कितना पुराना है काशी विश्वनाथ मंदिर? क्यों है खास? जानें सब कुछ

अनुषा मिश्रा 16-07-2025 05:28 PM Culture
दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है काशी। काशी से ये शहर बनारस हुआ और फिर बनारस से वाराणसी। इस शहर का नाम तो बदल गया लेकिन इसकी आत्मा आज भी उतनी ही पुरानी है। और इस शहर की आत्मा जितना ही पुराना है यहां का काशी विश्वनाथ मंदिर। भारत के सबसे महान पूजा स्थलों में शामिल भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर हजारों वर्षों से आस्था, संस्कृति और भक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा है। इस मंदिर की यात्रा न केवल भारत की आध्यात्मिक विरासत की यात्रा है, बल्कि भक्ति, वास्तुकला और सांस्कृतिक संगम के कालातीत इतिहास में भी गोता लगाती है। 
काशी विश्वनाथ मंदिर पुराने समय से ही हिंदू धर्म की आधारशिला रहा है। कहते हैं कि यह मंदिर 2000 ईसा पूर्व से भी पुराना है क्योंकि वाराणसी को दुनिया के सबसे पुराने लगातार बसे हुए शहरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर को कई बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया लेकिन आज यह पहले से भी ज़्यादा भक्ति और श्रद्धा के साथ आसमान के सामने सीना तानकर खड़ा है। 

यह है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बना काशी विश्वनाथ मंदिर, हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा के केंद्र के रूप में किया गया है। वाराणसी हमेशा भगवान शिव से जुड़ा रहा है। ऐसा कहते हैं कि भगवान शिव ने इस शहर को मुक्ति के स्थान के रूप में स्थापित किया था। माना जाता है कि मूल मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। हालांकि, इस मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए और फिर इसका पुनर्निर्माण हुआ जिससे इसका इतिहास काफ़ी उथल-पुथल भरा हो गया। 

मध्यकाल के दौरान, मंदिर पर आक्रमणकारियों ने बार-बार हमला किया। पहला हमला 12वीं शताब्दी में कुतुब-उद-दीन ऐबक के शासनकाल में हुआ। इसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण समर्पित हिंदू शासकों ने कराया जिसे 15वीं शताब्दी के अंत में सिकंदर लोदी ने फिर से नष्ट कर दिया। सबसे उल्लेखनीय पुनर्निर्माण 16वीं शताब्दी के अंत में अकबर के दरबार में मंत्री राजा टोडर मल के शासनकाल के दौरान हुआ। यह मंदिर 1669 में औरंगजेब के ध्वस्त कराने से पहले लगभग एक शताब्दी तक खड़ा रहा। 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया और इसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई।

वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर को 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था, जिन्हें उनकी भक्ति और कई हिंदू मंदिरों के जीर्णोद्धार के प्रयासों के लिए याद किया जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर को 1835 में सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने सोने से सजवाया था। उन्होंने मंदिर के गुंबद और शिखर को चमकाने के लिए एक टन सोना दान किया था। 


2019 में मंदिर को पहले से भव्य बनाने और भक्तों के लिए मंदिर का रास्ता आसान बनाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण के तहत काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना शुरू की गई थी। इस परियोजना में मंदिर परिसर का विस्तार किया गया और इसे सीधे गंगा नदी घाटों से जोड़ा गया।

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है कमाल की कारीगरी

काशी विश्वनाथ मंदिर परंपरा और प्रतीकवाद के मिश्रण वाली स्थापत्य शैली में बना है। मंदिर में जटिल नक्काशी है जिसमें देवताओं, पौराणिक कहानियों और आध्यात्मिक चिन्हों को दर्शाती मूर्तियां बनी हैं। गर्भगृह में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। मंदिर परिसर में कुछ और देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर भी हैं, जिनमें से सबका अपना महत्व है। 

मिलता है मोक्ष

काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव के सबसे पवित्र मंदिर हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की यात्रा से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि दुनिया भर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।


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गंगा आरती और काशी विश्वनाथ

यह मंदिर गंगा नदी के पास बना है। यहां दर्शन करने के बाद भक्त दशाश्वमेध घाट पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली गंगा आरती में शामिल होते हैं। कहते हैं कि ऐसी आरती आपने और कहीं नहीं देखती होगी। गंगा में पड़ती रोशनी कि चमक और एक जैसे कपड़ों में पुजारियों को एक साथ आरती करते हुए देखना हमें एक अनोखे आध्यात्मिक सफर पर ले जाता है। 

त्योहार 

काशी विश्वनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि, सावन और देव दिवाली जैसे त्योहारों को खूबसूरत धूम धाम से मनाया जाता है। इस दौरान यहां की सड़कों को जुलूसों, मंत्रोच्चारों और प्रार्थनाओं से जीवन मिल जाता है।


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