दुनिया का इकलौता सिर्फ महिलाओं वाला बाज़ार, इसमें काफी कुछ है ख़ास
कैसे हुआ शुरू
1533 ईस्वी में, मणिपुर राज्य में लल्लूप-काबा नामक एक जबरन श्रम प्रणाली लागू हुई। इसमें मैथेई समुदाय के सभी पुरुष सेना में सेवा करने के लिए बाध्य किये गए। जब सारे पुरुष सेना में चले गए तब महिलाएं खेतों और अन्य जगहों पर जाकर काम करने लगे जहां परंपरागत रूप से पुरुष ही आजीविका के साधन जुटाने जाते थे। तब महिलाओं ने खेती करना, कपड़ा बुनना और उत्पाद बेचना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे अधिक महिलाएं बाहर में शामिल हुईं, बाजार स्थापित हो गया। तभी से महिलाएं इस बाजार को चल रही हैं।
इमा कीथेल की महिलाओं का जज़्बा
हालाँकि, चीजें हमेशा एक जैसी नहीं रहीं। 1891 में, मणिपुर राज्य में अंग्रेजों ने कुछ नए नियम बनाए जोन्होने बाजार और इसे चलाने वाली महिलाओं को प्रभावित किया। इन नए नियमों ने समान बेचने वालों और किसानों का बहुत नुकसान किया। उस वक़्त समान बाहर से लाने पर जोर डियक गया और घरेलू सामान पर रोक लग गई। महिलाओं को इससे काफी नुकसान हुआ। इन नियमों के खिलाफ उन्होंने प्रतिरोध करने की ठान ली। उनके प्रतिरोध ने अंततः उन्हें एक जगह दिलाई जिसे उन्होंने बनाया था और अपने लिए बनाया था।
स्वतंत्रता के बाद, बाजार एक बड़ा कॉमर्शियल पॉइंट बन गया। इसने सामाजिक-राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र के रूप में प्रमुखता हासिल की। 2010 में, बाजार को इम्फाल नगर निगम के बनाए गए खवैरबंद बाजार परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया था। 2016 के इंफाल भूकंप में यह परिसर क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसने लगभग 800 विक्रेताओं की आजीविका को प्रभावित किया था।
कहां है बाज़ार
इमा कीथेल इंफाल के बीच में पुराना बाजार की साइट पर पुनर्निर्मित खवैरबंद बाजार परिसर में है। यह कांगला किले के पश्चिम में और थंगल बाजार इलाके में बीर टिकेंद्रजीत रोड पर पड़ती है। परिसर में शिवालय शैली की छतों वाली तीन बड़ी इमारतें हैं। बाजार सड़क के दोनों ओर दो हिस्सों में बंटी हुई है। दो इमारतें में रोड के उत्तर में और एक दक्षिण में है। इमारतों को टेक्सटाइल हाउसिंग सेक्शन और घरेलू ग्रोसरी सेक्शन में बांटा गया है।
बाजार के मुख्य भवनों में स्टॉल लगाने के लिए नगर निगम हर साल फीस भी लेता है। 2010 में निर्माण के समय 16 वर्ग फुट (1.5 एम2) स्टाल का शुल्क 140,000 रुपये प्रति वर्ष था। स्टॉल वाले विक्रेताओं को एक लाइसेंस लेना होता है। बाजार में हर दिन लगभग 5000-6000 महिला विक्रेता रहती हैं। 2017 तक, बाजार में विक्रेता 73,000 रुपये से 200,000 रुपये के बीच हर साल कमा रहे थे। बाजार का सालाना कारोबार 40-50 करोड़ रुपये के बीच होने का अनुमान लगाया गया था।
बाज़ार में क्या मिलता है?
एशिया के इस सबसे बड़े महिला बाजार में ज़रूरत का लगभग हर सामान मिलता है। यह बाजार न केवल सब्जियां, मांस, मसाले जैसी हर चीज़ बेचता है जो मणिपुर की हर रसोई में पाई जाती है। इसके अलावा, यहां आपको हस्तशिल्प, कपड़ों से लेकर खिलौने, बर्तन और घर के सामान तक सब कुछ मिल जाएगा। इनकी सबसे अच्छी बात यह है कि इनमें से ज्यादातर सामान को महिलाएं अपने हाथ से बनाती हैं।
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