World Book Day/ विश्व पुस्तक दिवस पर जानें मानचित्र और ऐटलस का सफर

टीम ग्रासहॉपर 23-04-2020 06:10 PM Around The World
किताबें, सैर कराती हैं दुनिया की। फूलों की, पत्तियों की, नदियों की, झरनों की, पहाड़ की, आसमान की, ज्ञान की, विज्ञान की, बदूकों की, तोपों की, बम और रॉकेटों की भी। अद्भुत, अनोखा, अनकहा और रोमांचक अहसासों से हमारे अंदर  निर्माण कराती हैं एक नए संसार का। पर क्या आपने सोचा है कि पहले दुनिया की सैर कैसे होती थी। वो नदी, झरने, पर्वत और रेगिस्तान के बारे में कौन बताता था। 

आज से लगभग 500 साल पहले जब गूगल (Google) नहीं था, सैटेलाइट नहीं थे और ऐटलस की किताब नहीं थी तो कैसे पता चलता था कि फलां देश समुद्र किनारे बसा है या फिर रेगिस्तान पर। आज तो बिना भटके हम फर्राटा भरते और कदम गिनते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं लेकिन पहले कैसे पता चलता था कि कितने महाद्वीप हैं, कितने समुद्र हैं, लंदन कहां है, पेरिस किस चिड़िया का नाम है, अमेरिका कहां है, चीन कहां और रशिया कितना विशाल है। इन विभिन्न जगहों को खोजने के दौरान कितना भटकना पड़ता था? आज विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) पर हम आपको बताएंगे विश्व के पहले मानचित्र (Map) और किताब की शक्ल लेते ऐटलस के बारे में।

बात दुनिया के पहले नक्शे की

बात उस समय की है जब विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) जैसे किसी दिन के बारे में कोई नहीं जानता था। उस समय दुनिया के नक्शे की आधी अधूरी तस्वीरें पेश की जाती थीं और नक्शे बनाने का केंद्र होता था इटली। इटली और उसके पड़ोसी स्पेन के व्यापारी दुनिया की खोज में निकलते थे। यात्रा में की गई खोज और अनुभवों के आधार पर नक्शे तैयार किए और सुधारे जाते थे

इन सबके बावजूद दुनिया का पूरा नक्शा बनने में काफी लंबा समय लगा। माना जाता है कि 1488 में पहली बार यूरोप द्वारा दुनिया का पहला नक्शा (Map) तैयार किया गया। चमड़े पर तैयार किया गया यह मानचित्र बेहद खूबसूरत और मनमोहक था क्योंकि इसे विभिन्न रंगों और कलाकृतियों से सजाया गया था। इसे वेनिस के ही मानचित्रकार (Map Designer) जियोवान्नी लिआर्दो ने बनाया और नाम दिया प्लेनिस्फेरो।

वैज्ञानिक फॉर्मूले और ईसाई प्रभाव वाला मानचित्र

माना जाता है कि इस नक्शे की बुनियाद यूनानी-रोमन स्कॉलर टॉलेमी के भूकेंद्रीय मॉडल, बुत परस्तों के निशान, अरबी भौगोलिक सिद्धांत, ईसाइयों की श्रद्धा और वैज्ञानिक फॉर्मूले के आधार पर रखी गई थी। नक्शे (Map) में विभिन्न प्रायद्वीपों के उस हिसाब से नाम रखे गए थे, जो उस समय यूरोप के लोगों के बीच प्रचलित थे। 

नक्शे के चारों ओर 6 दायरे बनाए गए और उनमें छोटे-छोटे अंक और अक्षर लिखे गए। खास बात यह है कि इन्हें सिर्फ सजाने के लिए नहीं लगाया गया था बल्कि इनके जरिए चांद्रमा की गति से लेकर मौसम और त्योहारों का चक्र समझने में मदद मिलती थी।

आज भी मौजूद 3 नक्शे

इससे पहले आगे बढ़ें चलिए पहले मानचित्रकार (Map Designer) जियोवान्नी लिआर्दो द्वारा मैप को दिए गए नाम प्लेनिस्फेरो का मतलब समझ लेते हैं। यह एक लैटिन भाषा का शब्द है, जिसमें प्लेनस का अर्थ चपटा और स्फेरस का अर्थ गोला होता है। यूं तो दोनों के अर्थ में विरोधाभास है लेकिन मानत्रिच (Map) और ग्लोब (Globe) को एकसाथ रखकर देखेंगे तो मतलब साफ हो जाएगा।

कहते हैं कि जियोवान्नी लिआर्दो द्वारा 1442 में बनाए गए उनके दस्तखत वाले विभिन्न नक्शों में सिर्फ तीन ही शेष बचे हैं। सबसे पुराना नक्शा इटली के शहर वेरोना की बिबलियोटेका कम्यूनेला नाम की लाइब्रेरी में आज भी सुरक्षित रखा है। इसके अलावा लिआर्दो का आखिरी मानचित्र 1452 का है, जो कि वर्तमान में अमेरिकन जियोग्राफिकल सोसाएटी लाइब्रेरी में है।

