दिल्ली की लड़की: जो पहाड़ों को अपना दिल दे बैठी है
और फोन पर आया नोटिफिकेशन
अब ऐसे में अगर आपकी ना सिर्फ घर से निकलने की चाहत जाग रही है बल्कि राज्य बदलने की है तो इसके लिए आपको कायनात ही लगानी थी, सो मैंने लगाने की ठान ली। काफी दिन चली मशक्कत के बाद जैसे ही मेरे फोन पर इस बात का नोटिफिकेशन आया कि अब लॉकडाउन के नियम बदल गए हैं। आप पूरी सुरक्षा अपनाते हुए कहीं भी आ जा सकते हैं तो मानो लगा बस मिल गयी चाभी। अब मन अपनी चाहत के दरवाज़े खोल ही देगा। ऐसे में मानो बैकग्राउंड से एक आवाज़ आ रही थी और वो फैज़ अहमद फैज़ की लिखी नज़्म सुना रही थी -
दिल की बेसूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार,
चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़.
कुछ सामान्य प्रक्रियाएं थीं जिन्हें पूरा किया और तय हुआ कि मेरी मंजिल मनाली, हिमाचल प्रदेश है। बसें अभी भी बंद थीं, इसीलिए कैब बुक करनी पड़ी। तय तारीख आते ही शाम 6 बजे मैं दिल्ली के दिल राजीव चौक पर थी। कैब वहीं से मिलनी थी, कोरोना के दौर में लगे लॉकडाउन के बाद लगने लगा था कि ना जाने अब कब नदी-पहाड़ देखूंगी, लेकिन इस सवाल का जवाब एक लम्बे इंतज़ार के बाद उस दिन राजीव चौक पर मिल गया था कि बस अब कुछ देर और...
मैं पूर्णिमा, जोकि दिल्ली में पली बढ़ी, यहीं से पढ़ाई और इसी दिल्ली के साथ पक्की वाली यारी। आज जब पहाड़ पर जाने से दिल्ली ने मुझे ट्रैफिक में फंसा लिया है तो मेरा मन ही मन इसे बहुत झगड़ा भी हुआ। जैसे दिल्ली ने ठान लिया हो कि मैं उसे छोड़ कर ना जा सकूँ। मैंने उसे यक़ीन दिलाया कि मैं तुम्हें छोड़ कर नहीं जा रही बस कुछ दिन के लिए... मैं लौट आऊंगी। लौट आने के वादे को लेने के बाद दिल्ली ने 3 घंटे से ट्रैफिक से आज़ादी दे दी। दिल्ली से मनाली का सफ़र शुरू हो गया। कार के शीशे अब ऊपर कर लिए थे। कुछ पुराने गाने और शांत होता मन, बस इतना ही था उस वक़्त। कार के सामने वाले शीशे से जैसे मुझे पहाड़ दिखने लगे थे।
अचानक तेज हॉर्न और कुछ आवाज़ से आँख खुली तो देखा कि पंजाब-हिमाचल बॉर्डर पर हम फिर अटक गए हैं। रात के क़रीब 2 बज रहे थे। सुबह के पांच बजने को आये... अब लग रहा है कि इस अटकन से आज़ादी मिल जाएगी और कुछ देर में मिल भी गयी। कितना मुश्किल होता जा रहा है सफ़र, लेकिन एक विश्वास था- पहाड़ों में पहुंच तो जाएंगे ही जाएंगे। कोरोना टाइम पर कुछ सरकारी आदेश थे उनका पालन करना भी बेहद ज़रूरी था। आखिर ये आपकी ही ज़िन्दगी का सवाल जो है, बॉर्डर पर हमारी गाड़ी का नंबर से लेकर हमारे बारे में जानकारी को लिखा गया। टेम्प्रेचर की जांच और कुछ जानकारी लिए जाने के बाद हमें जाने को कह दिया गया।
दिन निकल आया था। मेरे सामने पहाड़ थे, आखिरकार इतने सब के बाद मैं हिमाचल में थी। मनाली में जाकर मेरा पिछले काफी समय से एक ही ठिकाना रहा प्रीत बोर्डिंग हाउस जोकि अब दूसरा घर जैसा हो चुका है। वहां पहुंच कर फ्रेश होना और कुछ देर का आराम, लेकिन फिर उठकर वहां पास में मौजूद नदी के पास चले जाना। घंटों वहां अकेले बैठे रहना जैसे मैं उस वक़्त वहां का पूरा वातावरण ओढ़ रही थी। बस मनाली के साथ पहला दिन ऐसा ही बीता। वहां से लौटकर कॉटेज आ गयी। खाना खाया और खिड़की से बाहर देखते देखते सो गयी।
अगली सुबह एक नई सुबह थी। चिड़ियों की आवाज़ से लेकर रेडियो पर चल रहा पहाड़ी गाना। मैंने आज का दिन पूरा मनाली पैदल घूमने के लिए सोच कर कॉटेज से तैयार होकर निकल गयी लेकिन ये पैदल सफ़र ओल्ड मनाली की तरफ जाते एक कच्चे रास्ते से तय करने का था। अगर आप भी कभी प्रीत बोर्डिंग हाउस जाएं तो वहां किसी से भी इस रास्ते के बारे में पूछ सकते हैं। आस-पास लम्बे घने पेड़ों के बीच से निकला कच्चा रास्ता आपको ओल्ड मनाली तक पहुंचा देगा।
वहां पहुंच कर मैं मनु मंदिर गयी, कोरोना के चलते शायद इसे अभी बंद ही रखा गया है। मनु मंदिर के बारे में कहां जाता है कि ये पूरा भारत में इकलौता ऐसा मंदिर है को महर्षि मनु को समर्पित है। कहते हैं मनाली का नाम भी महर्षि मनु के नाम पर पड़ा।
