नेपाल की जीवित देवी कुमारी: जानें इतिहास, परंपराएं और उनसे मिलने का आसान तरीका
काठमांडू की पुरानी गलियों में मंदिरों की बजती घंटियों और प्रार्थना के लहराते झंडन के बीच एक खास परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां एक छोटी बच्ची को जीवित देवी कहा जाता है। नाम होता है कुमारी। लोग उन्हें देवी तलेजू का रूप मानते हैं। हिंदू और बौद्ध दोनों ही समुदाय उन्हें पूजते हैं। कुमारी लाल रेशमी कपड़े पहनती हैं, सोने के गहने पहनती हैं और माथे पर तीसरी आंख बनाई जाती है। यह कुमारी घर की खिड़की से झांकती हैं। भक्तों का विश्वास है कि उनकी एक नजर से सौभाग्य, अच्छी सेहत और सुरक्षा मिलती है। नेपाल घूमने जा रहे हैं तो कुमारी से मिलना एक यादगार अनुभव होगा। चलिए, जानते हैं उनकी पूरी कहानी।
कुमारी कौन होती हैं?
कुमारी का मतलब संस्कृत में राजकुमारी या कुंवारी लड़की है। नेपाल में उन्हें देवी तलेजू का मानवीय रूप मानते हैं। तलेजू दुर्गा का एक रूप हैं। खास बात ये है कि कुमारी का चयन बौद्ध परिवार से होता है, लेकिन दोनों धर्मों के लोग उन्हें पूजते हैं। काठमांडू की रॉयल कुमारी सबसे मुख्य हैं। वे ‘कुमारी घर’ नाम के पुराने महल में रहती हैं। ये महल लाल ईंटों से बना है और बहुत सुंदर है।
हाल की नई कुमारी
सितंबर 2025 में नेपाल ने नई रॉयल कुमारी चुनी। अब दो साल की आर्यतारा शाक्या जीवित देवी बनी हैं। उन्होंने 2017 से पद पर रही त्रिशना शाक्या की जगह ली। दशैं त्योहार के आठवें दिन उन्हें संगीत, पूजा और आशीर्वाद के साथ कुमारी घर ले जाया गया। ये उनकी दिव्य जिंदगी की शुरुआत थी।
परंपरा की शुरुआत कैसे हुई?
ये रिवाज 17वीं सदी में राजा जय प्रकाश मल्ल के समय शुरू हुआ। कहानी है कि राजा गुप्त रूप से देवी तलेजू के साथ पासे खेलते थे। रानी ने देख लिया तो देवी गुस्सा हो गईं और गायब हो गईं। देवी ने कहा कि वे एक नेवार बच्ची के रूप में लौटेंगी। तभी से जीवित देवी की पूजा शुरू हुई। ये परंपरा नेवार समुदाय की है, जो काठमांडू घाटी के मूल लोग हैं।
चयन की प्रक्रिया क्या है?
कुमारी चुनना बहुत मुश्किल काम है। बड़े बौद्ध पुजारी ये करते हैं। कुछ मुख्य शर्तें हैं:
- बच्ची नेवार समुदाय के शाक्या या बज्राचार्य परिवार से हो।
- उसका शरीर पूरी तरह स्वस्थ हो – कोई निशान, घाव या गिरा दांत न हो।
- उसके शरीर में देवी के 32 खास गुण होने चाहिए।
- उसकी कुंडली राजा की कुंडली से मिलनी चाहिए।
- सबसे कठिन परीक्षा: खून और डरावने मास्क वाले नर्तकों के बीच डरना नहीं। ये देवी की निडरता दिखाता है।
चयन के बाद बच्ची को शुद्ध किया जाता है। माना जाता है कि देवी तलेजू उनमें आ जाती हैं। फिर वे जीवित देवी बन जाती हैं।
कुमारी घर में जिंदगी कैसी होती है?
कुमारी काठमांडू दर्बार स्क्वायर के कुमारी घर में रहती हैं। बाहर सिर्फ सोने की पालकी में निकलती हैं। उनका दिन पूजा, घर पर पढ़ाई और भक्तों को आशीर्वाद देने में बीतता है। लोग उनकी मुस्कान, पलक झपकना या आंसू को भाग्य का संकेत मानते हैं। इंद्रा जात्रा जैसे त्योहारों पर उन्हें सोने की रथ में शहर घुमाया जाता है। हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। उनकी एक झलक से सौभाग्य मिलता है।
दिव्यता कब खत्म होती है?
कुमारी का देवत्व पहली माहवारी आने या चोट से खून निकलने पर समाप्त हो जाता है। फिर वे घर लौट जाती हैं, स्कूल जाती हैं और सामान्य जिंदगी जीती हैं। पूर्व कुमारी शादी कर सकती हैं, पढ़ सकती हैं और नौकरी भी कर सकती हैं। अब उनकी शिक्षा और सेहत का पूरा ख्याल रखा जाता है। परंपरा और बच्चे के अधिकारों में संतुलन बनाया जाता है। हालांकि, पूर्व कुमारी की शादी होने के बहुत कम मामले ही हैं।
कुमारी से मिलने का तरीका
- जगह: कुमारी घर, बसंतपुर, काठमांडू दर्बार स्क्वायर।
- समय: सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक। तब वे खिड़की पर दिख सकती हैं।
- नियम: आंगन में शांति से खड़े रहें। जूते उतारें। अगर दिखें तो चिल्लाएं या ताली न बजाएं। ये आशीर्वाद समझें।
- त्योहारों पर: इंद्रा जात्रा (अगस्त-सितंबर) में रथ में शहर घूमती हैं। छोटी झलक भी आध्यात्मिक शक्ति देती है।
- एंट्री मुफ्त है, लेकिन भीड़ रहती है। पहले दर्बार स्क्वायर घूमें, जो यूनेस्को साइट है।
आज ये परंपरा क्यों खास है?
आज की दुनिया में कुमारी दिव्य और इंसानी जीवन को जोड़ती हैं। ये आस्था और अपनी पहचान का प्रतीक है। नेपाल की खूबसूरती यही है कि पुरानी बातों को जिंदा रखा जाता है। ये नई पीढ़ी तक संस्कृति पहुंचाती है।
काठमांडू घूमने के आसान टिप्स
- कैसे पहुंचें: काठमांडू एयरपोर्ट से टैक्सी से 20 मिनट।
- रहना: थमेल में होटल चुनें, जहां सब सुविधा मिलती है।
- साथ लाएं: आरामदायक जूते, कैमरा (फ्लैश बंद रखें), सनस्क्रीन।
- देखने लायक: पशुपतिनाथ मंदिर, स्वयंभूनाथ स्तूप और भक्तपुर।
- बेस्ट समय: अक्टूबर-नवंबर में मौसम अच्छा रहता है।
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