। यहां की ठाकुर जी की मूर्ति बहुत पुरानी है और 1863 तक निधिवन में इसकी पूजा की जाती थी। इस मंदिर को 1864 में गोस्वामी के योगदान से बनवाया गया था। मंदिर बनने के बाद गोस्वामी ने मूर्ति को इस मंदिर में स्थापित कर दिया। बांके का अर्थ है "तीन स्थानों पर झुकना" और बिहारी का अर्थ है "सर्वोच्च भोक्ता"। बांके बिहारी जी की बचपन से ही पूजा और पालन-पोषण किया जाता है। बांके बिहारी मंदिर में हर त्योहार को मनाने का एक अलग और अनोखा अंदाज होता है। यहां भगवान को तैयार किया जाता है और मौसम के अनुसार भोजन दिया जाता है। त्योहार के अनुसार मंदिर को लाइट्स और कई तरह के फूलों से सजाया जाता है। मंदिर में कोई घंटी या शंख नहीं है क्योंकि बांके बिहारी को घंटी या शंख की आवाज पसंद नहीं है। केवल 'राधा नाम' का जाप होता है। 

मंदिर का समय : सुबह 7.45 से दोपहर 12.00 बजे तक और शाम को 5.30 से 9.30 बजे तक।

कैसे पहुंचें वृन्दावन

वृन्दावन से दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (150 किमी दूर) निकटतम हवाई अड्डा है। टैक्सी से वृंदावन पहुंचने में करीब साढ़े तीन घंटे लगेंगे। ट्रेन से वृंदावन में एक रेलवे स्टेशन है, लेकिन सभी ट्रेनें यहां नहीं रुकती हैं। निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन लगभग 14 किमी दूर मथुरा में है। मथुरा से वृंदावन के लिए टैक्सी, बसें और किराए के ऑटो-रिक्शा उपलब्ध हैं। सड़क द्वारा आप मथुरा होते हुए वृंदावन जा सकते हैं। मथुरा से वृन्दावन के लिए टैक्सी, बसें और किराए के ऑटो-रिक्शा उपलब्ध हैं।


केशवराई जी मंदिर, बेट द्वारका, गुजरात

कहते हैं कि मथुरा से जाने के बाद कृष्ण जी ने बेट द्वारका को ही अपना निवास बनाया था। यहां भगवान श्री कृष्ण का वास्तविक निवास है जो अब श्री केशवराईजी मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह एक अत्यधिक पूजनीय हिंदू मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि जब कृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा उनसे इसी बेट द्वारका के घर में मिलने आए थे और उन्हें चावल भेंट किए थे। पुष्कर्ण ब्राह्मण, भाटिया, सिंध, राजस्थान, कच्छ, गुजरात और पंजाब से सबसे ज़्यादा भक्त केशवराईजी मंदिर आते हैं। कहते हैं कि इस मंदिर के नीचे ही वह द्वारका नगरी है जो अब समुद्र में दोइब चुकी है।

मंदिर का समय : सुबह 7.00 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक व शाम को 4.00 बजे से 6.30 बजे तक।

कैसे पहुंचें बेट द्वारका

बेट द्वारका जाने के लिए यात्रियों को पहले रेल या सड़क मार्ग से ओखा बंदरगाह घाट तक पहुंचना पड़ता है, जो द्वारका से लगभग 32 किमी दूर है। वहां से टूरिस्ट्स बेट द्वारका जाने के लिए फेरी या छोटी नाव किराए पर ले सकते हैं, जो ओखा से सिर्फ 5 किमी दूर है। यहां सार्वजनिक मोटर बोट भी चलती हैं जिनमें प्रति नाव लगभग 100 से 150 सदस्यों की हमेशा भीड़ रहती है। बेट द्वारका तक पहुँचने के लिए कोई निजी मोटर बोट भी किराए पर ले सकता है, लेकिन यह बहुत महंगी पड़ती है। 