नक्शे को आधार बनाकर लिखी गईं किताबें

विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) पर जो लोग घूमने के शौकीन हैं, वे मैप और इनपर आधारित किताबों को बखूबी पढ़ते हैं। जिस दौर में विभिन्न नक्शे तैयार किए गए, उस दौरान नक्शों के आधार पर बड़ी संख्या में किताबें लिखी गईं। इन किताबों में नक्शों की मदद के जरिए दुनिया के मूल स्वरूप से लोगों को रूबरू कराया गया। बताया जाता है कि इटली के शहर वेनिस में स्थित बिलियोटेका सिविका बर्टिलोनिया में नक्शों पर हजारों किताबें और हस्तलिपियां मौजूद हैं।

उस दौर में इटली के विसेन्जा शहर में अमीरों की तादाद काफी ज्यादा होती थी। ये लोग यात्रा के दौरान इस्तेमाल होने वाले नक्शों और किताबों को दान कर देते थे। इस लाइब्रेरी में मौजूद किताबें और नक्शे फैलाए जाएं तो 19 किलोमीटर लंबे होंगे। 15वीं और 16वीं शताब्दी में जब लोग नए इलाकों की खोज में जाते थे तो इन्हीं नक्शों और दस्तावेजों का इस्तेमाल करते थे।

जब पहली बार इटैलिक फॉन्ट का इस्तेमाल हुआ

1500 से पहले जितनी भी किताबें या हस्तलिपियां नक्शे पर आधारित थीं, उन सभी में वो पेज नहीं होते थे, जिसपर किताब की प्रस्तावना, किताब और लिखने वाले का नाम, तारीख आदि लिखी जाती थी। किताब पर नाम लिखने का चलन बाद में शुरू हुआ।

1500 के बाद अलदुस मनुटियस पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने इटैलिक फॉन्ट का इस्तेमाल किया और लगभग 130 किताबों को ग्रीक भाषा में छापा। उसके बाद जर्मनी के पेटरस अप्यानस ने 1524 में क्रॉस्मोग्राफिया नामक किताब लिखी। यह किताब भूविज्ञान की बारीकियों से रूबरू कराती है और 14 भाषाओं में छपी। बता दें कि पेटरस को नक्शे बनाने, गणित और खगोलशास्त्र के महारत हासिल थी। 

कंप्यूटर और कैलकुलेटर की मिसाल

क्रॉस्मोग्राफिया किताब दुनिया के उन शुरुआती नक्शों में से एक है, जिसमें पहली बार उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी किनारों को दर्शाया गया था। इसे कैलकुलेटर और कंप्यूटर की मिसाल के तौर पर देखा जाता था। इसी किताब के जरिए राशियों के निशान, सूर्य और चंद्रमा की गति को समझा जाता था। साथ ही यह किताब समुद्री यात्रियों को कई महत्वपूर्ण जानकारियां देती थी। 

पहले ऐटलस की रोचक कहानी

1570 में दुनिया का पहला ऐटलस (Atlas) छपा, नाम था थियेटर ऑफ द वर्ल्ड। इसे दुनिया का पहला आधुनिक नक्शा भी कहा जाता है। इसे अब्राहम ऑर्टेलियस ने तैयार किया था। यह पहला मौका था जब विभिन्न मानचित्रों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। 

सबसे मजेदार बात यह है कि किसी भी खास जगह को दर्शाने के लिए वहां की मशहूर चीज को निशान के तौर पर दर्शाया जाता था। जैसे कि रेगिस्तानों को दर्शाने के लिए ऊंट और खजूर का इस्तेमाल किया जाए। खास बात यह है कि इन नक्शों में इस्तेमाल किए गए रंगों की चमक आज भी बरकरार है। इसे बनाने के लिए कॉपर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था।

कई भाषाओं में छपा ऐटलस

जब यह ऐटलस आया तो दुनिया की विभिन्न जगह खोजने और घूमने के शौकीनों के हाथ जैसे एक अमूल्य खाजाना लग गया। यह किताब 1570 से 1612 तक जर्मन, फ्रैंच, डच, लैटिन समेत अन्य भाषाओं में छापी गई। हालांकि, उस दौर में इस किताब की कीमत अधिक होती थी। जिसके पास भी यह किताब होती उसे अमीर और बुद्धिजीवी समझा जाता था। 

यह किताब छपने के बाद नक्शों पर आधारित कई किताबें छपीं। हालांकि, दुनिया गोल है पहली बार यह एंतोनियो पिगाफेट्टा ने बताया। यह बात उन्होंने एक डायरी में लिखी। बाद में ये डायरी रोमन साम्राज्य के सम्राट चार्ल्स पंचम को गिफ्ट की गई। तो विश्व पुस्तक दिवस (World Book Day) पर आप भी ऐटलस से लेकर विभिन्न किताबों के जरिए क्वारंटीन के इस दौर में निकल पड़िए देश, दुनिया और इतिहास अनोखे सफर पर।

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