घूमने के शौकीनों के लिए कुदरत की नेमत है झारखंड
हवा की सनसनाहट सुनना कितना सुकून देता है न। मिट्टी की खुशबू का पीछा करते हुए मीलों चलते जाने का भी अपना अलग ही मजा है। घने जंगल की हरियाली से एकांत में बातें करने अहसास याद है न आपको। नदी की तरह बलखाती सड़कें और ऊंचाई से गिरते झरनों का शोर ही तो है जो मन में एक ठहराव पैदा करता है, वही ठहराव जिसकी तलाश हमें कभी पहाड़, कभी समुद्र तो कभी रेगिस्तान की सैर कराती है। तो आइए इस बार हम आपको ऐसी ही एक जगह ले चलते हैं, जहां दूर तक फैली जंगलों की खूबसूरती है और उन जंगलों से निकलते छोटे-छोटे झरने। हां, लेकिन एक वादा कीजिए कि आप किसी तरह के पूर्वाग्रह के साथ इस सफर पर नहीं जाएंगे। इसे अपने खूबसूरती के तय किए गए पैमानों से नहीं नापेंगे, क्योंकि बेतरतीबी ही इस हिल स्टेशन की खासियत है। चारों ओर से जंगल से घिरे रांची को देखकर लगता है कि प्रकृति ने अपना सौंदर्य इस शहर पर खुलकर लुटाया है। यहां हरे-भरे पेड़ों से घिरी पतरातू वैली के घुमावदार रास्ते, हुंडरू, दशम, जोन्हा फॉल और पतरातू, कांके, धुर्वा डैम आपको दोबारा आने के लिए मजबूर कर देंगे।
इसलिए खास है रांची
उत्तरी छोटा नागपुर की पहाड़ी पर बसे रांची का मौसम हर टूरिस्ट को रास आता है। अगस्त व सितंबर के महीने में यहां की बारिश आपका मन मोह लेगी। बारिश के महीनों में आपको इस शहर की हर शाम हल्की फुहार और काले बादलों के साथ वक्त बिताने का मौका देती है। तीन ओर से कैंट से घिरे इस शहर का अनोखा इतिहास है। कहते हैं ब्रिटिश काल में अंग्रेजों को क्रांतिकारियों से ज्यादा यहां के आदिवासियों ने परेशान किया। आदिवासियों के गुरिल्ला युद्ध के चलते अंग्रेजों को भारी नुकसान होता था। इससे निपटने के लिए रांची में तीन ओर से छावनियों का निर्माण किया गया। रांची की खास बात यह है कि यहां की खूबसूरत जगहों पर घूमने के लिए आपको ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। फिर चाहे वो डैम हों या झरने।
पतरातू घाटी
राजधानी रांची से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर समुद्रतल से लगभग 1300 की ऊंचाई पर स्थित पतरातू घाटी देश के खूबसूरत रास्तों में से एक है। यह बिलकुल गंगटोक-नाथुला, देहरादून-मसूरी जैसे मनमोहक रास्तों की तरह है। लगभग 15 किलोमीटर की इस घाटी में आपको रास्ते के दोनों ओर घने जंगल और पेड़-पौधों से रूबरू होने का मौका मिलेगा। काम के बोझ से दौड़ती और हांफती जिंदगी यहां आकर जरा ठहरी हुई और सुकून की सांस लेती नजर आती है। ऊंचाई पर बनी इस घाटी के घुमावदार रास्ते एक दिलकश नजारा पेश करते हैं। ऊंचे पहाड़ से होकर गुजरते रास्ते के बीच ड्राइविंग कर आपको रोमांचक अनुभव होगा। बारिश के मौसम में अक्सर टूरिस्ट इस घाटी की ओर रुख करते हैं, क्योंकि कभी बारिश की फुहार तो कभी बादलों की काली घटा उनके सफर को और भी खुशनुमा बना देती है। खनिज संसाधनों से परिपूर्ण झारखंड के इस शहर में आपको स्टील के प्लांट भी देखने को मिलेंगे। इस वैली के सफर में आगे बढ़ते हुए आपको पतरातू बिजली संयंत्र को भी करीब से जानने का मौका मिलेगा और आखिर में आप पतरातू डैम पर पहुंचते हैं, जहां घूमते और वॉटर स्पोर्ट्स एक्टिविटी करते हुए आप पूरा दिन बिता सकते हैं। पतरातू वैली से नीचे उतरते हुए और डैम की ओर बढ़ते हुए आप आदिवासियों के रहन-सहन और संस्कृति को करीब से जान सकते हैं और अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो करमा पूजा के मौके पर थिरकते आदिवासियों के उत्सव का हिस्सा बन सकते हैं। यहां पर टूरिस्ट वॉटर बोट से लेकर चिल्ड्रेन पार्क, बंजी जंपिंग, हाइकिंग और ट्रैकिंग का मजा ले सकते हैं। यह बांध न सिर्फ आसपास के इलाकों के लिए पानी की आपूर्ति करता है, बल्कि डैम के आसपास बने सर्किट हाउस टूरिस्टों को सुकून भरी छुट्टियों का अहसास कराता है। डैम के आसपास घूमने के लिए पाथ-वे बनाया गया है, जहां घूमते हुए आप एक कभी न भूलने वाली शाम को अलविदा कह सकते हैं। इस डैम की खूबसूरती और प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सामान्य दिनों में बड़ी संख्या में सैलानी घूमने आते हैं और कई एलबम और फिल्म शूट करने के लिए डायरेक्टर्स इस जगह को चुनते हैं।
