महंगाई के जमाने में मिडिल क्लास की छुट्टियां: कैसे बदल रहे हैं सफर

टीम ग्रासहॉपर 04-11-2025 05:23 PM My India

महंगाई बढ़ रही है, लेकिन छुट्टियां मनाने का शौक कम नहीं हुआ। भारत का मिडिल क्लास अब छोटी ट्रिप्स, स्मार्ट बुकिंग और देश के अंदर घूमने पर फोकस कर रहा है। ट्रेन को होटल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। होमस्टे में रहकर लोकल कल्चर का मजा ले रहे हैं। महंगे सामान की बजाय अच्छे अनुभव चुन रहे हैं। ये नया तरीका है, पैसे बचाओ, यादें बनाओ।

अमेरिकी उपन्यासकार और ट्रैवेल राइटर ने पॉल थेरॉक्स ने कहा था यात्रा पीछे मुड़कर देखने पर ही ग्लैमरस लगती है। भारत के मिडिल क्लास के लिए ये बात बिल्कुल सही है। ईएमआई, किराया और सब्जी के दाम से ये हर पल परेशान रहते हैं, फिर भी घूमने का मन करता है। सिंगापुर की बजाय सिक्किम, बाली की बजाय भुज चुनते हैं। लेकिन बैग पैक करना नहीं छोड़ते। सैकड़ों मिलियन लोग हैं मिडिल क्लास में। कम सैलरी और महंगाई में भी रचनात्मक तरीके अपनाते हैं – छोटी ट्रिप्स, स्मार्ट बुकिंग, देश के अंदर नई जगहें और वैल्यू पर फोकस। महंगाई के जमाने का ट्रैवलर अनुभव चाहता है, फालतू खर्च नहीं। हर टिकट चेक करता है। छुट्टी का प्लान बजट की तरह बनाता है। ट्रेन सिर्फ सस्ती नहीं, रात का होटल भी है। होमस्टे समझौता नहीं, आधे दाम में कल्चर का अपग्रेड है। फ्लैश सेल के इर्द-गिर्द ट्रिप प्लान करता है। ये नया ट्रैवल तरीका है – लचीला और सोचा-समझा।

महंगाई का असर: बजट क्यों जरूरी है?

2025 में महंगाई ऊपर-नीचे हुई है। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार, साल के अंत में फूड प्राइस कम होने से महंगाई ऐतिहासिक कम स्तर पर आई है। लेकिन 2022-2024 में दामों के झटके घर के खर्च बदल गए हैं। ट्रैवल वैकल्पिक है। जरूरी खर्च बढ़े तो ट्रिप का बजट पहले कटता है। दो और बातें बजट को टाइट करती हैं। लेकिन ट्रैवल डिमांड बढ़ाती भी हैं। पहला, शहरों में सैलरी ग्रोथ असमान है। कुछ सेक्टर में दामों से पीछे रह गई है। दूसरा, देश के अंदर कनेक्टिविटी बढ़ी है। ज्यादा ट्रेनें हैं। ज्यादा फ्लाइट्स हैं। अच्छी सड़कें हैं। मतलब, लोग घूमना चाहते हैं। लेकिन कम खर्च में ज्यादा अनुभव चाहते हैं। टूरिज्म मंत्रालय के डेटा में घरेलू टूरिस्ट विजिट्स रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। डिमांड कम नहीं हुई है।

घरेलू ट्रैवल का स्केल क्या है?

टूरिज्म मंत्रालय ने बताया कि 2024 में घरेलू टूरिस्ट विजिट्स सैकड़ों मिलियन में थे। रेलवे बजट ट्रैवल की रीढ़ है। पैसेंजर ट्रैफिक रिकॉर्ड बढ़ा रहा है। एविएशन भी तेजी से बढ़ रहा है। भारत का घरेलू एयर मार्केट दुनिया में सबसे तेज ग्रोथ वाला है। ये बड़े नंबर बताते हैं कि बजट ट्रैवल सिर्फ लाइफस्टाइल नहीं है। ये अर्थव्यवस्था का हिस्सा है। होटल चलाता है। लोकल इकोनॉमी चलाता है। ट्रांसपोर्ट को चलाता है।

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2025 में बजट का मतलब क्या है?

