खूबसूरती का खजाना हैं हिमाचल के ये गांव

अनुषा मिश्रा 09-04-2022 02:07 PM Travel To States

पहाड़ों पर घूमना हो तो हिमाचल प्रदेश लोवों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर आता है। हिमाचल प्रदेश का नाम आते ही सबको कुल्लू और मनाली की याद आ जाती है। अक्सर लोग शिमला, कुल्लू और मनाली घूमने के बारे में सोचते हैं। टूर एंड ट्रैवल एजेंट्स भी आपको कुल्लू, मनाली, शिमला, रोहतांग जैसे शहरों के शानदार पैकेज भी देते हैं, लेकिन अगर आप भीड़ से बचकर हिमाचल प्रदेश की वादियों का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको यहां के गांवों की तरफ रुख करना होगा। हिमाचल प्रदेश के गांवों में आने के बाद कुल्लू, मनाली और शिमला जरूर भूल जाएंगे।


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। बापूजी का यह कथन हिमाचल प्रदेश के गांवों पर बिल्कुल ही सटीक बैठता है। प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब हिमाचल प्रदेश में जहां कई मं‍दिर हैं, वहीं ऐसे बौद्ध मठ भी हैं, जो अपनी बेहतरीन कला शैली की वजह से सभी को अपनी ओर आकर्षि‍त करते हैं। हर सुविधाओं से युक्त हिमाचल प्रदेश के गांवों में अगर आप एक बार आ गए, तो आपका हर बारे जाने का मन करेगा। बादलों के बीच बसे खूबसूरत गांवों में आने के बाद आपको यहां का शांत वातारण और प्राकृतिक सुंदरता जरूर मोह लेगी। यहां के खूबसूरत गांवों में चाहे चितकुल गांव हो या फिर लांगजा गांव। यहां हर तरफ फैली हरियाली आपका दिल जीत लेगी।


चितकुल

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भारत की सीमा पर बसे गांवों में जाकर अगर आप कुछ रातें गुजराना चाहते हैं और वह भी बिना किसी तनाव के तो आपका इंतजार चितकुल गांव कर रहा है। हिमाचल प्रदेश की किन्नौर डिस्ट्रिक्ट में मौजूद चितकुल गांव बहुत खास है। प्रकृति की गोद में बसा चितकुल गांव किसी स्वर्ग से कम नहीं है। भारत-चीन बॉर्डर पर बसा यह गांव बसपा नदी से ढके हुए पहाड़ पर बसा है। हिमालय के सबसे सुंदर स्थलों में से एक चितकुल गांव में पर्वतों का नजारा सच में देखने लायक होता है। यहां पर पहाड़ की खूबसूरती ही देखते बनती है। चितकुल के पीछे की और से आपको किन्नर कैलाश पर्वत साफ दिखाई देता है। इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां पर आपका फोन नहीं चलेगा और न ही इंटरनेट चलेगा। ऐसे में आप शांति से यहां कुछ दिन प्रकृति का मजा उठा सकते है। यहां पर आप बिना किसी परेशानी के आनंद ले सकते हैं। 

इस गांव में हमेशा ही ठंडक रहती है इसलिए अगर आप यहां जाने का प्लान कर रहे हैं तो फिर आप गर्म कपड़े रख लें। चितकुल में बहुत से बौद्ध मंदिर मिलेंगे, लेकिन एकलौता देवी का मंदिर यहां के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यहां के घर बहुत ही खूबसूरत हैं और यहां होटल, लॉज से लेकर होम स्टे तक की सारी सुविधाएं आपको मिल जाएंगी। चितकुल में ही 'हिन्दुस्तान का आखिरी ढाबा' भी बसा है। दरअसल, ये उस ढाबे का नाम है जो चितकुल में मौजूद है। ऐसे में यह एक तरह का स्थानीय आकर्षण भी रहता है। अगर आप फोटोग्राफी का शौक रखते हैं तो फिर आपके लिए यह स्थान बहुत ही खूबसूरत स्थान हो सकता है। 


कैसे पहुंचें चितकुल-

अगर आप चितकुल गांव जाने का प्लान करते हैं तो फिर आप दिल्ली से बहुत ही आसानी से जा सकते हैं। दिल्ली से चितकुल की दूरी करीब 569 किलोमीटर है। हिमाचल प्रदेश के सांग्ला से करीब 28 किलोमीटर दूरी पर है। सांग्ला से चितकुल के लिए हिमाचल टूरिज्म की बस उपलब्ध रहती है। 