मैं मनाली क़रीब 15 बार आ चुकी हूं, लेकिन इस बार सब बदला बदला सा है। कोरोना ने सब कुछ बदल दिया। सड़कों पर कुछ 10 बीस लोग और हवा में एक अलग सी नमी, ये नया था। सड़कों के पास ज्यादातर दुकाने बंद। सब जैसे थम गया था, मेरे लिए ये काफी ख़ास है। सब एकदम शांत, यही तो चाह रही थी मैं। चलते- चलते मैं एक प्राचीन गुफ़ा मंदिर पहुंच गयी। भारतीय महाकाव्य महाभारत के बलशाली भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को समर्पित यह मंदिर मनाली में सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसे ढुंगरी मंदिर भी कहते हैं। जंगलों के बीचों बीच बना ये मंदिर बेहिसाब ख़ूबसूरत है। यहां मैंने हमेशा एक ही दुआ मांगी कि यहां से जाने के बाद फिर जल्दी लौट सकूं। शायद ये इसी मंदिर में मांगी दुआ का असर है कि इस मुश्किल समय में एक बार फिर मैंने यहां माथा टेका।
मंदिर से निकल कर मैंने वापस कॉटेज का रास्ता चुना। अब थक चुकी थी, सूरज भी ढलने को है। ये दिन बस इतना ही था। अगले दिन मैंने उस पहाड़ पर जाने का सोचा जो मुझे रोज़ खिड़कियों से नजर आ रहा था। वहां एक वाटरफॉल भी है, जोगनी वाटरफॉल। बस ये दिन उसी वाटरफॉल के नाम। मेरा अगले दिन का सफर भी शुरू हो गय। कुछ किलोमीटर की ट्रेकिंग, एक छोटी नदी और दो बड़ी नदियों को पार करने के बाद आखिरकार मैं वहां पहुंच गयीं जो मैं अपने कमरे की खिड़की से रोज़ देख रही थी।
पहाड़ों से गिरते उस पानी की फुहारें जैसे ही मेरे चेहरे अपर पड़ीं तो मानो मेरे सारे दर्द छू मंतर हो गए। ये वाटरफॉल डेढ़ सौ फीट लंबा है। इतना सुन्दर मानो भगवान शिव यहीं अपने केश धोने आते होंगे। यहां एक मेडिटेशन ज़ोन भी है तो इसलिए यहां तेज बोलना या म्यूजिक बिलकुल मना है। यहां आप एक साथ 4 से पांच इन्द्रधनुष कभी भी देख सकते हैं। बिना पलक झपकाए इसे आंखों में उतार लिए जाने के सिवा दूसरा कोई आप्शन आपको भी नहीं मिलने वाला जैसा मुझे नहीं मिला था।
वहां जाने वालों को यही कहूंगी कि ये रास्ता काफी खतरनाक है, इसलिए यहां अगर जाएं तो दिन ही दिन में लौट भी आएं। मैं भी कॉटेज लौट आई थी, गाना चल रहा था। अचानक सुनती हूं - ये इश्क हाय, बैठे बिठाए, जन्नत दिखाए... याद आया अरे ये भी तो यहीं मनाली में शूट हुआ है। तो अगले दिन का प्लान सेट, मैं मनाली से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर नग्गर कासल जा रही हूं। पूरे हिमाचल की सबसे ख़ूबसूरत टूरिस्ट डेस्टिनेशन नग्गर में एक नहीं कई गानों की शूटिंग हुई है। ये बेहिसाब सुन्दर है, बताते हैं इस जगह को राजा सिध सिंह द्वारा 1460 AD में बनाया गया था, जिसे अब हिमाचल टूरिज्म ने एक हैरिटेज होटल में तब्दील कर दिया है।
मैं वापस आऊंगी
यहां आप चाहे तो रह भी सकते हैं। यहां से आप नीचे मनाली का पूरा व्यू ले सकते हैं। वैसे इस जगह के लिए मैं इतना ही कहूंगी कि अगर आप मनाली गए और यहां नहीं आये तो आपकी ट्रिप अहूरी ही रहेगी। इस बार मनाली में कुछ नए लोग मिले, नई जगह देखी, जिनमें से एक था “Michael hook cafe” जो कि एकदम नदी किनारे था। यहां बैठकर आप चाय और नदी के संगीत दोनों का एकसाथ आनंद उठा सकते हैं। ऐसे ही मैंने मनाली को रोज़ाना घूम-घूम कर आंखों में फिर से भर लिया था। यहां आने के बाद जाने का मन तो नहीं होता है, लेकिन लौटना पड़ता है कहीं फिर से लौट जाने के लिए। मुझे मनाली फिर आना है और आते रहना है। एक हफ्ता कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। अब जाने का वक़्त है, मन्दिर में फिर वापस बुलाने की अर्ज़ी डाल आई हुईं। कार स्टार्ट हो चुकी है। मनाली के लोग और ख़ुद मनाली मुझे विदा कहने के लिए बाहर दिख रहा है। इसे छोड़ कर जाना मुश्किल है, लेकिन मैं यहां आती रहूंगी। तब तक जब तक मनाली मुझे ज़बरदस्ती रोक नहीं लेता।
मनाली से वापस दिल्ली और फिर वैसे ही रोज़ वाले दिन, लेकिन मनाली अभी भी सांसों में महक रहा है। मैं फिर जाऊंगी। उससे पहले आप कब जाने का प्लान कर रहे हैं?
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