धरोहरें जो यूपी को बनाती हैं बाकी राज्यों से अलग

श्रृंखला पाण्डेय 29-02-2020 03:42 PM My India
भारत की विरासतें दुनिया भर में अपनी अद्भुत बनावट और महत्व के कारण फेमस हैं। देश के अलग-अलग राज्यों में कोई न कोई ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो न केवल पर्यटकों के सामने बरसों पुराने इतिहास को दोबारा दोहराती हैं बल्कि अपनी खूबसूरत कलाकृतियों से उनको अपना कायल भी कर लेती हैं। यूपी भी उन राज्यों में शामिल है, जहां अनेक संस्कृतियां और परंपराएं पली-बढ़ी हैं। इस राज्य ने कई धरोहरों को बड़े सलीके से संभाल कर रखा है। फिर वो हर धर्म से परे, बेशुमार मोहब्बत की निशानी ताजमहल हो या फिर नवाबों के शहर लखनऊ में वास्तुकला का सबसे नायाब उदाहरण इमामबाड़ा। ये सब मिलकर ही यूपी को खास बनाते हैं और पर्यटकों की पसंद भी।  

ताजमहल

ताजमहल को दुनिया-भर में मोहब्बत की एक जिंदा निशानी के तौर पर देखा जाता है और सारी दुनिया के आशिक कहीं न कहीं इससे अपना रिश्ता जोड़ ही लेते हैं। शायद ही कोई ऐसा पर्यटक हो जो आगरा आए और बिना ताजमहल देखे लौट जाए। या यूं कहें कि दुनिया के सात अजूबों में शामिल सफेद संगमरमर से बनी इस बेमिसाल इमारत के दीवाने सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। ताजमहल में एंट्री करने के लिए तीन गेट हैं जो पूरब, पश्चिम और दक्षिण में हैं। इन तीनों गेट में जिस गेट पर लोगों की भीड़ सबसे कम होती है वो है पश्चिमी गेट। यमुना नदी के तट पर बसे ताजमहल को मुगल शासक शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की मोहब्बत में बनवाया था।  ताजमहल के अलावा इस शहर की एक और चीज मशहूर है और वो है आगरा का पेठा, जिसे एक बार खाया तो इसका स्वाद आपकी जबान पर चढ़ जाएगा। आगरा घूम लिए हों तो थोड़ा और आगे बढ़िए, उत्तर प्रदेश के आगरा से 35 किमी दूर फतेहपुर सीकरी में हिंदू व पारसी वास्तुकला को खुद में संजोए है, फतेहपुर सीकरी। अकबर ने फतेहपुर सीकरी को बसाया था इसलिए इसे अकबर के सपनों का नगर भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने इसे बड़े मन से बनवाया था। इसे तैयार करने में 15 साल लग गए थे। फतेहपुर बनने के बाद इसे कुछ समय के लिए मुगल सल्तनत की राजधानी भी बनाया गया। यहां देखने लायक जगहों में बुलंद दरवाजा, दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, ख्वाब महल, जोधाबाई का महल और पंचमहल है। विश्व धरोहरों में शामिल फतेहपुर सीकरी भारत में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगहों में से एक है। इसके अलावा आगरा में आगरा फोर्ट है। आगरा का किला मुगलों द्वारा निर्मित सबसे खास स्मारकों में से एक है और इसमें काफी भव्य इमारतें हैं। यह मुगल शैली की कला और वास्तुकला का एक खूबसूरत नमूना है। लाल बलुआ पत्थरों से बनी इस इमारत को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं और यही वजह है कि आगरा को दुनिया में सबसे ज्यादा पर्यटकों का सत्कार करने का मौका मिलता है। ये शहर अपनी संस्कृति, कला और दर्शन के लिए जाना जाता है, जो बरसों से इसकी पहचान बनी है। 

