टुकड़े होकर फिर जुड़ जाता है इस मंदिर का शिवलिंग, अद्भुत है कहानी

अनुषा मिश्रा 14-09-2022 04:27 PM Culture

हिमाचल प्रदेश कुदरती खूबसूरती, समृद्ध संस्कृति, सुंदर घरों से लेकर प्राचीन परंपराओं तक कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है। जो पर्यटक एक बार यहां एक बार उसका मन यहीं रह जाता है। हिमाचल की सुंदरता और यहां आने वाली भीड़ के किस्से आपने खूब सुने होंगे लेकिन आज हम आपको कुल्लू जिले के एक अनोखे और रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसकी धार्मिक मान्यता बहुत ज़्यादा है। यह मंदिर बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर कुल्लू घाटी के सुंदर गांव काशवरी में है। 2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बना यह मंदिर शिव जी को समर्पित है। इसे भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में भी गिना जाता है। तो चलिए हम बताते हैं आपको कि क्या बात इस मंदिर को इतना अनोखा और खास बनाती है?


शिवलिंग से टकराती है बिजली

कहते हैं कि मंदिर के अंदर स्थित शिव लिंग हर 12 साल में रहस्यमय तरीके से बिजली के बोल्ट से टकराता है। इस रहस्य को अभी तक कोई नहीं सुलझा पाया है! बिजली गिरने के कारण शिव लिंग के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। माना जाता है कि मंदिर के पुजारी सभी टुकड़ों को इकट्ठा करते हैं और अनाज व दाल के आटे और अनसाल्टेड मक्खन से बने पेस्ट का उपयोग करके उन सभी टुकड़ों को एक साथ जोड़ते हैं। कुछ महीनों के बाद शिवलिंग पहले जैसा हो जाता है।


स्थानीय मान्यता 

स्थानीय लोगों के अनुसार, बिजली शिवलिंग पर इसलिए टकराती है क्योंकि शिव जी क्षेत्र के लोगों को किसी भी बुराई से बचाना चाहते हैं। कुछ लोगों का मानना ​​​​है कि बिजली एक दिव्य आशीर्वाद है जिसमें विशेष शक्तियां होती हैं। यह भी माना जाता है कि मंदिर में बना लकड़ी का खंभा जो 60 फीट ऊंचा है वह स्थानीय लोगों को बचाने के लिए बिजली के बोल्ट को आकर्षित करता है।


यह है कथा

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किंवदंती है कि एक बार कुल्लू की घाटी में कुलंत नाम का एक राक्षस रहता था। एक दिन, वह एक विशाल सांप में बदल गया और पूरे गांव में बाढ़ के बुरे इरादे से लाहौल-स्पीति के मथन गांव पहुंचा। ऐसा करने के लिए, उसने ब्यास नदी के प्रवाह को इस तरह से बाधित किया कि इससे गाँव में बाढ़ आ जाए। भगवान शिव राक्षस को देख रहे थे, और वह तुरंत कुलंत के पास पहुंचे। उन्होंने उससे कहा कि उसकी पूंछ में आग लगी है। महादेव की बात को सुनकर दैत्य ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो शिवजी ने त्रिशुल से कुलंत के सिर पर वार किया और वह वहीं मर गया। कहा जाता है कि दैत्य का विशालकाय शरीर पहाड़ में तब्दील हो गया, जिसे आज हम कुल्लू के पहाड़ कहते हैं।


कैसे पहुंचें मंदिर ? 

मंदिर कुल्लू से लगभग 20 किमी दूर है। यहां तक ​​3 किमी के ट्रेक के बाद पहुंचा जा सकता है। यह ट्रेक बहुत सुंदर है। घाटियों और नदियों के कुछ आश्चर्यजनक मनोरम दृश्यों का आनंद यहां से लिया जा सकता है।


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