बजट ट्रैवल एक रेंज है। तीन बैंड्स हैं। प्रति व्यक्ति, प्रति दिन। ट्रैवल ऑपरेटर गाइड्स और ऑफिशियल इंडिकेटर्स से लिए गए हैं।  

अल्ट्रा-बजट / बैकपैकर: 1,000 – 3,000 रुपये/दिन। हॉस्टल डॉर्म या सस्ते गेस्टहाउस। ट्रेन-बस। स्ट्रीट फूड। कम एंट्री फीस। स्टूडेंट्स, यंग कपल्स, सोलो ट्रैवलर्स इस्तेमाल करते हैं।  

मेनस्ट्रीम मिडिल क्लास: 3,000 – 6,000 रुपये/दिन। प्राइवेट बजट होटल। कभी शॉर्ट फ्लाइट। ट्रेन-रोड मिक्स। स्ट्रीट+रेस्तरां फूड। न्यूक्लियर फैमिली और वर्किंग प्रोफेशनल्स लॉन्ग वीकेंड पर इस्तेमाल करते हैं।  

वैल्यू कम्फर्ट: 6,000 – 10,000 रुपये/दिन। एसी ट्रेन या लो-कॉस्ट फ्लाइट डील। 3-स्टार होटल डिस्काउंट पर। गाइडेड एक्सपीरियंस। फैमिली जो कम्फर्ट चाहती है लेकिन कुल खर्च देखती है, इस्तेमाल करती है।  

ये बैंड्स प्लानिंग के लिए काम के हैं। जगह के हिसाब से फर्क पड़ता है। गोवा या शिमला में 3,000 रुपये अलग अनुभव देंगे। टियर-2 शहर या तीर्थ में अलग अनुभव देंगे।

ट्रेन क्यों है मिडिल क्लास की पहली पसंद

ट्रेन भारत की बजट ट्रैवल की जान है। सस्ता किराया है। स्लीपर जो रात का ठिकाना बन जाता है। हर जगह कनेक्शन है। फैमिली दिन भर घूमकर कम खर्च में पहुंच जाती है। रेलवे ने फाइनेंशियल ईयर 25 में पैसेंजर वॉल्यूम बढ़ाया है। डिजिटल टिकटिंग आसान की है। लास्ट मिनट प्लानिंग भी हो जाती है। लागत का फायदा बड़ा है। लंबी रात की यात्रा होटल और फ्लाइट दोनों बचाती है। दिल्ली से वाराणसी 12-16 घंटे नॉन-एसी स्लीपर में कुछ सौ रुपये लगते हैं। एसी 3-टियर थोड़ा महंगा है लेकिन फ्लाइट से सस्ता है। खासकर फैमिली में। रेलवे की बुकिंग और क्लीनलाइन सुधार से मिडिल क्लास फिर प्लेटफॉर्म पर लौट रही है। किराया रूट और क्लास पर निर्भर करता है। IRCTC पर चेक करें।

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फ्लाइट्स- सस्ती लेकिन अनिश्चित हैं

लो-कॉस्ट एयरलाइंस ने सीटें बढ़ाई हैं। फ्लैश सेल्स से फ्लाइट मिडिल क्लास तक पहुंची है। लेकिन तेल दाम और पीक सीजन में किराया उछलता है। बजट ट्रैवलर के लिए ट्रेन-बस अभी भी सस्ती है। जब तक सेल न हो। एविएशन एनालिसिस ग्रोथ और जोखिम दोनों बताते हैं।

रहने की जगह: वैल्यू स्टे, होमस्टे और छोटे ब्रांड्स बढ़ रहे हैं

दो ट्रेंड्स ने सस्ता रहना आसान किया है।  

एग्रीगेटर और माइक्रो-ब्रांड्स: प्लेटफॉर्म्स और लोकल चेन्स टियर-2-3 शहरों में स्टैंडर्ड बजट रूम दे रहे हैं। क्लीन बेड है। हॉट वॉटर है। वाई-फाई है। फिक्स प्राइस पर। मिडिल क्लास को सेफ्टी और हाइजीन की टेंशन कम होती है।  

