क्यों है बंगाल की दुर्गा पूजा पूरे देश से अलग और खास?

अनुषा मिश्रा 23-09-2022 07:37 PM Culture
बंगाल में किसी भी साल को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक - दुर्गा पूजा के पहले का हिस्सा और दूसरा - दुर्गा पूजा के बाद का। जैसे ही साल की पूजा समाप्त होती है, लोग अगले साल की पूजा का इंतज़ार करने लगते हैं। यहां के लोगों के लिए दुर्गा पूजा सिर्फ धार्मिक ही नहीं एक सामाजिक त्योहार भी है। देवी दुर्गा, जिन्हें प्यार से माँ कहा जाता है, एक निश्चित अवधि के लिए घर आती हैं। हर कोई उन्हें देखना चाहता है, उनकी पूजा करना चाहता है और उनके घर आने का जश्न मनाना चाहता है। दुर्गा पूजा के त्योहार की शुरुआत महालय के दिन, देवी के आह्वान के साथ होती है। कुछ ऐसी बातें हैं जो बंगाल की दुर्गा पूजा को बाकी पूरे देश से अलग और खास बनाती हैं। 

देवी की मूर्तियां

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देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाने वाले कारीगरों का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है, जिसे चोक्खू दान कहा जाता है, जिसका अर्थ है, देवी को अपनी आँखें देना। महालय के शुरुआती घंटों में, एक वरिष्ठ कारीगर देवी की आंखें बनाता है, और देवी को आमंत्रित करता है। इसे इस दुनिया में देवी के आने की यात्रा की शुरुआत की तरह देखा जाता है। इसके बाद पूजा स्थल पर मां की मूर्ति की स्थापना होती है। एक बात यह है कि इतनी सुंदर देवी जी की मूर्तियां आपको पूरे देश में और कहीं नहीं मिलेंगी।


कुमारी पूजा 

पूरे त्योहार के दौरान देवी दुर्गा की कई अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है। ऐसा ही एक रूप एक कुमारी का है, जो एक युवा लड़की है और अपने यौवन तक नहीं पहुंची है। इस कन्या की पूजा अष्टमी के दिन पुजारी द्वारा की जाती है। यह सभी दिनों में सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। लोग कुमारी की पूजा करके उसका आशीर्वाद लेते हैं।


ढाकी 

ढाकी या ढोलकिया त्योहार का एक अभिन्न अंग हैं। यह वास्तव में ढोल की आवाज है जो आपको बताती है कि त्योहार शुरू हो गया है। ढोल भी प्रार्थना के जाप के दौरान बजाया जाता है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह त्योहारों की लय सेट करता है। यहां देवी पूजा पर लोक नृत्य भी होता है जिसे धुनुची नच के नाम से जाना जाता है, जो ढोल की आवाज़ के साथ किया जाता है। इन ढोल की आवाज हमेशा देवी के साथ जुड़ी होती है। लोगों के अंदर इसकी आवाज़ से ही भक्ति की भावना बहने लगती है।


बोरोन

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पूजा के आखिरी दिन होने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है बोरोन। इसमें विवाहित महिलाएं देवी जी को मिठाई खिलाती हैं, उन्हें सिंदूर लगाती हैं और अगले साल वापस आने के लिए कहती हैं। देवी को विदाई दी जाती है, जिसके बाद महिलाएं अन्य विवाहित महिलाओं पर लाल सिंदूर लगाकर खेलती हैं। इसे सिंदूर खेला भी कहते हैं। एक और दिलचस्प बात यह है कि बच्चों को एक कागज के टुकड़े पर 101 बार दुर्गा नाम लिखने के लिए कहा जाता है, यह मूर्ति विसर्जन के बाद होता है।


सभी के लिए है त्योहार 

ज्यादातर लोगों के लिए यह साल का सबसे अच्छा समय होता है। नए कपड़े खरीदना इस दौरान एक रस्म है। लेकिन कपड़े केवल अपने लिए नहीं खरीदते हैं, अपने परिवार और प्रियजनों के लिए भी खरीदते हैं। इस दौरान स्कूल और कॉलेज बंद रहते हैं। बहुत सारे कारीगरों, व्यवसाय-मालिकों, मजदूरों और लगभग हर क्षेत्र के लोगों के लिए यह अच्छा पैसा कमाने का समय होता है। 


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