एक गांव जो रात में हो जाता है 'भुतहा'
ऐसे बसा था कुलधरा गांव
ऐसा माना जाता है कि वहां के लोग जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहां फिर कभी कोई नहीं बस पाएगा। तब से गांव वीरान पड़ा हैं। इस गांव में भले ही कोई आकर बसता न हो, लेकिन गांव को देखने के लिए देश-विदेश से हर रोज सैंकडों लोग आते हैं। इस गांव को पालीवाल ब्राह्मणों ने बसाया था। यह गांव वैज्ञानिक तरीके के साथ तैयार किया गया था। भीषण गर्मी होने के बावजद इस गांव के घरों में गर्मी का एहसास नहीं होता था। यहां पर सभी घरों में झरोखे बने हुए थे और इससे सभी घरों में हवा भी आती रहती थी। गांव में घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढ़ियां कमाल के हैं। कभी गुलजार रहने वाले इस गांव में दिन में भी लोगों का जी घबराता है। यहां पर किसी को चूड़ी खनकने की आवाज आती है, तो किसी को नजदीक से कोई चलने का भ्रम होता है। बताया जाता है कि 1291 में एक रईस पालीवाल ब्राह्मण ने कुलधरा गांव बसाया था। कुलधरा के आसपास 84 गांव में पालीवाल ब्राह्मणों की बस्ती हुआ करती थी। इस गांव में रहने वाले लोग संस्कृत के जानकार और संस्कारी थे। इस बात की गवाही तो यहां के मजबूत बने घर भी देते हैं।
दीवान सालम सिंह की लगी बुरी नजर
राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव के वीरान होने को लेकर एक अजीबोगरीब रहस्य है। कभी लोगों से आबाद रहने वाले इस गांव को जिसकी बुरी नजर लग गई, वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। दीवान सालम सिंह की गंदी नजर गांव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गई थी। ऐसा कहा जाता है कि दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल हो गया था कि बस वह किसी तरह से उसे ही पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव भी बनाया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर सालम सिंह ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। दीवान के इस ऐलान के बाद गांव में पालीवाल ब्राह्मणों की एक चौपाल हुई, जिसमें एक कुंवारी लड़की के सम्मान और अपने आत्मसम्मान की खातिर रियासत छोड़ने का फैसला लिया गया। इस चौपाल में 84 गांवों के 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान की खातिर रियासत छोड़ने का फैसला लिया। अगली शाम को कुलधरा गांव कुछ यूं वीरान हुआ, कि आज भी परिंदे उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते। कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था। हालांकि, अब यहां पर 82 गांव में लोग फिर रहने लगे हैं, लेकिन दो गांव कुलधरा और खाभा गांव आज भी आबाद नहीं हो पाए हैं। ये दोनों ही गांव भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं जिसे दिन की रोशनी में सैलानियों के लिए रोज खोल दिया जाता है।
यहां पर भी घूम सकते हैं आप
थार की स्वर्णिम कल्पना से भरे जैसलमेर में आप कुलधरा के अलावा यहां की खूबसूरत हवेलियों को देख सकते हैं। यहां पर सोनार किले की खूबसूरती पर्यटकों को रोमाचिंत करती है, तो वहीं सालिम सिंह की हवेली और बादल महल की भव्यता भुलाए नहीं भूलती है। सोनार किला बलुआ पत्थरों से बनाकर होने के कारण यह पीले रंग का दिखता है। पीले चूना पत्थरों से बना किला सूर्यास्त के ठीक पहले रोशनी में सुनहरा दिखाई देता है। सोनार किले की पूर्वी ढलान पर ही बनी है, दीवान सालिम सिंह की हवेली। इसे 1825 में दीवान सालिम सिंह ने बनवाया था। यह हवेली जैसलमेर के दर्शनीय स्थलों में सबसे सुंदर व भव्य हवेलियों में से एक है। इस हवेली के ऊपरी भाग को मोती महल और जहाज महल भी कहते हैं। मोती महल को बड़े ही सुंदर तरीके से बनाया गया है। इसे जहाज महल भी कहा जाता है, क्योंकि इसके सामने का हिस्सा एक जहाज की तरह दिखता है। दीवान सालिम सिंह की वजह से ही कुलधरा गांव हमेशा-हमेशा के लिए उजड़ गया था। लोद्रवा के जैन मंदिर की नक्काशी देखकर आप अजंता और एलोरा की गुफाओं को भूल जाएंगे।
तनोट माता मंदिर
जैसलमेर जिले की पाकिस्तान सीमा पर बसा तनोट माता का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर है। जैसलमेर शहर से 120 किमी की दूरी पर बसा यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र होने के साथ ही भारत-पाक के 1965 व 1971 के युद्ध का भी गवाह रहा है। यह माना जाता है कि माता ने 1965 के युद्ध के दौरान सैनिकों की मदद की थी, जिसकी वजह से पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा था। इसका गवाह तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में रखे पाकिस्तान द्वारा दागे गए जीवित बम हैं। लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सेना ने मंदिर परिसर में करीब 3,000 बम गिराए थे, लेकिन मंदिर पर खरोच तक नहीं आई। यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 400 बम फटे तक नहीं थे। 1200 साल पुराने इस मंदिर की स्थापना भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने विक्रम संवत् 828 में की थी। तनोट माता का मंदिर जिस इलाके में है, वो इलाका बेहद ही संवेदनशील माना जाता है। यहां पर आने वाले श्रद्धालु अपने साथ अपना परिचय पत्र लेकर जरूर आते हैं, क्योंकि ऐसा न करने पर उन्हें सीमा सुरक्षा बल की कड़ी जांच का सामना करना पड़ता है।
इन जगहों को कैसे भूल सकते हैं आप
भारत और पाकिस्तान की सीमा पर बसे जैसलमेर जिले में आपको बहुत कुछ देखने को मिलेगा। यहां पर 'जैसलमेर वॉर मेमोरियल' बना हुआ है। जहां पर 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच में हुए युद्ध में किन-किन शस्त्रों का प्रयोग किया गया था, उसकी जानकारी मिल जाएगी। इसके अलावा जैसलमेर में ही पोकरण भी है। जहां से भारत ने अपनी रक्षा शक्ति को मजबूत करने के लिए एक नहीं बल्कि कई बार परमाणु बम का परीक्षण किया था। पोकरण के पास ही रामदेवरा में संत बाबा रामदेव की समाधि स्थल भी है। बाबा रामदेवजी गुजरात और समूचे राजस्थान के देवता माने जाते हैं। लोग उन्हें पीर मानते हैं। सूखा यहां की धरती को विरासत में मिला हुआ है, लेकिन इसके बाद भी यह स्थान आपके दर्शनीय हो सकते हैं।
कैसे पहुंचें
'गोल्डन नगरी' जैसलमेर तक आप सड़क, वायु और रेलमार्ग के जरिए जा सकते हैं। अगर आप यहां दिल्ली से सड़क मार्ग के जरिए जाना चाहते हैं, तो यह 826 किमी दूरी पर है और रेलमार्ग के जरिए जा रहे हैं तो दूरी घटकर 780 किमी ही रह जाती है।
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