श्राद्ध पक्ष में इन जगहों का है विशेष महत्व, पिंडदान के लिए जाते हैं लोग

अनुषा मिश्रा 20-09-2021 05:51 PM Culture
भारत में भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। पितृपक्ष 15 दिन चलता है यानी अश्विन महीने की अमावस्या तक। इस साल यह 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलेगा और 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो जाएंगे। पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। देश में ऐसी कई जगहें हैं जो पूर्वजों जहां जाकर लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं। आप भी जानिए इन जगहों के बारे में...

बोधगया

बिहार में स्थित बोधगया का महत्व पिंडदान के लिए सबसे ज्यादा है। गया को विष्णु की नगरी माना जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, जब आप अपने घर से गया जाने के लिए कदम बाहर निकालते हैं तो आपका एक-एक कदम आपके पितरों को स्वर्ग की ओर ले जाने की सीढ़ी बनता है। इसे मोक्ष की नगरी कहा गया है। कहते हैं कि यहां स्वयं भगवान विष्णु देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं। इसलिए भी इस जगह की विशेष मान्यता है। यहां फाल्गु नदी के किनारे 48 वेदियां हैं जिन पर पिंडदान किया जाता है। 

पुष्कर

देश के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माने जाने वाले हरिद्वार में भी पिंडदान का विशेष महत्व है। पूरे देश से लोग यहां गंगाजी के किनारे अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि हरिद्वार की नारायणी शिला पर तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

हरिद्वार

वाराणसी

वाराणसी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है। कहते हैं कि जिसकी मृत्यु काशी में होती है वह सीधा स्वर्ग जाता है। यहां के मणिकर्णिका घाट पर दिन-रात चिताएं जलती रहती हैं। शिव की इस नगरी में गंगा के किनारे हजारों लोग पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके। कहते हैं कि जब पितृपक्ष में सभी देवता शयन करने चले जाते हैं तब लक्ष्मी जी जाग्रत रहती हैं और अपने भक्तों पर कृपा लुटाती हैं। ऐसा मानते हैं कि इन 16 दिनों में मां लक्ष्मी वाराणसी में शिवभक्तों के लिए अपने खजाने का द्वार खोल देती हैं और उनकी मुरादें पूरी करती हैं। 

प्रयागराज

प्रयागराज में गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम होता है इसलिए इसे भी पूर्वजों के पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ माना गया है। कहते हैं पैतृक संस्कार करने से, मृत्यु के बाद एक आत्मा को जिन कष्टों से गुजरना पड़ता है, वो सभी कष्ट यहां पिंडदान करने से दूर हो जाते हैं। यहां के जल में स्नान करने मात्र से पाप धुल जाते हैं और आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। 


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