लांगजा गांव

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स्पीति घाटी का नाम आते ही मन में अलग सी तस्वीर बनने लगती है। यहां की खूबसूरती का बखान करते हुए ब्रिटिश लेखक और कवि रुडयार्ड किपलिंग ने लिखा ‘स्‍पीति संसार के अंदर की एक दुनिया और एक ऐसा स्‍थान है जहां खुद देवता वास करते हैं’। वास्तव में कुछ ऐसा ही आपको यहां पर देखने को मिलता है। रंग-बिरंगे बौद्ध प्रार्थना के झंडों से लेकर हवा की सरसराहट यहां की संस्‍कृति को बयां करती है। स्पीति वैली का एक छोटा सा गांव है लांगजा। इस गांव की सबसे खास बात यह है कि यहां पर आपको बुद्ध की 1,000 साल पुरानी प्रतिमा देखने को मिल जाएगी। यहां की बुद्ध प्रतिमा सोने की है। इस प्रतिमा को देखने के लिए बहुत ही दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां पर आपको कई मॉनेस्ट्री देखने को मिल जाएंगी। इसके अलावा अगर आप जियोलॉजी में इंट्रेस्ट रखते हैं तब भी आपको इस गांव में बहुत कुछ देखने को मिल जाएगा। वाइल्ड लाइफ में दिलचस्पी है तो फिर स्नो लेपर्ड, तिब्बतियन भेड़िया और कई तरह की विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी प्रजातियां भी आपको यहां पर देखने को मिल जाएगी। 


कैसे पहुंचें लांगजा-

लांगजा गांव आने के लिए आपको दिल्ली से सीधे मनाली या फिर काजा आना होगा। इसके बाद आप यहां से प्राइवेट कैब के जरिए लांगजा पहुंच सकते हैं। ये गांव दिल्ली ये 745 किलोमीटर की दूरी पर बसा है।

कोमिक गांव

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सुकून और कुदरती खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको दुनिया के सबसे ऊंचे गांव में जाना होगा। हिमाचल के स्पीति घाटी में बसा कोमिक गांव दुनिया के सबसे ऊंचाई पर बसे गांवों में से एक है। हिमालय की ऊंची चोटी पर बसे इस गांव में मोटरेबल रोड भी है। यहां पर आप बहुत ही आराम के साथ में फोर व्हीलर, टू व्हीलर से भी जा सकते हैं। यह गांव समुद्र तल से 15,050 फीट की ऊंचाई पर बसा है। कोमिक हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले की लंगजा पंचायत का सबसे ऊंचा गांव है। हालांकि, कोमिक और यहां का किब्बर दोनों ही गांव सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़े हैं। स्पीति घाटी पर बसे इस गांव में छह महीने तक तापमान शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। इस गांव में कई त्योहार भी मनाए जाते हैं। यही नहीं यहां पर आकर आप कई स्थानीय त्योहारों का मजा भी ले सकते हैं। अगर आप ट्रैकिंग का शौक रखते हैं तो इस गांव आ सकते हैं। यहां पर बेहतर तरीके से ट्रैकिंग की सुविधा उपलब्ध है।

कैसे पहुंचें कोमिक-

अगर आप दुनिया के सबसे ऊंचे गांव जाना चाहते हैं तो फिर आपको पहले काजा जाना होगा। काजा से आप प्राइवेट टैक्सी करके कोमिक गांव तक जा सकते हैं। अगर आप यहां पहली बार जाने का प्लान बना रहे हैं तो फिर आपको मौसम को ध्यान में रखकर जाना होगा। इस गांव में मौसम कभी भी खराब हो सकता है इसलिए पूरी तरह से तैयारी करने के बाद ही जाएं। साथ ही साथ, अगर आप पहली बार जा रही हैं और सांस की समस्या है तो पहले डॉक्टर से सलाह ले लें क्योंकि यहां कई बार ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है।

