1,000 साल से ज्यादा पुराने हैं भारत के ये 8 ऐतिहासिक स्मारक
भारत में कमाल की पुरानी इमारतें हर तरफ फैली हुई हैं। ये सिर्फ इतिहास नहीं सहेजे हैं। इनका गहरा धार्मिक महत्व भी है। सबसे खास बात ये है कि ज्यादातर हजारों साल पुरानी हैं। समय बीता, राजा बदले, प्राकृतिक आपदाएं आईं। फिर भी ये मजबूती से खड़ी हैं। ये जीवित स्मारक हैं। देश के सुनहरे पुराने दिनों की झलक दिखाती हैं। धार्मिक, कलात्मक और इमारत बनाने की कला से भरपूर हैं।
सांची का स्तूप, मध्य प्रदेश
सांची का स्तूप अशोक महान ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में बनवाया था। ये दुनिया के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण बौद्ध स्मारकों में से एक है। इसमें एक बड़ा गोल गुंबद है जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे हुए हैं। यहां टूरिस्ट्स और फोटोग्राफर को खूबसूरती से तराशे गए तोरण द्वार बेहद पसंद आते हैं।
शोर मंदिर, महाबलीपुरम, तमिलनाडु
शोर मंदिर महाबलीपुरम में है। ये यूनेस्को की विश्व धरोहर है। इसे पल्लव राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय ने आठवीं सदी में बनवाया था। ये दक्षिण भारत का सबसे पुराना बना-बनाया मंदिर है। पहले पहाड़ों में गुफा मंदिर तराश कर बनाए जाते थे थे लेकिन ये तैयार पत्थरों से बना है। यह मंदिर बंगाल की खाड़ी के किनारे खड़ा है। शोर टेम्पल पुरानी द्रविड़ शैली की सुंदरता दिखाता है। यह सटीकता, समरूपता और भक्ति का शानदार मेल है।
कैलाश मंदिर, एलोरा, महाराष्ट्र
कैलाश मंदिर एलोरा की गुफाओं का हिस्सा है। ये रहस्यमयी मंदिर इंजीनियरिंग और कला का कमाल है। इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर आठवीं सदी का है जो एक ही चट्टान से ऊपर से नीचे तराशा गया है। कैलाश मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
खजुराहो के मंदिर, मध्य प्रदेश
खजुराहो के मंदिर चंदेल वंश ने 950 से 1050 ईस्वी के बीच बनवाए थे। ये मंदिर अपनी शानदार और नाजुक मूर्तियों के लिए मशहूर हैं। मूल 85 मंदिरों में से 25 बचे हैं जिनमें आज आप घूम सकते हैं। यहां हजारों पत्थर की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां शरीर और आत्मा के पवित्र संबंध को सेलिब्रेट करती हैं।
बाराबर गुफाएं, बिहार
बाराबर गुफाएं बिहार में हैं। कम लोग जानते हैं लेकिन इन गुफाओं का बहुत समृद्ध इतिहास है। ये भारत की सबसे पुरानी तराशी हुई गुफाएं हैं जो तीसरी सदी ईसा पूर्व यानी अशोक के समय की हैं। ये मजबूत ग्रेनाइट से तराशी गई हैं। इनके अंदर की चमकदार दीवारें देखकर लोग हैरान रह जाते हैं। कहते हैं कि इनकी डिजाइन अपने समय से आगे की है।
बृहदीश्वर मंदिर, थंजावुर, तमिलनाडु
बृहदीश्वर मंदिर या बड़ा मंदिर चोल सम्राट राजराजा प्रथम ने 1010 ईस्वी में पूरा करवाया था। ये पूरी तरह ग्रेनाइट से बना है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसका बड़ा टावर 200 फीट से ऊंचा है। जिसमें ऊपर 80 टन का एक ही ग्रेनाइट का पत्थर है। परिसर में बहुत बड़ी नंदी यानी बैल की मूर्ति है। इस मंदिर में आज भी पूजा होती है।
लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर, ओडिशा
लिंगराज मंदिर 11वीं सदी में बना था। यह ओडिशा के सबसे पुराने और पूजनीय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भी भगवान शिव को समर्पित है। यह कलिंग शैली की इमारत का शानदार नमूना है। इसका मुख्य टावर 180 फीट ऊंचा है। बड़े आंगन में कई छोटे मंदिर हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा
कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने 1250 ईस्वी में बनवाया था। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। मंदिर विशाल रथ की शक्ल में बना है। इसमें 24 पहिए बने हैं जिन्हें पत्थर को तराश कर बनाया गया है। रथ में सात घोड़े दौड़ते दिखते हैं। कहते हैं कि ये समय के गुजरने का प्रतीक है। भारत की सबसे आकर्षक इमारतों में से एक यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर है।
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