हनुमान जी की सबसे ऊंची मूर्ति है यहां, दिलचस्प है इतिहास

अनुषा मिश्रा 09-08-2022 04:38 PM My India
शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की जीवंत सुंदरता के बीच बना, जाखू मंदिर एक प्राचीन हनुमान मंदिर है जो पवन पुत्र हनुमान के भक्तों के बीच बेहद प्रसिद्ध है। शिमला के मशहूर दर्शनीय स्थलों में से एक इस मंदिर में  भगवान हनुमान की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति है। लोग यहां प्रभु के दर्शन के लिए तो आते ही हैं, शिमला आने वाले हर धर्म और संप्रदाय के टूरिस्ट्स इस विशाल मूर्ति को देखने भी आते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से 8048 फीट की ऊंचाई पर है। 2010 में हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने यहां 108 फीट की हनुमान प्रतिमा स्थापित की थी। इस मूर्ति को पूरे शिमला से देखा जा सकता है। श्रद्धालु यहां पैदल, निजी कार या रोपवे से जाते हैं। शिमला में रिज नामक जगह से यहां जाने के लिए रोप वे लिया जा सकता है। 

जाखू मंदिर से पास के शहर संजौली का व्यू भी बेहद खूबसूरत दिखाई देता है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का के अद्भुत नज़ारे को देखने के लिए कई ट्रेकर्स भी यहां आते हैं। सिर्फ मंदिर ही नहीं, यहां तक पहुंचने का रास्ता भी बहुत सुंदर है। 

जाखू मंदिर, शिमला का पौराणिक इतिहास

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जाखू मंदिर से जुड़ी एक दिलचस्प पौराणिक कहानी है। रामायण के युद्ध के दौरान राम के छोटे भाई लक्ष्मण एक शक्तिशाली बाण से घायल होकर बेहोश हो गए थे। लाख कोशिशों के बाद भी वह होश में नहीं आ रहे थे। फिर लंका के एक प्रसिद्ध वैद्य सुषेण ने भगवान राम से कहा कि संजीवनी बूटी से लक्ष्मण जी को होश में लाया जा सकता है। लेकिन वह बूटी हिमालय पर थी। जिसे लाने का जिम्मा हनुमान जी को दिया गया था। हिमालय की ओर जाते समय उनकी मुलाकात याकू ऋषि से पहाड़ी की चोटी पर हुई। हनुमान जी पर्वत पर बैठ गए और जड़ी बूटी के बारे में उनसे पूछा। जिस पर्वत पर हनुनान जी बैठे थे वह उनके वजन को सहन नहीं कर सका और अपने चपटा हो गया। जड़ी बूटी के बारे में पर्याप्त जानकारी एकत्र करने के बाद, हनुनान जी ने याकू ऋषि से वापस लंका जाते समय मिलने का वादा किया।


वापस जाते समय, हनुमान जी को कालनेमी नाम के एक राक्षस से लड़ना पड़ा, जिसमें उनका बहुत सारा समय बर्बाद हो गया। हनुमान जी को समय पर लंका भी पहुंचना था इसलिये उन्होंने याकू ऋषि से मिलना ताल दिया और सीधे लंका की ओर प्रस्थान कीट। इस बात से याकू ऋषि बहुत दुखी हुए। जब हनुमान नहीं लौटे तो ऋषि चिंतित हो गए। तो हनुमान स्वयं ऋषि के सामने पर्वत पर प्रकट हुए। ऐसा कहा जाता है कि ऋषि ने उसी स्थान पर हनुमान जी की एक मूर्ति स्थापित की थी। आज भी यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है।


ऋषि का नाम "याकू, से "याखू" और "याखू" के "जाखू" में बदल गया। कहते हैन जहां हनुमान जी के चरण पड़े थे वहां उनके पदचिन्हों को संगमरमर में उकेरा गया है। पर्यटक आज भी इसे देखने आते हैं। माना जाता है कि मंदिर में हनुमान जी के पैरों के निशान हैं और मंदिर के आसपास रहने वाले बंदर भगवान हनुमान जी के वंशज हैं।


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