जापान के इस मंदिर में होती है शराब और अंगूरों की पूजा

क्या है इसकी कहानी?
मंदिर के मुख्य पुजारी टेशु इनौ के अनुसार, मंदिर उस जगह पर बनाया गया है, जहां एक प्रसिद्ध जापानी बौद्ध भिक्षु और यात्री, जिसका नाम ग्योकी था, 718 ई. में चिकित्सा बुद्ध (Medicine Buddha) से मिला था। मेडिसिन बुद्ध को एक चिकित्सक माना जाता है जो अपनी शिक्षाओं व दवा का उपयोग करके इलाज करता है।
बौद्ध भिक्षु ग्योकी ने अपने सपने में, चिकित्सा बुद्ध को अंगूरों का एक गुच्छा पकड़े हुए देखा और यही इस मंदिर की नींव के पीछे प्रमुख प्रेरणा है। एक वजह यह भी है कि यमनाशी लोग औषधीय इस्तेमाल के लिए शराब का उपयोग करने में विशेषज्ञ हैं। स्थानीय किंवदंती के अनुसार, ग्योकी ने ही स्थानीय लोगों को अंगूर की खेती करना सिखाया।
Daizen-ji को जापान के लोग अंगूर मंदिर के नाम से भी जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जापान में अंगूर की खेती यहां 8वीं शताब्दी में शुरू हुई थी। उसी समय के आसपास यह मंदिर बनाया गया था। यह मंदिर एक विनयार्ड से ढकी पहाड़ी पर स्थित है, जो बहुत सुंदर लगता है। यहां आप जिधर नज़रें घुमाएंगे आपको अंगोर ही नज़र आएंगे। मंदिर का मुख्य हॉल बेहद खूबसूरत है, यह कामाकुरा काल (1192-1333) का है। मुख्य द्वार से मुख्य भवन तक जाने वाली सीढ़ियों के साथ मंदिर अद्भुत दिखता है। मुख्य द्वार (सैनमोन गेट) का निर्माण 1798 में हुआ था, जबकि मुख्य भवन (यकुशी-डो) 1286 में बनाया गया था। मंदिर की वेदी पर, अंगूर और शराब की बोतलें प्रसाद के रूप में रखी जाती हैं।

यहां हाथ में अंगूर का एक गुच्छा पकड़े हुए यकुशी न्योराई की एक मूर्ति और एक छोटा मंदिर भी है। सोने से सजाई गई इस मूर्ति को कीमती और पूजनीय माना जाता है। इसे हर पांच साल में सार्वजनिक रूप से दिखाया जाता है। मंदिर में आने वाले यात्री और भक्त ज्यादातर मंदिर के नाम वाले अंगूर और शराब की बोतलें खरीदते हैं।
यहां रुक भी सकते हैं
मंदिर की एक और सबसे अच्छी बात यह है कि यहां कोई भी ठहर सकता है। यहां बौद्ध भिक्षु के परिवार ने एक आवास की व्यवस्था कर रखी है, जहां एक नाश्ता और रात का खाना भी परोसा जाता है। इतना ही नहीं, मेहमान बौद्ध भिक्षु की बनाई गई शराब को भी आजमा सकते हैं।
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यमनाशी लोग औषधीय इस्तेमाल के लिए शराब का उपयोग करने में विशेषज्ञ हैं।