ताजमहल के अलावा भी आगरा के पास और बहुत कुछ है...

बटेश्वर
आगरा से 70 किलोमीटर दूर बटेश्वर एक तहसील है। यहां यमुना नदी के किनारे बटेश्वर घाट पर 101 मंदिरों की श्रृंखला थी जिसमें से 42 मंदिर यहां अभी भी हैं। इनमें से एक मुख्य शिव मंदिर है जिसमें सदियों पुरानी शिवलिंग है। इस मंदिर में हर शाम भव्य आरती होती है। कहते हैं कि बटेश्वर श्री कृष्ण के पिता राजा शूरसेन की राजधानी थी। यह भी सुनने में आता है कि कंस का मृत शरीर बहते हुए बटेश्वर में आकर कंस किनारा नामक स्थान पर ठहर गया था। यह ब्रजमण्डल की चौरासी कोस की यात्रा के अंतर्गत आता है। बटेश्वर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व तो है ही इसका राजनीतिक महत्व भी है। बटेश्वर गांव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गाँव है। अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय अटल बिहारी वाजपेयी और उनके बड़े भाई प्रेम इसी गांव में गिरफ्तार किए गए थे। इसी घटना से उनके राजनीतिक जीवन आ आरम्भ भी हुआ था। बटेश्वर में कई धर्मशालाएं हैं जहां आप रुक सकते हैं।
कीठम झील
आगरा से 20 किलोमीटर और सिकंदरा से 12 किलोमीटर नेशनल हाइवे 2 पर कीठम झील है। 7.13 स्क्वायर किमी की इस झील में बोटिंग भी होती है। कीठम में सूर सरोवर नाम का पक्षी अभ्यारण्य भी है, जिसमें स्थानीय व प्रवासी पक्षियों की 100 से ज्यादा प्रजातियां हैं। यहां स्पूनबिल, साइबेरियन सारस, सरने सारस, ब्राहमनी बत्तख, बार-हेडेड गीसे और गाडवॉल्स व शोवेलर्स यहां पाई जानी वाली पक्षियों की कुछ प्रमुख प्रजातियां है। यहां कई तरह के दूसरे जानवर भी पाए जाते हैं। उत्तरप्रदेश वन विभाग ने 27 मार्च 1991 को इस पूरे क्षेत्र को राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य का नाम दिया। कीठम में एक भालू संरक्षण केंद्र भी है। झील के ही पास 17 हेक्टेयर जमीन पर भालू संरक्षण केंद्र का संचालन एनजीओ वाइल्ड लाइफ एसओएस कर रहा है। यहां बच्चों के खेलने के लिए एम्यूजमेंट पार्क भी है। अगर आप आगरा घूमने जाते हैं तो अपना एक पूरा दिन आप यहां बिता सकते हैं। यहां तक जाने के लिए आप टैक्सी बुक कर सकते हैं। अगर आप खाने के शौकीन हैं तो रास्ते में पड़ने वाले रामबाबू के ढाबे के पराठों का मजा भी ले सकते हैं। रामबाबू के पराठे पूरे आगरा में मशहूर हैं।

मथुरा-वृंदावन
मथुरा-वृंदावन की हर गली, हर सड़क, हर घर, हर नुक्कड़ में राधा—कृष्ण का नाम बसा है। आप अगर एक बार यहां आएंगे तो आपका बार—बार यहां आने का मन करेगा। ये दोनों ही जगहें धार्मिक रूप से खास हैं ही इनकी खूबसूरती भी देखते बनती है। अगर आप आगरा तक आए हैं तो आपको बिना मथुरा वृंदावन घूमे वापस नहीं जाना चाहिए। यहाँ के प्राचीन मंदिर, उनसे जुड़ी गौरव गाथाएँ और यहाँ की संस्कृति देश की अमूल्य धरोहर हैं। श्रीकृष्ण जन्मभूमि, गोविन्द देव मंदिर, रंगजी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, बांकेबिहारी मंदिर, इस्कॉन मंदिर, प्रेम मंदिर, वैष्णोदेवी मंदिरों की खूबसूरती यकीनन आपका मन मोह लेगा। इसके अलावा कंस का किला, मथुरा का सरकारी म्यूजियम भी देखने लायक जगह हैं।