होमस्टे और कम्युनिटी स्टे: स्वदेश दर्शन और सस्टेनेबल टूरिज्म से होमस्टे बढ़े हैं। सस्ते हैं और असली अनुभव देते हैं। मंत्रालय होस्ट्स को ट्रेनिंग और लिस्टिंग दे रहा है।  

नंबर: पॉपुलर सर्किट में बजट होटल रूम लो सीजन में 1,000-3,000 रुपये/रात है। होमस्टे और गेस्टहाउस इससे कम हैं। फेस्टिवल ऑफ-सीजन और मानसून डिस्काउंट बुकिंग बढ़ाते हैं।

खाना और एक्टिविटी: लोकल फूड और कम खर्च अनुभव

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स्ट्रीट फूड और लोकल ढाबे बजट बढ़ाते हैं। एक स्ट्रीट मील 50-200 रुपये है। फैमिली एक रेस्तरां मील + स्ट्रीट से 1,000 रुपये में खा लेती है। लोकल ट्रेक, मंदिर विजिट, छोटे म्यूजियम 300 रुपये से कम हैं। फ्री नेचर डे जैसे बीच, पार्क, हाइक। एक पेड एक्टिविटी जैसे बोट राइड, जीप सफारी। इससे यादें और बचत दोनों होती हैं।

बुकिंग के स्मार्ट तरीके क्या हैं

  • ट्रैवल-टेक ऑपरेटर्स और मार्केट पैटर्न से पांच टिप्स निकले हैं।  
  • ट्रेन पहले बुक करो। फ्लाइट बाद में बुक करो। लंबी दूरी ट्रेन से। शॉर्ट लेग फ्लाइट से।  
  • वीकडे ट्रैवल करो। वीकेंड और छुट्टी से बचो। होटल-एयर किराया कम पड़ता है।  
  • फ्लैश सेल और बैंक डिस्काउंट यूज करो। फेस्टिवल या डबल डिजिट डे पर बुकिंग करो। 10-20% बचत होती है।  
  • रिफंडेबल रूम बुक करो। प्राइस मैच रखो। दाम गिरे तो री-बुक या क्लेम करो।  
  • छोटी ट्रिप्स ज्यादा बार लो। 10 दिन की बजाय 2-4 दिन की कई ट्रिप्स लो। सालाना खर्च वही रहता है। अनुभव ज्यादा मिलता है।  
  • ये तरीके ट्रैवल साइट्स और ऑपरेटर रिपोर्टिंग में दिखते हैं।

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टेक्नोलॉजी और पेमेंट: यूपीआई, ऐप्स और डिजिटल वॉलेट

यूपीआई, वॉलेट, फ्लाइट-होटल एग्रीगेटर और IRCTC मोबाइल बुकिंग बजट ट्रैवल की रीढ़ हैं। यूपीआई से स्ट्रीट फूड और गाइड तक कैशलेस होता है। सेफ्टी और ट्रैकिंग आसान होती है। प्लेटफॉर्म्स यूपीआई और बैंक ऑफर्स जोड़ते हैं। मिडिल क्लास को खर्च का हिसाब रखना आसान होता है।

होटल, एयरलाइंस और एग्रीगेटर कैसे बदल रहे हैं

होटल: बजट चेन्स शॉर्ट स्टे के लिए फैमिली डील दे रही हैं। रूम + ब्रेकफास्ट + लोकल ट्रांसफर। ऑफ-सीजन प्राइस रखती हैं।  

एयरलाइंस: पॉइंट-टू-पॉइंट कैपेसिटी बढ़ा रही हैं। एंसिलरी बंडल दे रही हैं। लॉयल्टी और फैमिली पैक ट्रायल कर रही हैं।  

एग्रीगेटर और फिनटेक: फ्लैश सेल दे रही हैं। बाय नाउ पे लेटर दे रही हैं। बैंक पार्टनरशिप से शॉर्ट टर्म अफोर्डेबिलिटी दे रही हैं।  

सप्लाई यानी डिस्काउंट इन्वेंटरी और डिमांड यानी कॉस्ट सेंसिटिव का तालमेल मिडिल क्लास ट्रिप को जिंदा रखता है।

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