कश्मीर के 5 हैंडीक्राफ्ट्स बढ़ाएंगे आपकी शान

क्रुवेल एम्ब्रॉयडरी

यह एक तरह का निडल वर्क होता है जिसमें चेन स्टिच की तरह कढ़ाई होती है। इसमें एक क्रुवेल (एक नुकीले हुक) की मदद से महीन ऊन से बने धागों से कढ़ाई की जाती है। पहले रेशम और कपास के कपड़ों पर ही विशेष रूप से यह एम्ब्रॉयडरी होती थी लेकिन अब कलाकारों ने रेशम, मखमल, लिनन और यहां तक कि जूट सहित कई तरह के कपड़ों पर काम करना सीख लिया है। क्रूवेल के कपड़े आमतौर पर साज-सामान या असबाब बनाने के लिए काम में लाए जाते हैं। इस पर फूल, पत्ती और बेल जैसे पैटर्न ही सबसे ज़्यादा बनते हैं। आमतौर पर यहां क्रुवेल एम्ब्रॉयडरी के पर्दे, बेड स्प्रेड, कुशन, पिलो कवर, थ्रो आदि मिल जाते हैं।
सोज़ानी कढ़ाई
कश्मीर से सोज़ानी कढ़ाई की चीजें लाना भी न भूलियेगा। इसे कश्मीरी सोज़ानी शिल्प के नाम से जानते हैं। कहते हैं कि इस कढ़ाई की जड़ें फ़ारसी हैं। जो लोग ये कढ़ाई करते हैं उन्हें सोंज़कर कहा जाता है। इस कढ़ाई में बूटी, फूल और मुड़ी हुई नोक वाले बादाम जैसी आकृतियां काढ़ी जाती हैं। हालाँकि, जिओमेट्रिकल पैटर्न के साथ-साथ घाटियों के पेड़ पौधे और जानवर आदि की डिजाइन भी सोंज़कर बनाते हैं। बेहतरीन सोज़ानी कढ़ाई में महीनों लग सकते हैं और आमतौर पर रेशम और शुद्ध पश्मीना आदि पर ये कढ़ाई होती है। अगर आप कश्मीर घूमने गए हैं तो जहां इस कढ़ाई के लिए छपाई होती है वहां पैटर्न बनाने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले पारंपरिक लकड़ी के ब्लॉकों को ज़रूर देखें।
पश्मीना
पश्मीना नाम एक फारसी शब्द “पश्म” से लिया गया है, जिसका मतलब है एक खास तरीके से ऊन की बुनाई। पश्मीना बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऊन हिमालय के अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पायी जाने वाली कश्मीरी बकरी की एक विशेष नस्ल से मिलती है। कश्मीर के 15 वीं शताब्दी के शासक, जैन-उल-आबदीन को कश्मीर में ऊन उद्योग का संस्थापक कहा जाता है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पश्मीना शॉल बन रही हैं और आज भी इसके चाहने वालों में कोई कमी नहीं आयी है। एक वक्त था जब सिर्फ राजा और रानी ही पश्मीना पहनते थे क्योंकि तब इसे शाही दर्जा मिला था। आज भी पश्मीना पहनना शान ही समझा जाता है। एक अच्छी पश्मीना शॉल की कताई, बुनाई और कढ़ाई बनाने के लिए एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। एक शुद्ध पाश्मिना शॉल की लागत 7000-12000 रुपये है।
वॉलनट वुड कार्विंग
अखरोट मूलतः कश्मीर की ही पैदावार मानी जाती है। शायद इसीलिए कश्मीर में अखरोट खाने के साथ इसकी लकड़ी का भी इस्तेमाल तरह-तरह के हैंडीक्राफ्ट्स बनाने में किया जाता है। अखरोट की लकड़ी पर कार्विंग करके यहां कई तरह के सुंदर प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं। यहां से आप इसके बने हैंडीक्राफ्ट्स अपने घर ले जाकर होम डेकॉर में इस्तेमाल कर सकते हैं। कश्मीर में तो अखरोट की लकड़ी के कैबिनेट, फोल्डिंग स्क्रीन, बीएड और डाइनिंग टेबल जैसे फर्नीचर भी बनते हैं लेकिन उन्हें तो आप इतनी दूर से ला नहीं सकते। लेकिन ट्रे, कैंडल स्टैंड, जूलरी वगैरह तो आसानी से ला सकते हैं।
हाथ से बुनी कालीन
विवाह फ़िल्म के भगत जी की भाषा में कहें तो कश्मीर की हाथ से बुनी हुई कालीनें वर्ल्ड फेमस हैं। कश्मीर में इन्हें गलीचा कहा जाता है। श्रीनगर, बडगाम और गांदरबल में मध्यकाल से ये कालीनें बनाने का काम हो रहा है। हालांकि पूरे राज्य में ये कालीन बनाने का काम होता है। रेशम, कपास, ऊन आदि कई तरह के धागों का इस्तेमाल इन कालीनों को बुनने में किया जाता है। कई महीनों की मेहनत के बाद एक कालीन बनकर तैयार होता है, इसीलिए इसकी कीमत भी काफी ज्यादा होती है। अगर आपको ऑथेंटिक हैंडीक्राफ्ट्स इकट्ठा करने का शौक गया तो ये कालीन आपके कलेक्शन में चार चांद लगा सकते हैं।
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