मथुरा जिले में गोकुल, बरसाना, गोवर्धन भी घूमने लायक जगह हैं। गोकुल में अगर कृष्ण का बचपन बीता है तो बरसाना में राधा का। जब आप गोकुल में घूमेंगे तो आपको लगेगा कि यहीं कहीं किसी रास्ते पर कृष्ण बचपन में अपनी गायों को चराते घूमते होंगे। बरसाना में 'लाडली जी' का बहुत बड़ा मंदिर है। राधा को यहां के लोग प्यार से लाडली जी कहते हैं। यहां की ज्यादातर इमारतें 300 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं। बरसाना गांव के पास दो पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। ऐसा कहते हैं कि गोपियां इसी रास्ते से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मटकी छीन लिया करते थे। गोवर्धन में श्रीकृष्ण ने वहां के लोगों को वर्षा के देवता इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। खाने पीने के शौकीन लोगों के लिए भी मथुरा वृंदावन में बहुत कुछ खास है। मथुरा के पेड़े तो पूरे देश में मशहूर हैं। यहां की लस्सी और कचौड़ी भी काफी अच्छी होती है। वृंदावन में बांकेबिहारी मंदिर की गली में आपको कई जगह मीठा पान भी बिकता दिखेगा, जो आपको जरूर पसंद आएगा।
एत्माद-उद-दौला
एत्माद—उद—दौला नूरजहां के पिता का मकबरा है। नूरजहां के पिता मिर्जा ग्यास बेग जहांगीर के वजीर थे, जिन्हें एत्माद-उद-दौला की उपाधि मिली थी। यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से बना ये मकबरा ज्वेलरी के बॉक्स जैसा दिखता है। कुछ इतिहासकारों ने तो इसे छोटा ताजमहल भी कहा है।

आगरा किला
आगरे का किला शुरुआत में ईंटों से बना था, जिसे राजपूतों ने बनवाया था। बाद में अकबर ने इस किले को नए सिरे से बनवाया और अपनी राजधानी यहीं बसाई। आगरा के किले में कई दर्शनीय भवन हैं। हालांकि इसका 75 प्रतिशत हिस्सा आर्मी के कब्जे में है लेकिन 25 फीसदी हिस्सा जो पर्यटकों के लिए खुला है वो भी काफी बड़ा और खूबसूरत है। इसी किले में औरंगजेब ने शाहजहां को नजरकैद करके रखा था। दीवान—ए़—आम, दीवान—ए—खास, अकबर की बावड़ी, शीशमहल, अंगूर बाग, मोती मस्जिद जैसी कई देखने लायक जगह हैं। आगरा किले के बाहर कई गोलगप्पे वाले खड़े दिख जाते हैं। यकीन मानिए आपको आगरा से अच्छे पानी बताशे कहीं नहीं मिलेंगे। आपने आटे और सूजी के बताशे खाए होंगे लेकिन यहां आपको मूंग की दाल के छोटे — छोटे बताशे मिलेंगे जिनका स्वाद एकदम अलग और बेहतरीन होता है। इसके अलावा आगरा की बेढ़ई भी काफी मशहूर हैं। सूजी की कचौड़ी के साथ आलू का तीखा झोल और साथ में दही चटनी, इसका तो मजा ही अलग है।
सिकंदरा
सिंकदरा में मुगल बादशाह अकबर का मकबरा है। 119 एकड़ में फैले इस मकबरे को 1605-1613 के बीच बनवाया गया था। बादशाह अकबर ने अपने जीते जी इस मकबरे को बनाने का आदेश जारी किया था, जिसे उसके बेटे जहांगीर ने पूरा करवाया। अकबर के अलावा उनकी मुख्य बेगमों की कब्र भी इसी मकबरे में बनी है। मकबरे में पीछे की एक बड़ा पार्क भी है जिसमें हिरण और बारहसिंहा हैं। ये आगरा के मशहूर पर्यटक स्थलों में से एक है।

दयाल बाग
दयाल बाग की स्थापना बसन्त पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को शहतूत का पौधा लगा कर की गई थी। ये राधास्वामी सत्संग का मुख्य केंद्र है। तब से ही इसको बनाना शुरू किया गया था और यहां तब से लेकर आज तक लगातार निर्माण कार्य चल रहा है। ऐसा कहते हैं कि इसमें निर्माण कार्य कभी भी बंद नहीं किया जाएगा। दयाल बाग का मुख्य का मुख्य मंदिर भी सफेद संगमरमर का बना है, जिसमें काफी खूबसूरत नक्काशी है। दयालबाग में एक छोटा बाजार भी है जहां पत्थर की मूर्तियां और कपड़े वगैरह मिल जाते हैं।
फतेहपुर सीकरी
