लॉकडाउन के बाद इन जगहों की एक ट्रिप तो बनती है

अनुषा मिश्रा 26-05-2021 06:44 PM My India
फिलहाल हम सब घरों में बंद हैं और उस दिन के इंतजार में हैं जब ये कोरोना महामारी खत्म होगी और हम फिर से खुली हवा में सांस ले पाएंगे, अपनी पसंदीदा जगहों की सैर कर पाएंगे, कभी पहाड़ों पर चढ़कर तारे देखेंगे तो कभी समंदर से बातें कर पाएंगे, यूं ही किसी मोड़ पर रुककर गोलगप्पे खाएंगे। लेकिन कोई बात नहीं, हताश होने से भी क्या हासिल होगा। अभी अगर हम घूमने नहीं जा सकते तो क्या हुआ, घर बैठे शानदार जगहों की एक बकेट लिस्ट तो बना ही सकते हैं। आपका तो पता नहीं लेकिन हमने ये बकेटलिस्ट बना ली। लॉकडाउन के बाद इन जगहों की एक-एक ट्रिप तो हम करेंगे ही। चलिए आपको भी बता देते हैं कि हमने इस लिस्ट में किन-किन जगहों को शामिल किया है। 

गुरुडोंगमार झील

कुछ झीलें सिर्फ झीलें होती हैं, कुछ बहुत खूबसूरत झीलें होती हैं और फिर आती है गुरुडोंगमार झील। सिक्किम की सबसे सुंदर जगहों में से एक है यह। या यूं कहें कि सिक्किम की जान यह है। दूर-दूर तक फैला नीला पानी और पीछे में बर्फ से लदी सफेद चोटियां, गाहे बगाहे आते जाते बादलों के झुंड से गुफ्तगू करती दिखाई पड़ती हैं। लाचेन में लगभग 5430 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील कंचनजंगा पर्वतमाला की उत्तर पूर्व दिशा में है। चीन की सीमा से महज 5 किलोमीटर पहले पड़नी वाली इस झील में नवंबर से मई तक पानी पूरी तरीके से जमा रहता है, यानी यहां सिर्फ बर्फ ही दिखता है। इस झील से एक धार निकलती है जो त्शो लामो झील को इस झील से जोड़ती है और फिर यहां से तीस्ता नदी का उद्गम होता है। देखने में तो यह झील सुंदर है ही इसके पीछे एक काफी मजेदार किस्सा भी जुड़ा है। कहा जाता है कि, जब गुरु पद्मसम्भवा तिब्बत की यात्रा में थे तब उन्होंने इस झील को ही अपनी उपासना के लिए सबसे सही जगह के रूप में चुना था। झील में साल के ज़्यादातर समय पानी जमने की वजह से लोगों को पीने का पानी नहीं मिलता था। लोगों ने गुरु पद्मसम्भवा से उनकी समस्या दूर करने का निवेदन किया। गुरु पद्मसम्भवा ने उनकी मदद के लिए झील के एक हिस्से में अपने हाथों को रखा जिसके बाद उस हिस्से का पानी कभी नहीं जमता चाहे कितनी भी ठंड हो। बस उस हिस्से को छोड़कर झील का बाकी हिस्सा जमा रहता है। 

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मुन्नार

मुन्नार दक्षिण भारत की वह जगह है जहां सबसे ज्यादा चाय पैदा होती है। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों के किनारे दूर तक फैले चाय के बागान यहां आए टूरिस्ट्स को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वादियों के ऊपर मंडराते बादलों का नजारा अद्भुत होता है। आप जैसे - जैसे पहाड़ पर ऊपर बढ़ते जाते हैं बादल आपके नजदीक आते जाते हैं। कई जगह आप इन्हें छू भी सकते हैं। इन वादियों में जब सूरज की रोशनी पड़ती है तो लगता है जैसे आप अपने ही स्वर्ग में हों। मुन्नार से कोच्चि की ओर बढ़ेंगे तो रास्ते में न जाने कितने झरने आपके स्वागत को तैयार दिखेंगे। सड़क के किनारे हर 2-4 किलोमीटर की दूरी पर बने बड़े से चर्च को देखकर आपको ऐसा लगेगा जैसे किसी दूसरे देश में आ गए हों। कुल मिलाकर बात ये है कि अगर अभी तक आपने मुन्नार नहीं देखा तो इस बार बंदिशों के हटते ही यहां जाने की प्लानिंग कर लीजिए।

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वाराणसी

दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है वाराणसी। हालांकि मैं यहां इसे बनारस ही लिखूंगी जो इसका पुराना नाम है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे जो फीलिंग बनारस लिखने में आती है वो वाराणसी लिखने में नहीं। हां तो बनारस में आपको इतिहास, परंपराएं, आस्था, संस्कृति, लजीज खाना और गंगा सब कुछ मिलेगा जो किसी भी घूमने के शौकीन के लिए सबसे जरूरी होता है। अगर आपने यहां के गंगा घाटों की तस्वीरें देखी होंगी तो इस शहर के बारे में आपको थोड़ा-बहुत अंदाजा तो होगा ही लेकिन आप इसके खासियत का असली अनुभव तब तक नहीं ले सकते जब तक आप बनारस की गलियों में घूमकर खुद को बनारसियों जैसा महसूस न करने लगें। कहीं किसी घाट पर, किसी गली में घूमते हुए, किसी मंदिर की सीढ़ियों पर तो किसी नाव से गंगा की सैर करते हुए आपको ऐसी तस्वीरें लेने का मौका मिल जाएगा जो आपके लिए जिंदगी भर की यादगार बन जाएंगी।

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खजुराहो

बेजोड़ और अद्भुत शिल्पकला की जब बात होती है तब खजुराहो के मंदिरों का जिक्र जरूर आता है। अपनी अकल्पनीय मूर्तिकला और कमाल की नक्काशी के लिए ये मंदिर प्रसिद्ध हैं। चंदेल राजवंश के काल में नागर शैली में बने इन मंदिरों के समूह की खूबसूरती की वजह से इन्हें विश्व धरोहरों की सूची में भी शामिल किया गया है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का इतिहास काफी पुराना है। खजुराहो का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा क्योंकि यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा था। इब्नबतूता ने इस जगह को कजारा कहा है, तो चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भाषा में इसे ‘चि: चि: तौ’ लिखा है। अलबरूनी ने इसे ‘जेजाहुति’ बताया है, जबकि संस्कृत में यह ‘जेजाक भुक्ति’ बोला जाता रहा है। चंदरबरदाई की कविताओं में इसे ‘खजूरपुर’ कहा गया और एक समय इसे ‘खजूरवाहक’ नाम से भी जाना गया। लोगों का मानना था कि इस समय नगर द्वार पर लगे दो खजूर वृक्षों के कारण यह नाम पड़ा होगा, जो कालांतर में खजुराहो कहलाने लगा।


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कच्छ का रण

10,000 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैले कच्छ के रण को अगर भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। सर्दी में यह सबसे बड़ा नमक का रेगिस्तान बन जाता है। पूर्णिमा की रात में जब चांद की रोशनी इस नमक के रेगिस्तान पर पड़ती है तो ये जगह एकदम जन्नत जैसी नजर आती है। यह जगह कला और संस्कृतियों का भी गढ़ है। यहां आपको कई जनजातियों के लोग भी मिल जाएंगे, जिनकी वेश-भूषा और घर बेहद सुंदर होते हैं।

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हमने तो अपनी बकेटलिस्ट आपको बता दी। अब आप ये बताइए कि आपको इनमें से कौन सी जगह पसंद आई। भई, हमारी तो सब फेवरेट हैं। 

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