पुष्कर: उत्सवों को उत्साह से मनाती भगवान ब्रह्मा की ये नगरी
इसलिए जाएं पुष्कर
नवंबर की नरम धूप में आप, जिसे सबसे ज्यादा एंजॉय कर सकते हैं वह है पुष्कर में लगने वाला पशु मेला। इसका हिस्सा बनने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। तीर्थराज पुष्कर अपने पुष्कर सरोवर से लेकर ब्रह्मा मंदिर, वराह मंदिर, गुरुद्वारा सिंह सभा, सावित्री मंदिर, रंग जी मंदिर, पाप मोचिनी मंदिर, श्री पुंचकुड शिव मंदिर, अटभटेश्वर महादेव मंदिर, मान महल देखने के साथ ही एडवेंचर डेजर्ट कैंप, ट्रैकिंग, कैंपिंग, हॉट एयर बलून राइड और घोड़ों की सवारी का आनंद ले सकते हैं। तो अगर आप भी आस्था के सरोवर में अध्यात्म की डुबकी लगाना चाहते हैं तो पुष्कर का नक्शा हाथों में थाम लें क्योंकि यही वह नगरी है जहां उत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।
पुष्कर सरोवर में लगाएं आस्था की डुबकी
अर्धचन्द्राकार बने पुष्कर सरोवर का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि इस सरोवर में डुबकी लगाए बिना कोई भी तीर्थ यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। इसकी चाहत में देश और दुनिया में दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। वाराणसी के आलावा पुष्कर की पावन भूमि वह तीर्थ नगरी है, जिसके पवित्र सरोवर में स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से लोग यहां हर साल कार्तिक मास में भगवान ब्रह्मा की पूजा अर्चना करने आते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के हाथ से एक फूल यहां गिरा था। वहीं से इस पावन पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति हुई। बावन घाट इस सरोवर की शान में चार चांद लगाते हैं। पुष्कर झील राजस्थान की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है। यहां यात्रियों के स्नान के लिए गऊघाट, ब्रह्मघाट एवं वराह घाट में रोज सुबह और शाम को पुष्करराज की आरती होती है। गऊघाट सबसे बड़ा है। यहां प्रत्येक एकादशी को भजन कीर्तन होता है। इसी घाट पर सिक्खों के गुरु गोबिंद सिंह ने 1762 में गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया था। अगर पुष्कर में सैलानियों के बढ़ते रोमांच का जिक्र होगा तो राजस्थान पर्यटन विभान के जिक्र के बिना पूरा नहीं होगा क्योंकि पर्यटन विभाग ने टूरिस्ट्स के मन में इस नगरी को स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास किए हैं।
14वीं सदी में बना भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर
पूरे विश्व में अगर ब्रह्मा मंदिर होने का गौरव किसी नगर को मिला है तो वह है तीर्थराज पुष्कर की पावन भूमि। यह प्राचीन मंदिर जमीन से करीब 50 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। संगमरमर से बने इस मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने चांदी का कछुआ बना हुआ है। कछुए के चारों तरफ संगमरमर के फर्श पर सैकड़ों सिक्के जड़े हैं जिनपर दानदाताओं के नाम लिखे हुए हैं। इसके प्रवेश द्वार के दाईं ओर देवराज इंद्र और बाईं ओर कुबेर की मूर्ति बनी है। मंदिर पर लाल शिखर और हंस (ब्रह्मा जी का वाहन) की छवि उकेरी गई है, जो भगवान ब्रह्मा की चतुर्मुखी प्रतिभा को दिखाता है। इसके दाहिनी ओर सावित्री माता और बाईं ओर देवी गायत्री का मंदिर बना है। पास में ही सनकादि की मूर्तियां हैं। इसके अलावा एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की भी मूर्ति है। इतना ही नहीं इस मंदिर के प्रहरी के रूप में आपको भगवान सूर्य की संगमरमर की मूर्ति भी देखने को मिलेगी। भले ही आप इस मंदिर में नंगे पांव प्रवेश करें लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यहां के प्रहरी अर्थात भगवान सूर्य जूते पहने नजर आएंगे, जो आपको हैरान कर सकता है। मुख्य रूप से पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार से प्रयाग को तीर्थराज के नाम से संबोधित किया जाता है, उस तरह इस तीर्थ को पुष्करराज कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं
ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर: ब्रह्माजी
मध्य (बूढ़ा) पुष्कर: भगवान विष्णु
कनिष्क पुष्कर: देवता रुद्र
वराह मंदिर जिसपर जलता दीप दिल्ली तक दिखता था