द्वारकाधीश मंदिर, गुजरात

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गुजरात के द्वारका में भगवान श्री कृष्ण ने राज किया। वह यहां के राजा थे इसलिए द्वारकाधीश कहलाए। शांत तटों वाले द्वारका शहर के बीच बना द्वारकाधीश मंदिर में भक्तों का आना पूरे साल लगा रहता है। द्वारका का शाब्दिक अर्थ है 'मुक्ति का द्वार'- 'द्वार' का अर्थ है द्वार और 'का' का अर्थ है शाश्वत सुख। जगन्नाथ मंदिर की तरह, द्वारकाधीश को भी हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भारत में चार धाम (दिव्य निवासों) में से एक माना जाता है, और यहां तक ​​कि एक सप्त पुरी भी माना जाता है। स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर की मूल संरचना भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभजी ने बनवायी थी। मंदिर की मुख्य मूर्ति को काले संगमरमर से उकेरा गया है जो कौस्तुभ मणि और एक माला से सुशोभित है, जिसे देवी लक्ष्मी ने उपहार में दिया था। मूर्ति के एक हाथ में सुदर्शन चक्र है, जबकि दूसरे में शंख है। मंदिर में भव्य चालुक्य शैली की वास्तुकला है, जो नरम चूना पत्थर और ग्रेनाइट से बनी है। मन्दिर के गुम्बदों, स्तंभों पर कई तरह के चित्र उकेरे गए हैं। यहां आए हैं तो आप रुक्मिणी मंदिर भी जा सकते हैं, जो मुख्य मंदिर से मुश्किल से कुछ किलोमीटर दूर है। 

मंदिर का समय: सुबह 6.30 बजे से दोपहर 01:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से रात 9.30 बजे तक।

कैसे पहुंचें द्वारका

द्वारका से निकटतम हवाई अड्डा जामनगर है, जो द्वारका शहर से लगभग 137 किमी दूर है। द्वारका का अपना रेलवे स्टेशन है, जो इसे सभी प्रमुख शहरों जैसे जामनगर, अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, मुंबई, गोवा, आदि से जोड़ता है। द्वारका सड़क मार्ग से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।


जगन्नाथपुरी, ओडिसा

प्रसिद्ध चारधाम यात्रा के धामों में से एक, जगन्नाथ मंदिर भारत में सबसे प्रमुख कृष्ण मंदिरों में से एक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में, जगन्नाथ जी की लकड़ी की बारीक नक्काशीदार मूर्ति है, जो अपने आप में अद्भुत है क्योंकि अधिकांश मंदिरों में पत्थर की मूर्तियां हैं। मूर्ति के एक ओर भाई बलराम और दूसरी ओर बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं। कहते हैं कि भगवान कृष्ण के पैर में जब तीर लगा था तब उनका शरीर बहते हुए सोमनाथ से जगन्नाथपुरी आ गया था और इस मंदिर की मूर्तियों में आज भी गोविंद की आत्मा बस्ती है। जो बात इस मंदिर को भारत के बाकी श्री कृष्ण मंदिरों से अलग बनाती है, वह यह है कि यहां प्रक्रियाएं, प्रथाएं, संस्कार और अनुष्ठान अन्य हिंदू मंदिरों की तरह नहीं हैं, वे काफी अलग हैं। मंदिर की वास्तुकला के बारे में भी कई अनोखी बातें हैं जैसे मंदिर की छाया कभी दिखाई नहीं देती। समुद्र के करीब होने के बावजूद, आप मंदिर के परिसर में कदम रखने की गति में लहर की आवाज़ नहीं सुन पाएंगे। कहते हैं कि पहले यह मंदिर सूर्य मंदिर का एक हिस्सा था, 18 वीं शताब्दी में मराठों ने मंदिर को तोड़ दिया और फिर से बनाया। यहां चंदन यात्रा, स्नान यात्रा, रथ यात्रा, सयाना एकादशी, और दक्षिणायन संक्रांति जैसे उत्सव समारोहों में भारी भीड़ उमड़ती है। इन सभी त्योहारों में रथ यात्रा या रथ महोत्सव मुख्य रूप से जाना जाता है। पुरी रथ यात्रा के अवसर पर, श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा तीनों की मूर्तियों को उनके विशिष्ट रथों में भक्तों द्वारा खींचा जाता है और गुंडिचा मंदिर में ले जाया जाता है।

मंदिर का समय - सुबह 5.00 बजे से रात 10.00 बजे तक। 

कैसे पहुंचें जगन्नाथ पुरी 

जगन्नाथ मंदिर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर है, जो देश के काफी सारे हवाई अड्डे से जुड़ा हुआ है। भुवनेश्वर एयरपोर्ट से जगन्नाथ मंदिर जाने के लिए आपको बस या ट्रेन से पुरी जाना पड़ेगा। जगन्नाथ मंदिर का करीबी रेलवे स्टेशन पुरी रेलवे स्टेशन है, जो देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। अगर आपको पुरी रेलवे स्टेशन के लिए डायरेक्ट ट्रेन ना मिले, तो आप अपने शहर से भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन के लिए ट्रेन पकड़ सकते हैं। भुनेश्वर रेलवे स्टेशन से आप दूसरी ट्रेन पकड़ कर या बस के जरिये पुरी जा सकते हैं। पुरी जाने के लिए आपको ओडिसा के नजदीकी राज्यों से डायरेक्ट बस मिल जाएगी।


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