लाल किला: फैक्ट्स जो आपको चौंका देंगे

अनुषा मिश्रा 02-08-2025 05:57 PM My India
दिल्ली का लाल किला भारत के गौरवशाली इतिहास का एक बुलंदी से खड़ा प्रमाण है। इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं सदी में बनवाया था और यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की लिस्ट में भी शामिल है। इस किले की लाल बलुआ पत्थरों की दीवारें वास्तुशिल्प की शान हैं और भारत की आजादी की कहानी से भी जुड़ी हैं। पुरानी दिल्ली में चांदनी चौक के पास बना लाल किला फारसी, तैमूरी और भारतीय स्टाइल का अनोखा मेल दिखाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह किला पहले सफेद था? आज हम आपको इस ऐतिहासिक जगह के कुछ अनसुने और रोचक फैक्ट्स बताएंगे जो आपको हैरान कर देंगे। अगली बार जब आप यहां आएं तो इसे नई नजर से देखने को तैयार रहें। 

बनने की शुरुआत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

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लाल किले का निर्माण 1638 में शुरू हुआ जो इस्लामी कैलेंडर के मुहर्रम महीने में था, जब शाहजहां सत्ता में थे। इस भव्य किले को बनाने में करीब दस साल लगे। इसके चारों तरफ शाहजहांनाबाद शहर बसाया गया। शाहजहां ने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली शिफ्ट करने का फैसला किया जिसके लिए इस किले को बनवाया गया। किले की नींव रखने से पहले सावधानी से प्लानिंग की गई, जिसमें सैकड़ों कारीगर, मिस्त्री, और मजदूरों ने दिन-रात मेहनत की। यह किला सिर्फ एक डिफेंस स्ट्रक्चर नहीं था बल्कि शाही परिवार का घर और हुकूमत का केंद्र भी था। इसे बनाने में जल संरक्षण और हवा के लिए खास इंतजाम भी किए गए, जो उस दौर की तकनीक की निशानी हैं।

सफेद से लाल: रंग बदलने का राज

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लाल किला आज अपने लाल बलुआ पत्थरों की वजह से मशहूर है लेकिन हैरानी की बात है कि यह पहले सफेद था। इसे सफेद चूना प्लास्टर से सजाया गया था, जो उस समय की शाही शैली का हिस्सा था और इमारत को एक खास चमक देता था। वक्त के साथ यह प्लास्टर खराब हो गया और 19वीं सदी में ब्रिटिश हुकूमत ने इसे बचाने के लिए लाल रंग से पेंट कर दिया। यही वजह है कि इसका नाम लाल किला पड़ा। इस रंग ने किले को नई पहचान दी जो आज तक कायम है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि लाल रंग ने इसे मजबूती दी।

प्री-मुगल युग: पुरानी बस्तियों के निशान

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लाल किले की खुदाई में कई रोचक चीजें मिली हैं। यहां से ओचर कलर्ड पॉटरी (2600-1200 ईसा पूर्व) जैसे पुराने सामान मिले जो बताते हैं कि शाहजहां से हज़ारों साल पहले यहां लोग रहते थे। इसी तरह के निशान हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और दूसरे भारतीय इलाकों में भी मिले हैं जो पुरानी बस्तियों के पैटर्न दिखाते हैं। ये खोजें साबित करती हैं कि लाल किला सिर्फ मुगल काल की देन नहीं, बल्कि इससे पहले की सभ्यता का हिस्सा भी है। खुदाई में मिले औजार और मिट्टी के बर्तन उस समय की जिंदगी को समझने में मदद करते हैं जो इसे और दिलचस्प बनाता है।

छत्ता चौक: शाही बाजार की खासियत

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लाल किले के अंदर छत्ता चौक एक खास जगह है। यह एक कवर किया हुआ बाजार है जिसमें 32 मेहराबनुमा दुकानें हैं, जो रेशम, जवाहरात और गहनों जैसे शाही सामानों की बिक्री के लिए थीं। यह मुगल भारत में एक अनोखा इनडोर बाजार था जो आमतौर पर खुले बाजारों से अलग था। यह बाजार शाही खानदान और दरबार के मेहमानों की जरूरतें पूरी करने के लिए बनाया गया था जो किले की दीवारों के अंदर उनकी सुविधा के लिए था। आज भी यहां की दुकानें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं, जहां आप पारंपरिक सामान और सोवेनियर खरीद सकते हैं। यह बाजार शाही तहजीब का नमूना भी है।