आगरा से लगभग 25 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में बादशाह अकबर का बसाया हुआ फतेहपुर सीकरी शहर है। यहां लाल बलुई पत्थर से बना बुलंद दरवाजा, जोधा बाई का महल बना है और सफेद संगमरमर से सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह बनी है। अकबर ने 1572-1585 में के बीच इसे बनवाया था। ऐसा कहते हैं कि जब अकबर के कोई बच्चा नहीं हो रहा था तब वो शेख सलीम चिश्ती के पास गए थे और उनके अशीर्वाद से ही अकबर का बेटा हुआ था इसीलिए अकबर ने उसका नाम सलीम रखा था। इसके बाद अकबर ने फतेहपुर सीकरी को ही अपनी राजधानी बना लिया। बाद में पानी की कमी और उत्तर-पश्चिम में अशांति फैलने के कारण अकबर को इसे छोड़ना पड़ा।" आज भी शेख सलीम चिश्ती का मकबरा ज्यादा तादाद में पर्यटको को आकर्षित करता है यहाँ स्थित स्थलों में जिनमे से दीवान-ए-आम, दीवान-ए-ख़ास, बुलंद दरवाजा, पंचमहल, जोधाबाई का महल, पचीसी दरबार और बीरबल का निवास खास हैं। ये इमारतें इतनी खूबसूरत हैं कि दिल्ली और आगरा की इमारतों को भी टक्कर देती हैं। यहां बस आगरा विकास प्राधिकरण के बस अड्डे व कार पार्किंग में एक बाजार है। इसके अलावा बुलंद दरवाजे के अंदर भी छोटा सा बाजार लगता है जिसमें पत्थर का बना हुआ सामान मिलता है।
केवलादेव घाना राष्ट्रीय पार्क
आगरा से केवल 50 किमी की दूरी पर राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय पार्क में घूमने के लिए यह बेस्ट समय है। वैसे तो ये पार्क साल भर खुला रहता है लेकिन यहां सितंबर से भारी संख्या में सैलानी आना शुरू हो जाते हैं और ये सिलसिला अप्रैल तक चलता रहता है क्योंकि इसी मौसम में यहां देश विदेश के पक्षी शरण लेने आते हैं। जिन्हें पेड़ पौधों और पक्षियों जानवरों से प्यार है उन्हें तो यह जगह ताजमहल से भी ज्यादा खूबसूरत लग सकती है। 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित होने से पहले यह अभ्यारण्य था। 29 वर्ग किमी में फैले इस पार्क में कम गहरी झीलें और तथा जंगल हैं। पक्षियों के इस सैरगाह में 350 से भी ज्यादा दुर्लभ प्रजातियों के देसी और विदेशी पक्षियों पक्षी शरण लेते हैं। इनमें से ज्यादातर छह हजार किमी से ज्यादा दूरी तय करके साइबेरिया और मध्य एशिया के देशों से सर्दियों की शुरुआत में आ जाते हैं और अप्रैल तक यहीं रहते हैं। अगर आप यहां घूमने जाते हैं तो आपको रुकने की कोई दिक्कत नहीं होगी। भरतपुर शहर से सिर्फ एक किमी की दूरी पर होने से इस पार्क को देखने के लिए आने वाले पर्यटक शहर और पार्क के बाहर बने होटलों में आराम से रुक सकते हैं। जंगल के अंदर भी फॉरेस्ट लॉज व एक होटल है।
ग्वालियर का किला
आगरा से लगभग 117 किलोमीटर दूर देश के शानदान और भव्य किलों में शामिल ग्वालियर का किला शहर के बीचो बीच एक पहाड़ी की चोटी पर बना है। यहां से पूरे शहर और घाटी की खूबसूरती दिखाई देती है। इस पहाड़ी पर चढ़ते हुए टेढ़े मेढ़े रास्ते पर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां बनी हुई हैं। किले के दो गेट हैं। पूर्वी दिशा में ग्वालियर गेट, जहां से पैदल जाना पड़ता और पश्चिमी दिशा में उर्वई गेट है जहां गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। किले की पहाड़ी 10 मीटर ऊंची दीवार से घिरी हुई है। एक खड़ी ढाल वाली सड़क क़िले के ऊपर की ओर जाती है। भारत के इतिहास में इस क़िले का बहुत अधिक महत्व रहा है। क़िले को हिन्द के क़िलों का मोती कहा गया है। यह क़िला कई शासकों के अधीन रहा, पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया। अगर आप आगरा घूमने आए हैं और ऐतिहासिक इमारतों को देखने का शौक रखते हैं तो ये आप यहां घूमने जा सकते हैं।
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