भगवान ब्रह्मा के 14वीं सदी में बने मंदिर से भी अगर कोई प्राचीन मंदिर है तो वह है वराह मंदिर। इस मंदिर को 12वीं शताब्दी में राजा अन्नाजी चौहान ने बनवाया था। मंदिर लगभग 900 साल पुराना है। यह मंदिर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह को समर्पित है। करीब 30 फुट ऊंचा यह मंदिर, चौड़ी सीढ़ियों और किले जैसे प्रवेश द्वार की वजह से आकर्षण का केन्द्र है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1727 का है। बताया जाता है कि कभी इस मंदिर का शिखर 125 फीट ऊंचा था, जिस पर साेने का दीपक जलता था, जो दिल्ली तक दिखाई देता था। इस दीपक में एक मन घी जलने की क्षमता थी। यह मंदिर पुष्कर के पाराशर ब्राह्मणों की आस्था का केन्द्र बिंदु है। इसके पीछे की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक, भगवान विष्णु ने तीसरा अवतार वराह रूप में लिया था। पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को समुद्र में ले जाकर छिपा दिया, तब भगवान वराह ने पृथ्वी को न सिर्फ ढूंढा बल्कि उस राक्षस का वध भी किया। इतिहासकारों के मुताबिक, 1806 में मुहम्मद गौरी ने जब अजमेर फतह किया तो इस मंदिर को नष्ट करवा दिया था लेकिन 1809 में सिंधिया राज के प्रशासक गोकुल चंद पारीक ने इस मंदिर का पुनर्निमाण करवाया था।
दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेला
अक्टूबर और नवंबर के महीने में पुष्कर की फिजाओं में घुले नए रंग का अहसास होता है। यह रंग खुशियों का है, बेफिक्री है, गोधुली में मुम हो जाते है और अलग-अलग संस्कृतियों को महसूस करने का है। यही वजह है कि पुष्कर के इस पशु मेले का देश ही नहीं विदेश में भी पर्यटकों को इंतजार रहता है। पर्यटकों के अलावा फोटोग्राफर्स भी इस उत्सव के अलग-अलग रंगों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए बेसब्री से इंतजार रहते हैं। इस साल 15 से 23 नवंबर तक चलने वाले इस फेस्टिवल में आपको ऊंटों की दौड़ से लेकर सबसे लंबी मूंछ, मटकी फोड़ और ब्राइडल कॉम्पटीशन जैसी अलग-अलग रोचक और रोमांचकारी चीजें देखने को मिलेंगी। किसी समय पर पशुओं के बाजार के रूप में शुरू हुआ यह मेला अब पूर्ण रूप से एक उत्सव का रूप ले चुका है। इस मेले में रंग-बिरंगी पगड़ी पहने आमजन, सजे हुए ऊंट, रस्साकशी करती महिलाएं और मेले का आनंद लेते सैलानी आसानी से मिल जाएंगे, जो राजस्थान के असली रंगों को अपनी आंखों में कैद कर बेहद खुश नजर आते हैं। इसके अलावा इस मेले में हॉट एयर बलून से लेकर कैमल और हॉर्स राइडिंग का भी मजा लिया जा सकता है।
सावित्री माता मंदिर
पुष्कर का वह स्थान जहां पूरे इलाके का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। ब्रह्मा मंदिर के ठीक पीछे ऊंची पहाड़ी पर स्थित सावित्री देवी के मंदिर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब इस मंदिर तक पहुंचना बेहद कठिन माना जाता था लेकिन राजस्थान पर्यटन ने रोप वे से लेकर सीढ़ियों को सुविधाजनक बनाया ताकि मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सके। यह मंदिर भगवान ब्रह्मा की पत्नी सावित्री के नाम पर बनाया गया है। कहते हैं कि भगवान ब्रह्मा से रूठकर सावित्री देवी पहाड़ी की इन्हीं ऊंचाइयों पर आ गई थीं। इस मंदिर में पहले सावित्री माता के चरण स्थापित थे। बाद में माता की प्रतिमा स्थापित की गई। इस मंदिर की ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से नीचे बने पुष्कर सरोवर से लेकर बाकी मंदिर और रेत के टीलों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। क्षेत्रीय लोगों का दावा है कि जोधपुर के राजा अजीत सिंह के पुरोहित ने प्रतिमा स्थापित कर यहां छोटा सा मंदिर बनवाया था जिसका बाद में विस्तार किया। सावित्री माता बंगाली समाज की महिलाओं के लिए सुहाग की देवी हैं। सावित्री माता मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की अमावस के बाद वाली अष्टमी को मेला लगता है।
पुष्कर का मान, मान महल
पुष्कर में यूं तो आपको बड़ी संख्या में मंदिर देखने को मिलेंगे लेकिन इसके साथ आप खूबसूरत महल का भी नजारा ले सकते हैं। इसे आमेर (जयपुर) के राजा मानसिंह प्रथम ने बनवाया था। यह महल, पवित्र पुष्कर झील के पूर्वी भाग पर स्थित है। इसे राजा मान सिंह के गेस्ट हाउस के रूप में सेवा करने के लिए बनाया गया था, यह पुष्कर के बड़े महलों में से एक है। अब इस महल को एक होटल में बदल दिया गया है। इसे आरटीडीसी होटल सरोवर कहा जाता है। महल अभी भी अपनी पुरानी दुनिया का आकर्षण बरकरार रखे हुए है। महल से झील और आस-पास के क्षेत्रों का शानदार दृश्य देखने को मिलता है।
ऐसे पहुंचें पुष्कर
पुष्कर आप बस से लेकर निजी वाहनों से भी पहुंचे सकते हैं। सड़क सुविधा शानदार है। इसके अलावा 147 किलोमीटर की दूरी पर सांगानेर एयरपोर्ट भी है। वहीं ट्रेन से अलवर रेलवे स्टेशन भी पहुंचा जा सकता है, जहां से पुष्कर महज 14 किलोमीटर की दूरी पर है।पुष्कर महज 14 किलोमीटर की दूरी पर है।
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