जागेश्वर मंदिर : जहां बसता है विश्वास और इतिहास

देवभूमि उत्तराखंड अपने प्राकृतिक वैभव और आध्यात्मिक आभा के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इस खूबसूरत से राज्य में सिर्फ हरियाली और पहाड़ ही नहीं कई अविश्वसनीय मंदिर भी हैं जो दुनिया भर से यात्रियों और भक्तों को आकर्षित करते हैं। उत्तराखंड कई प्राचीन मंदिरों का घर है जो किंवदंतियों और लोककथाओं को दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है जागेश्वर मंदिर। कुमाऊं की सुंदर पहाड़ियों में स्थित, परमात्मा का यह पौराणिक निवास अपनी मनोरम वास्तुकला और किंवदंतियों से भक्तों को आकर्षित करता है। इन किंवदंतियों ने भक्तों और इतिहास प्रेमियों सभी के दिलों में अपनी जगह बना ली है।
आज हम बात कर रहे हैं जागेश्वर मंदिर की। यह मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में है और भगवान शिव को समर्पित है।
इस मंदिर परिसर में 100 से अधिक प्राचीन पत्थर के मंदिरों का एक समूह है जो 9वीं और 13वीं शताब्दी के बीच के हैं। कुछ तो इससे भी अधिक उम्र के हैं! आप मंदिर परिसर में नक्काशी देखकर हैरान हो जाएंगे, जिससे बीते दौर की अद्भुत शिल्पकला का पता चलता है।
लोक कथाएं
एक स्थानीय लोककथा है जिसके अनुसार भगवान शिव ने स्वयं उसी स्थान पर तांडव (विनाश का नृत्य) किया था जहां आज जागेश्वर मंदिर है। यह नृत्य दंडक नामक राक्षस को नष्ट करने के लिए किया गया था, जिसने क्षेत्र में कहर बरपाया था। लोगों को उससे बचाने के लिए, भगवान शिव ने नृत्य किया, उसे मार डाला और क्षेत्र में शांति स्थापित की। एक और किंवदंती है जो हिंदू महाकाव्य महाभारत से पांडवों के बारे में है। ऐसा माना जाता है कि अपने निर्वासन के दौरान, पांडवों ने भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में दर्शन किये थे। यहां एक चार मंदिरों का एक समूह है जिन्हें पांडव मंदिर कहा जाता है। हर मंदिर धर्मेश्वर, केदारेश्वर, भीमेश्वर और जागेश्वर को समर्पित है, जो क्रमशः युधिष्ठिर, केदारनाथ, भीम और शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह मंदिर नागर-वास्तुकला शैली का एक सुंदर उदाहरण है। जटिल नक्काशी, सुंदर दरवाजे और खूबसूरती से गढ़ी गई मूर्तियाँ आपको आश्चर्यचकित कर देंगी। परिसर के अंदर प्राचीन शिलालेख और मूर्तियां हैं, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं के बारे में बताती हैं।
कब बना था मंदिर

जागेश्वर मंदिरों का समूह कब बना था इसकी कोई तारिख इतिहास में दर्ज नहीं है लेकिन एएसआई के मुताबिक, ये गुप्तोत्तर और पूर्व-मध्यकालीन युग का मंदिर है और लगभग 2500 वर्ष पुराना होने का अनुमान है। ये मंदिर 8वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी की अवधि के बीच बने माने जाते हैं। कत्यूरी राजा शालिवाहनदेव के शासनकाल में मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। मुख्य मंदिर परिसर में मल्ल राजाओं का एक शिलालेख है जो जागेश्वर के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाता है। कत्यूरी राजाओं ने इसके रख-रखाव के लिए मंदिर के पुजारियों को गांव भी दान में दिये। कुमाऊं के चंद राजा भी जागेश्वर मंदिर के संरक्षक थे। जागेश्वर मंदिरों की दीवारों और स्तंभों पर विभिन्न काल के 25 से अधिक शिलालेख अंकित हैं। इनमें से ज़्यादातर 7वीं शताब्दी ई। से 10वीं शताब्दी ई। के बीच के काल के हैं। शिलालेखों की बोली संस्कृत और ब्राह्मी है।
कब जाएं
आप साल के किसी भी महीने में जागेश्वर जा सकते हैं। यहां गर्मियां भी ठंडी होती हैं और सर्दियों में कम होती है।
कहां ठहरें
जागेश्वर में ठहरने के बहुत सारे विकल्प नहीं हैं क्योंकि इस जगह ने हाल ही में पर्यटकों को आकर्षित करना शुरू किया है। जागेश्वर में कुछ बजट गेस्टहाउस हैं। अल्मोड़ा जागेश्वर से केवल 35 किमी दूर है, तो लोग आमतौर पर अल्मोड़ा में ही रुकते हैं और एक दिन के लिए जागेश्वर जाते हैं। अल्मोड़ा में शानदार होटल और रिसॉर्ट से लेकर गेस्टहाउस और लॉज तक रुकने के लिए हर ऑप्शन मिलेगा।
कितना होगा खर्चा
अगर आप दिल्ली से जागेश्वर जा रहे हैं तो आप लगभग 20,000 रुपये में आराम से यहां घूम कर वापस आ सकते हैं। जागेश्वर में एटीएम या पेट्रोल पंप ढूंढना मुश्किल हो सकता है। इसलिए अल्मोड़ा से ये सरे इंतज़ाम करके ही आगे बढ़ें।
कैसे पहुंचें?

150 किलोमीटर की दूरी पर पंतनगर हवाई अड्डा जागेश्वर का नज़दीकी हवाई अड्डा है। काठगोदाम निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहाँ से आप बस से जागेश्वर रक् जा सकते हैं। सड़क मार्ग से जागेश्वर तक पहुंचने के लिए बसें, निजी और शेयरिंग जीप और टैक्सी मिल जाती हैं।
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