कांके डैम
गोंडा हिल्स की पहाड़ियों पर स्थित यह डैम न सिर्फ पूरे रांची को पानी की आपूर्ति करता है बल्कि आसपास रहने वाले लोगों और टूरिस्टों को आउटिंग का भी मौका देता है। यहां के शांत माहौल, प्रदूषणरहित वातावरण और खुशनुमा मौसम हर किसी की थकान मिटाने का काम करते हैं। गोंडा हिल्स की चट्टानों को काटकर बनाई गईं विभिन्न आकृतियां यहां आने वाले सैलानियों का मन मोह लेती हैं। खास बात यह है कि चट्टानों को काटकर बनाया गया यह गार्डन पूरी तरह से हरे भरे पेड़ों से भरा हुआ है। बच्चों और बड़ों के मनोरंजन के लिए बने पार्क की खूबसूरती देखते ही बनती है। इसके अलावा यहां पर इजिप्शन पिरामिड की रेप्लिका भी है, जिसके सामने अक्सर सैलानी तस्वीरें खिंचवाते नजर आते हैं। अगर आप ढलते सूरज के कभी न भूलने वाले पल का गवाह बनना चाहते हैं तो कांके डैम से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती।
धुर्वा डैम
शहर से सटे धुर्वा डैम पर रोज शाम को यंगस्टर्स और कपल्स को आउटिंग करते हुए देख सकते हैं। दूर तक फैला धुर्वा डैम भी रांची और पर्यटकों में कांके डैम की तरह से फेमस है। इस डैम की लोकप्रियता को देखते हुए सरकार ने हाल ही में डैम के पास 5 एकड़ में ट्राइबल पार्क बनाने का फैसला लिया है। इस पार्क में राज्य के आदिवासियों के जीवन के उत्थान, पतन, उनकी लड़ाई, शादी-ब्याह समेत कला और संस्कृति के बारे में बताया जाएगा। साथ ही आदिवासी समाज से आने वाले महान व्यक्तियों के समाज के निर्माण में योगदान से जुड़ी जानकारी दी जाएगी।
हुंडरू झरना
झरनों के शहर रांची पहुंचते ही बारिश के समय आपको कई छोटे-बड़े झरने देखने को मिलेंगे। रांची से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हुंडरू झरना जितना खूबसूरत है, उससे कहीं ज्यादा मनमोहक मंजिल तक पहुंचने का रास्ता है। सड़क के दोनों ओर दूर तक फैले जंगल और बीच में आते छोटे गांवों से होकर गुजरने का अनुभव आप कभी नहीं भूल पाएंगे। झरने तक पहुंचने के लिए आपको कई सौ सीढ़ियां नीचे उतरना पड़ता है। सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए आप दूर तक फैली हरियाली का नजारा ले सकते हैं। यह झारखंड में सबसे ऊंचाई से गिरने वाला झरना है। 320 फुट की ऊंचाई से गिरता पानी मनमोहक लैंडस्केप बनाता है, जो देखते ही बनता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि अधिक ऊंचाई से पानी गिरने के कारण चट्टान पानी से कटती रहती है। यहां पर्यटक ट्रैकिंग और अन्य एडवेंचर एक्टिविटीज के लिए आते हैं।
दशम फॉल
दस धाराओं का संगम, जिसके चलते इसका नाम दशम फॉल पड़ा। लगभग 144 फुट की ऊंचाई से गिरता यह झरना प्राकृतिक नजारों से घिरा हुआ है। दशम फॉल रांची-टाटा मार्ग पर तैमारा गांव के पास है। बारिश के मौसम में यह झरना खूबसूरती के मामले में अपने शबाब पर होता है। इसके अलावा फरवरी से अप्रैल के बीच का समय दशम फॉल घूमने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। स्वर्णरेखा की सहायक कांची नदी दशम फॉल का निर्माण करती है।
जोन्हा फॉल
जोन्हा फॉल का नाम पास स्थित गांव के नाम पर पड़ा है। जोन्हा फॉल को गौतम धारा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने यहां स्नान किया था। गौतमधारा के एक छोर पर बुद्ध को समर्पित एक मंदिर और एक आश्रम है, जिसे राजा बालदेवदास बिरला के बेटों ने बनवाया था। हर मंगलवार और गुरुवार को यहां लगने वाला मेला भी पर्यटकों के बीच काफी चर्चित है। आश्रम के चिह्नों को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि मूल रूप से इसका निर्माण हिंदू धर्म के साथ-साथ आर्य धर्म की सभी शाखाओं, यानी बौद्ध, जैन, सिख, सनातन और आर्यसमाज के लिए किया गया होगा। स्थानीय लोग जोन्हा को गंगा नाला भी कहते हैं, क्योंकि इसकी धारा गंगा घाट से आती है। जोन्हा फॉल जाने के लिए हुंडरू फॉल की तरह सीढ़ियों से नीचे की ओर जाना होता है। जोन्हा फॉल रांची के पठार के सिरे पर पड़ता है और इसकी गिनती ढलान वाली घाटी के जलप्रपातों में होती है। इसमें गंगा और रारू नदी से पानी आता है।
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