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इमामबाड़ा

गोमती नदी के किनारे बसा लखनऊ अपनी तहजीब और अदब के लिए फेमस है। यहां आपको कला और संस्कृति दोनों देखने को मिलेगी और इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है यहां का इमामबाड़ा। इसे भूलभुलैया के नाम से भी जाना जाता है। इस इमामबाड़े को आसफउद्दौला ने 1784 में अकाल राहत के लिए बनवाया था। कहते हैं कि उस साल लखनऊ में भुखमरी हो गई थी, इससे जनता को बचाने के लिए नवाब ने इमामबाड़ा का निर्माण करवाया जिसकी वजह से बहुत से लोगों को रोजगार मिला था।  इसकी एक खासियत ये भी है कि ये न तो मस्जिद और न ही मकबरा। इस विशालतम इमारत में तीन बड़े कक्ष हैं, जिसकी दीवारों के बीच लंबे गलियारे बने हैं ये काफी चौड़े हैं। असल में यहां 1000 से भी ज्यादा छोटे रास्ते हैं जो देखने में एक जैसे ही लगते हैं, लेकिन ताज्जुब करने वाली बात यह है कि ये सभी अलग-अलग रास्ते पर निकलते हैं, कुछ तो ऐसे भी हैं जिनके सिरे बंद हैं। इसके अंदर एक बावड़ी भी है जो सीढ़ीदार कुएं की तरह बनी है, इसकी बनावट देखकर आपको थोड़ी हैरानी भी होगी। इस इमारत की कल्पना और कारीगरी कमाल की है, इसमें ऐसे झरोखे बनाए गये हैं जहां वे मेन गेट से अंदर आने वाले हर इंसान पर नजर रखी जा सकती है जबकि वह झरोखे में बैठे इंसान को नहीं देख सकता। ऊपर जाने के तंग रास्तों में ऐसी व्यवस्था की गई है ताकि हवा और रोशनी दोनों आती रहें। यही नहीं यहां की दीवारों को इस तकनीक से बनाया गया है कि कोई अगर फुसफुसाकर भी बात करे तो दूर तक भी आवाज साफ सुनाई पड़ती है। इमामबाड़े का हॉल दुनिया में सबसे बड़ा गुंबदकार छत वाला हाॅल है इसके अंदर सिर्फ गलियारों को छोड़कर कहीं भी लकड़ी का इस्तेमाल नहीं हुआ है। नवाब साहब यहां बैठकर जनता की समस्याएं सुनते थे। इमामबाड़ा की वास्तुकला मुगल शैली को प्रदर्शित करती है, जो पाकिस्तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है और इसे दुनिया की पांच सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक का दर्जा दिया गया है। इसके डिजाइन की खासियत ये है कि इसमें कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है और ना ही किसी यूरोपीय शैली या वास्तु कला को शामिल किया गया है। इसके ऊपर वाली मंजिल पर भूलभुलैया है, ये एक अनसुलझी पहेली की तरह है जिसमें अगर आप भटक जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। इसकी छत पर खड़े होकर लखनऊ का नजारा बेहद खूबसूरत लगता है। इमामबाड़े का ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि धार्मिक महत्व भी है, मुहर्रम के समय में यहां से ताजिया का जुलूस निकाला जाता है जो कि बहुत फेमस है। 

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सारनाथ

सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा एक बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में ही दिया था जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया गया और यही कारण है कि यहां बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों की मान्यता है। यह चार प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों में एक है, सम्राट अशोक ने यहां कई स्तूप बनवाए थे और यहीं अशोक स्तम्भ भी बनवाया था। इसके साथ ही यहां कई सारे स्मारक व बौद्ध ढांचे हैं जिन्हें देखने के लिए पर्यटक दूर-दूर से आते हैं। बौद्ध मान्यताओं के साथ यहां डीयर पार्क भी है, जो पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। डीयर पार्क में स्थित धमेख स्तूप वो जगह है, जहां पर गौतम बुद्ध ने ‘आर्य अष्टांग मार्ग’ का संदेश दिया था। यहां के स्तूपों के अलग-अलग महत्व हैं जैसे चौखंडी स्तूप में बुद्ध की हड्डियां रखी गई थीं। चार भुजाओं वाले आधार पर ईंटों से बनी इस विशाल संरचना की ऊंचाई 93 फीट है। चौखंडी स्तूप इसलिए भी खास है क्योंकि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध जब सारनाथ आए तो इसी जगह उनकी भेंट उन पांच भिक्षुओं से हुई थी, जिन्हें उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था। यहां से थोड़ी दूर पर थाई मंदिर है जो बहुत सुंदर और विशाल है। मंदिर के अंदर कई बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं जिन्हें जापानी चित्रकार कोसेत्सू नोसे ने बनाया था। इसके अंदर भगवान बुद्ध की सोने की प्रतिमा है। सारनाथ में इनके अलावा जैन मंदिर, सम्राट अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, सारनाथ म्यूजियम आदि और भी कई घूमने लायक जगहे हैं। 

