जुलाई में बारिश के साथ लें देशभर के इन फेस्टिवल्स का मज़ा

बेधिनखलम महोत्सव
अगर आप पूर्वोत्तर भारत घूमने जाने का प्लान कर रहे हैं तो फिर मॉनसून के इस मौसम में जा सकते हैं। जुलाई महीने में ही मेघालय में "बेधिनखलम महोत्सव" मनाया जाता है। बेधिनखलम एक पारंपरिक उत्सव है, जो मेघालय की पारन जनजाति की तरफ से आयोजित किया जाता है। यह पर्व कृषि बुआई खत्म होने के ठीक बाद मनाया जाता है। यह उत्सव इस बार 8 जुलाई से मनाया जा रहा है और तीन दिनों तक चलेगा। इस दौरान यहां पर रथों और पेड़ों की टहनियों का जुलूस भी निकाला जाता है। इस जुलूस की रंगत देखते ही बनती है। इस खास मौके पर लोगों के बीच आपस में फुटबॉल मैच भी खेला जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी फुटबाॅल मैच का विजेता रहेगा, उस टीम की फसल अच्छी होती है।
ड्री महोत्सव
पूर्वोत्तर भारत की जीरो घाटी पर जाकर आप मस्ती करना चाहते हैं, तो फिर आपका इंतजार "ड्री महोत्सव" कर रहा है। पूर्वोत्तर भारत के हिमालय क्षेत्र में अपातानी जनजाति का खास फेस्टिवल है। यह फसलों की रक्षा करने वाले देवताओं को बलिदान देने के लिए और प्रार्थना करने के लिए मनाया जाता है। 5 जुलाई को मनाए जाने वाले इस खास त्यौहार के मौके पर लोकगीत, पारंपरिक नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। फेस्टिवल में होने वाला 'मिस्टर ड्री' कॉम्पिटिशन बहुत ही खास होता है, जिसमें पुरुष अपने बल, बुद्धि और व्यक्तित्व का प्रदर्शन करते हैं। जीरो घाटी अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबंसरी जिले मेंबसी है। जीरो घाटी दुनिया के कुछ उन मुट्ठीभर ठिकानों में से एक है, जहां आज भी प्रकृति और परंपराओं की जुगलबंदी कायम है।
चंपाकुलम बोट रेस
केरल का नाम आते ही हर किसी के मन में वहां के खूबसूरत नजारों की तस्वीर सामने आ जाती है। अगर अलेप्पी का नाम आ जाए, तो फिर क्या कहना। अगर आप मॉनसून का मजा लेने के लिए अलेप्पी आना चाहते हैं तो फिर आपका इंतजार "चंपाकुलम बोट रेस" कर रही है। यह केरल की सबसे पुराना स्नेक बोट रेस है। यह रेसिंग सीजन की पहली नाव रेस भी है। इस दौरान नावों को अच्छी तरह से रंगीन छतरियों से सजाया जाता है और नावों को रेस में उतारा जाता है। केरल बैकवॉटर्स के बीच यह रोमांचक उत्सव इस बार कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए आयोजित किया जा रहा है। इस उत्सव की इतनी प्रसिद्धी है कि इसे देखने के लिए देश और विदेश से सैलानियों की भीड़ उमड़ती है।

बोनालू उत्सव
तेलंगाना के खास उत्सवों में शामिल है "बोनालु उत्सव"। 200 साल पुराना "बोनालू उत्सव" मातृ देवी और शक्ति (महिला ऊर्जा) का उत्सव है। इस पर्व पर देवी महाकाली की पूजा की जाती है। इस पर्व पर अनुष्ठान आषाढ़ महीने के हर रविवार को होता हैं। बोनालु उत्सव में महिलाएं अपने सिर पर मिट्टी के कलश रखती हैं, जो देवी को चढ़ने वाले प्रसाद से भरे होते हैं। इस उत्सव पर नृत्य प्रदर्शन किया जाता है और बड़ी दावतों का आयोजन भी किया जाता है, जिसको देखने के लिए पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं। बोनालू मतलब होता है प्रसाद। इस पर्व पर नए बर्तन में चावल, दूध और गुड़ को मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है और बर्तन को नीम की पत्तियों और हल्दी से सजाया जाता है। प्रसाद के साथ सिंदूर, चूड़ी और साड़ी रखकर इस बर्तन को औरतें सिर पर रखकर मंदिर तक ले जाती हैं और भगवान को चढ़ाती हैं।
फियांग ट्रूप महोत्सव
लद्दाख एक ऐसी जगह है जहां भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच आंतरिक शांति मिलती है। लद्दाख की वादियों में अगर आप जाना चाहे रहे हैं तो फिर आपका इंतजार यहां का खास फेस्टिवल "फियांग ट्रूप" कर रहा है। इस खास फेस्टिवल को फियांग मोनास्ट्री में मनाया जाता है। 18 जुलाई को मनाए जा रहे "फियांग ट्रूप महोत्सव" में आप लामाओं को खूबसूरत अट्टालिकाओं में देख सकते हैं। इस फेस्टिवल के वक्त यह खूबसूरत जगह और भी कलरफुल हो जाती है। फियांग ट्रूप महोत्सव में भिक्षु जीवंत रेशम की पोशाक पहनते हैं और प्रदर्शन करने के साथ ही साथ देवता की भी पूजा करते हैं। फियांग ट्रूप महोत्सव की सबसे आकर्षक चीज यह होती है कि लामाओं की तरफ से विभिन्न मुखौटे पहने लोग और कलाकृतियाँ करते हैं, जो बुद्ध की शिक्षाओं को चित्रित करती हैं। अगर आप जुलाई के महीने में लद्दाख की यात्रा पर जा रहे है तो इस उत्सव में जरूर भाग लेना चाहिए।
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