गलियां... जो शहरों का दिल हैं
विश्वनाथ गली, बनारस
बात जब गलियों की हो तो सबसे पहले बनारस ही याद आता है। ये गलियों का शहर है। मशहूर कवि केदारनाथ सिंह ने अपनी कविता बनारस में कहा है - अद्भुत है इसकी बनावट, यह आधा जल में है, आधा मंत्र में, आधा फूल में, आधा शव में, आधा नींद में, आधा शंख में, अगर ध्यान से देखो तो यह आधा है और आधा नहीं। बनारस को समझने के लिए इससे बेहतर कविता कोई नहीं हो सकती और इस शहर को घूमने के लिए इसकी गलियों से बेहतर कोई जगह। किसी शायर ने कहा है
गलियों बीच काशी है कि काशी बीच गलियां
कि काशी ही गली है कि गलियों की ही काशी है।
'काशी का इतिहास' नाम की अपनी किताब में डॉ. मोतीचंद लिखते हैं कि 1432 तक काशी के प्रमुख घाट बनकर तैयार हो चुके थे और इसके बाद ही यहां गलियों का विकास हुआ। चार-पांच सौ साल पहले यहां गंगा के किनारे सिर्फ मंदिर और घाट थे। 1825 में यहां एक बांध का निर्माण हुआ और उसके बाद मोहल्ले बसने लगे और गलियां बनने लगीं। यहां की विश्वनाथ गली सबसे मशहूर गली है। ज्ञानवापी चौक से शुरू होकर विश्वनाथ मंदिर तक जाने वाली इस गली में कपड़े, श्रृंगार का सामान और लकड़ी के बने खिलौने मिलते हैं। अगर आप खाने के शौकीन हैं तो कचौड़ी गली में घूमे बिना आपका बनारस का सफर पूरा ही नहीं होगा। इसके अलावा यहां की खोवा गली, ठठेरी गली, दालमंडी गली, कालभैरव गली, रेशम कटरा गली, नारियल गली, भुतही इमली की गली, विंध्यवासिनी गली, रेशम कटरा गली, तुलसी गली, हनुमान गली, संगठा गली, गुदड़ी गली, पंचगंगा गली, सिद्धमाता गली, पाटन दरवाजा गली, कामेश्वर महादेव गली सहित कई अन्य गलियां हैं जो इसे गलियों का शहर बनाती हैं।
कोकर्स वॉक, कोडाइकनाल
अब हम बताते हैं आपको एक ऐसी गली के बारे में जो छोटी सी है, लेकिन है सुकून से भरी। जहां से आपको दूर तक पहाड़ ही पहाड़ दिखेंगे, जहां बादल आपके सिर को छूकर निकल जाएंगे। कोडाइकनाल की इस गली पर जैसे कुदरत की रहमत बरसती है। कोकर्स वॉक नाम की इस गली को 1872 में लेफ्टिनेंट कोकर ने बनवाया था। कोडाइकनाल झील से एक किलोमीटर दूर यह गली कोडाइ के दक्षिणी ढलान पर है। इसके रास्ते में एक टेलीस्कोप लगा है, जहां से आप घाटी और पहाड़ी के नीचे बसे शहर को देख सकते हैं। इस गली में जाने के लिए टिकट भी लेना पड़ता है। यहां गली के एक किनारे पर आपको कई दुकानें लगी मिलेंगी। यहां जाने का सबसे बेहतरीन समय होता है जब सूरज एकदम सिर पर हो। इस समय यहां से पूरा शहर दिखता है।
पार्क स्ट्रीट, कोलकाता
कोलकाता की पार्क स्ट्रीट को खाने वाली गली और 'कभी न सोने वाली गली' भी कहा जाता है। आज ये गली फूड लवर्स और युवाओं का पसंदीदा ठिकाना है। सिर्फ कोलकाता ही नहीं, कलकत्ता का भी दिल बसता था इस गली में। पार्क स्ट्रीट को पहले घोरुस्तां का रास्ता फिर वैंसीटार्ट एवेन्यू और फिर बरियल ग्राउंड रोड नाम मिला। करीब 250 साल पहले जब यह बरियल ग्रांउड रोड थी, तब लोग यहां रहना नहीं चाहते थे, क्योंकि यहीं सबसे ज्यादा कब्रिस्तान थे। ब्रिटिश काल में ही धीरे-धीरे ये शाम बिताने के लिए मशहूर होने लगी। 1970, 1980 के दशक में यह नाइट लाइफ के लिए कोलकाता का पसंदी ठिकाना बन गई। यहां ट्रिंकाज, पीटर कैट, ओली पब, ब्लू फॉक्स, मोकैम्बो जैसे कई क्लब और कैफे खुल गए। पार्क स्ट्रीट हाउस एशियाटिक सोसाइटी, कब्रिस्तान के अवशेषों पर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित की गई और यहां बंगाल के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का निवास बना। इसे पार्क स्ट्रीट नाम मिला लॉर्ड मैकाले के घर के नाम पर जिन्होंने भारतीय दंड संहिता का मसौदा तैयार किया था। अपने इतिहास को समेटे ये गली आज कोलकाता की सबसे रोशन गलियों में से एक है।
हजरतगंज, लखनऊ
यूपी का दिल लखनऊ में और लखनऊ का दिल बसता है हजरतगंज में। 1810 में यहां के नवाब सादत अली खान ने इसे बसाने के बारे में सोचा था, तब इसका नाम मुनव्वर बख्श था। उन्होंने उस वक्त यहां यूरोपियन स्टाइल की कोठियां बनवानी शुरू की थीं, कोठी नूर बख्श (जिलाधिकारी निवास), कोठी हयात बख्श (राज भवन), जहूर बख्श, नूर मंजिल, खुर्शीद मंजिल, कंकर वाली कोठी, मुनव्वर कोठी, लखनऊ क्लब और लॉरेंस टेरेस जैसी इमारतें यहां बनकर तैयार हुईं। 1827 में नवाब नसीरुद्दीन ने आज की गंज मार्केट को बनाने की शुरुआत कराई। उस वक्त यहां चाइना बाजार और कप्तान बाजार बनाए गए जहां चीन, जापान और बेल्जियम से आया हुआ सोने का सामान बेचा जाता था। 1842 में इस जगह का नाम बदलकर हजरतगंज रखा गया। यह नाम नवाब अमजद अली शाह के नाम पर रखा गया जिन्हें लोग हजरत कह कर बुलाते थे। आज हजरतगंज लखनऊ का सबसे पॉश इलाका है। खाने से लेकर कपड़े, जूते सबके एक से बड़े एक शोरूम हैं यहां। लखनऊ में हज़रतगंज से बेहतर कहीं की शाम नहीं होती।
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