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आनंद भवन

ऐतिहासिक धरोहरों की बात हो और प्रयागराज के आनंद भवन का नाम न आए ऐसा कैसे हो सकता है। प्रयागराज रेलवे स्टेशन से लगभग 4 किमी दूर पर बने आनंद भवन में इतिहास की कई कहानियां सिमटी हैं। आनंद भवन में पहले नेहरू के परिवार के लोग रहते थे जो अब संग्रहालय में बदल चुका है। इतिहास प्रेमियों को ये जगह काफी भाती है क्योंकि यहां जानकारियों का पिटारा है। आनंद भवन के अंदर गांधी व नेहरू परिवार की कई सारी पुरानी निशानियां अभी भी संभाल कर रखी गई हैं। इसके बगल में ही एक मूर्तिकला का संग्रहालय है जिसे इलाहाबाद संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंदर आपको टेराकोटा व वास्तुकला से जुड़ी कई सारी वस्तुएं देखने को मिलेंगी। मोतीलाल नेहरू ने जब इसे खरीदा था तो ये एक बूचड़खाना था। उन्होंने इसे नए तरीके से बनवाया और यूरोप व चीन से फर्नीचर मंगवाकर इसे सजवाया था। इस म्यूजिम में बहुत सारे कमरे थे जिन्हें अब शीशे के अंदर सुरक्षित रखा गया है। इसमें लाइब्रेरी, रसोई घर, चाचा नेहरू का कमरा, मीटिंग हॉल,गांधी जी का चरखा शामिल है। इस भवन के प्रवेश द्वार पर एक शिलाखंड है जिसे ‘प्रहरी चट्टान’ के नाम से जाना जाता है। इस पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्द अंकित हैं, उन्होंने चंद शब्दों में इस भवन के पूरे इतिहास को सामने रखने की कोशिश की है। नेहरू ने लिखा है, ‘यह भवन ईंट-पत्थर के ढांचे से कहीं अधिक है। आगे बढ़ने पर नेहरू परिवार की बैठक का कमरा है, जहां वो अपने मित्रों व अतिथियों से मिला करते थे। आज भी यहां उस वक्त की चीजों को सहेजकर रखा गया है, पीछे की ओर एक बरामदा है जहां इंदिरा गांधी और फीरोज गांधी का विवाह हुआ था। इसके अलावा अकबर का किला, अशोक स्तंभ, पातालपुरी मंदिर, आलोपी देवी मंदिर, चंद्रशेखर आजाद स्मारक भी घूम सकते हैं।  

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रामनगर का किला

रामनगर का किला वाराणसी के रामनगर में है। इसे 1750 में काशी नरेश बलवन्त सिंह ने बनवाया था। ये किला क्रीम कलर वाले चुनार के बालूपत्थर से बना है जो यूपी के मिर्जापुर से लाए गए थे। इस किले में मुगलकाल की वास्तुकला का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। ऊंची-ऊंची सफेद मीनारें व मेहराब इसकी शोभा को और बढ़ा देते हैं। किले की दीवारों पर बहुत पुराने शिलालेख अभी भी मौजूद हैं। ये किला गंगा के तट पर काफी ऊंचाई पर बनाया गया था जिससे बाढ़ का इसपर कोई असर न हो सके। मुगल स्थापत्य कला के हिसाब से बने इस किले में एक म्यूजियम भी है, जिसे सरस्वती भवन के नाम से जाना जाता है। किले में दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर और वेद व्यास मंदिर है। माना जाता है कि महाभारत के समय वेद व्यास यहीं और यहीं तप करते थे। यही कारण है कि रामनगर को व्यास काशी भी कहा जाता है। किले के अंदर मौजूद म्यूजियम में मुगल कालीन वस्तुएं, बहुत पुरानी बंदूकें, विंटेज कारें, रॉयल पालकी, हाथी के दांत और बहुत पुरानी किताबें। किले में एक चीज और है जो लोगों को अपनी ओर खींचती है वो है यहां की एस्ट्रोनॉमिकल वॉच जो समय, दिन, महीना, साल के साथ सूर्य और चंद्रमा की भौगोलिक स्थितियों के बारे में भी बताती है। रामनगर के किले में दस दिनों तक चलने वाली रामलीला को देखने देश दुनिया से लोग आते हैं। ये किला रोजाना सुबह 10 बजे खुलता है और शाम 5 बजे बंद हो जाता है। इस भव्य किले को साल में कभी भी घूमा जा सकता है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के महीने में इसे देखने का सबसे अच्छा समय है।

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