मलाणा गांव

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हो सकता है मलाणा गांव का नाम आपने पहले भी सुना हो। अक्सर हिमाचल प्रदेश में कसोल को तो टूरिस्ट लिस्ट में रखा जाता है, लेकिन मलाणा को लोग दरकिनार कर देते हैं। हिमालय की गोद में बसे कुल्लू का नाम आते ही सबके मन में यहां की खूबसूरत तस्वीर बनने लगती है। यहां पर चारों तरफ सफेद चादर सी फैली बर्फ, खूबसूरत पहाड़, चीड़ और देवदार के खूबसूरत पेड़ों की याद आने लगती है। हिमालय की इसी खूबसूरत वादियों के बीच में बसा है ‘मलाणा गांव’। भारत का यह खूबसूरत गांव इसलिए विख्यात है कि इस गांव का अपना नियम-कानून है। यहां पर भारत के 'कानून का राज' नहीं चलता है। मलाणा गांव बहुत ही खूबसूरत है और इसकी खासियत है यहां के लोग और यहां के रीति रिवाज। मलाणा को हिमाचल का ग्रीस भी कहा जाता है। यहां के लोग अपने रीति-रिवाजों को लेकर बहुत ही स्ट्रिक्ट हैं और यहां बच्चे भी इन्हें फॉलो करते दिख जाएंगे। इस गांव में कई प्राचीन मंदिर हैं। यहां बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसका नामक है जामलू मंदिर। इस मंदिर को काठकुनी स्टाइल में लकड़ी पर नक्काशी कर बनाया गया है और यहां हिरण के सिर का इस्तेमाल भी हुआ है। इसके अलावा, यहां पर एक रुकमणी मंदिर भी है। भारत का यह एक ऐसा इकलौता गांव है जहां मुगल सम्राट की पूजा होती है। अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध यह गांव हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी तरफ आर्कषित करता है। यहां पर आने वाले पर्यटकों को गांव के बाहर टेंट में ही रुकवाया जाता है। आइये आपको बताते हैं भारत के इस खूबसूरत गांव मलाणा के बारे में। 


कैसे पहुंचें मलाना-

अगर आप दिल्ली से मलाणा जाने का प्लान करते हैं तो फिर आपको पहले भुंटार जाना होगा। इसके बाद आप कसोल के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। कसोल के रास्ते में जारी नाम की एक जगह आएगी वहीं से मलाणा के लिए टैक्सी ली जा सकती है। इसके अलावा आप दिल्ली से मनाली तक बस भी ले सकते हैं। वहां से प्राइवेट टैक्सी कर सीधे मलाणा पहुंच सकते हैं।


किब्बर गांव

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हिमाचल प्रदेश में गांवों की बात हो और किब्बर गांव का नाम न तो कुछ अधूरा-अधूरा सा लगता है। ये गांव प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यहां की अनूठी संस्कृति और परंपरा आपके दिल को छू लेगी। यहां बने बौद्ध मठों के बीच आप ऐसा महसूस करेंगे मानो किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों। किब्बर की घाटियों में कभी फिसलती धूप तो कभी बादलों की अठखेलियां आपको टूर का मजा दो गुना कर सकती है। यहां पर बर्फ इतनी अधिक गिरती है कि कई जगह तो मोटी-मोटी तहें जम जाती हैं। ज्यादा बर्फबारी होने की वजह से कुछ समय के लिए पूरी तरह से यह गांव दुनिया से कट जाता है। इस गांव में तकरीबन 100 घर हैं, इनमें 77 परिवार रहते हैं। यहां पर सभी के घर पत्थर और ईंट से बने हुए हैं। सभी घर सफेद रंग के होते हैं। यही नहीं, इस गांव के लोग नाच-गानों के भी बहुत शौकीन हैं। यहां के लोकनृत्यों का अनूठा ही आकर्षण है। यहां की युवतियां जब अपने अनूठे परिधान में नृत्यरत होती हैं तो नृत्य देखने वाला मंत्रमुग्ध हो उठता है। दक्कांग मेला यहां का मुख्य उत्सव है जिसमें किब्बर के लोकनृत्यों के साथ-साथ यहां की अनूठी संस्कृति से भी साक्षात्कार किया जा सकता है।

कैसे पहुंचें 

दिल्ली से तकरीबन 730 किलोमीटर दूर किब्बर जाने के लिए काजा पहुंचना होगा। काजा से ही आप टैक्सी के जरिए पहुंच सकते हैं। समुद्र तल से 4850 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में बसा है एक छोटा सा किब्बर गांव। स्पीति नदी के दांई और बसा हुआ है लोसर गांव ये स्पीति घाटी का पहला गांव है। स्पीति उपमंडल के मुख्यालय से किब्बर गांव महज 20 किलोमीटर दूर है। यहां रास्ते में जगह-जगह बर्फ की चादर जमी मिलेगी। यहां पर कई बौद्ध मठ बने हुए हैं। किब्बर गांव में बनी मॉनेस्ट्री सबसे अधिक ऊंचाई पर बनी हुई है।


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