खास सुरक्षा सिस्टम: आवाज़ का जादू

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लाल किले की डिजाइन में एक खास सुरक्षा व्यवस्था थी, जो गूंजती आवाज़ के सिद्धांत पर काम करती थी। खास कमरों से आने वालों की गूंजती आवाज़ पहले से सुनाई दे जाती थी, जिससे दरबारी यह जान लेते थे कि कौन कोर्ट में आ रहा है। यह तकनीक उस दौर की समझदारी और सुरक्षा व्यवस्था को दिखाती है जो आज के सेंसर सिस्टम से पुरानी थी। यह इंतजाम किले की शाही इज्जत और सुरक्षा को बनाए रखने में बड़ा रोल अदा करता था। यह आज भी पर्यटकों के लिए एक को कमाल का लगता है।

बहादुर शाह जफर का मुकदमा: घर में इंसाफ

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लाल किला आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का घर था। 1857 की आजादी की जंग के बाद ब्रिटिशों ने ऊं पर गद्दारी का इल्जाम लगाकर यहीं दीवान-ए-खास में मुकदमा चलाया। यह वही हॉल था जहां वे अपने दरबार लगाते थे, जो इस घटना को और भावुक बनाता है। मुकदमे के बाद उन्हें रंगून (अब म्यांमार) भेज दिया गया, जहां उनकी वफात हो गई। यह घटना किले के इतिहास में एक दुख भरा मोड़ थी, जो हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई से जुड़ी है और आज भी याद की जाती है।

लाहौरी गेट: प्रवेश और वतन का गर्व

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लाल किले का मुख्य दरवाजा लाहौरी गेट है जो शाहजहांनाबाद के 14 गेटों में से एक है। यह अब पुरानी दिल्ली कहलाता है। हर साल 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री यहां तिरंगा फहराते हैं जो स्वतंत्रता दिवस पर वतन की शान का प्रतीक बनता है। यह गेट सिर्फ वास्तुशिल्प का नमूना नहीं बल्कि आजादी की भावना को भी बयान करता है। लाहौरी गेट के सामने होने वाली परेड और सांस्कृतिक प्रोग्राम इसे और खास बनाते हैं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

कोहिनूर और मोर पंखी तख्त: खोया हुआ वैभव

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लाल किले के दीवान-ए-खास में कभी कोहिनूर हीरा और मोर पंखी तख्त रखा गया था। यह तख्त शाही शान का प्रतीक था, जिस पर कोहिनूर जड़ा हुआ था और यह सोने और कीमती पत्थरों से सजा था। 1857 के बाद ब्रिटिशों ने इन अनमोल चीजों को हिंदुस्तान से ले लिया और आज कोहिनूर लंदन में ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है। यह किला कभी सोने और जवाहरात से चमकता था जिसकी रौनक अब इतिहास की बात बन गई है। यह तथ्य किले की खोई हुई शान को याद दिलाता है।

आधुनिकता और टूरिज्म

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आज लाल किला पर्यटकों के लिए एक पॉपुलर स्पॉट है। यहां की लाइट एंड साउंड शो में किले का इतिहास जीवंत हो उठता है, जो शाम को करीब एक घंटे के लिए होता है। आप यहां मुगल गार्डन, मोती मस्जिद, रंग महल और दीवान-ए-आम जैसी जगहें देख सकते हैं। भीड़ से बचने के लिए सुबह का वक्त चुनें, जब मौसम भी सुहाना होता है। टिकट ऑनलाइन बुक करना बेहतर रहेगा, ताकि लाइन में इंतजार न करना पड़े।

संरक्षण और अहमियत

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लाल किले की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की जाती है, जो इसकी मरम्मत और संरक्षण सुनिश्चित करता है। हाल के सालों में यहां की दीवारों को रंगने और गार्डन को बेहतर करने का काम हुआ है। यहां पर्यटकों से अपील की जाती है कि वे कचरा न फैलाएं और दीवारों पर कुछ न लिखें, ताकि इस धरोहर की खूबसूरती बनी रहे। यह किला सिर्फ एक टूरिस्ट प्लेस नहीं, बल्कि वतन की एकता और इतिहास का प्रतीक भी है।

नई नजर

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लाल किला सिर्फ एक इमारत नहीं बल्कि इतिहास, तहजीब, और जज्बात का संगम है। इसका सफेद से लाल होने का सफर, पुरानी बस्तियों के निशान, शाही बाजार और गूंजती आवाज़ वाली सुरक्षा इसे खास बनाते हैं। बहादुर शाह जफर का मुकदमा और कोहिनूर की कहानी इसमें भावनात्मकता को जोड़ती हैं। अगली बार जब आप यहां आएं, तो इन फैक्ट्स को याद रखें और किले की हर दीवार में छिपी कहानियों को महसूस करें। अपना कैमरा और गाइड बुक साथ रखें और इस ऐतिहासिक प्रतीक का सम्मान करें।

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